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यक्ष प्रश्न : तो क्या इच्छामृत्यु प्राप्त करेगी हथिनी ‘लक्ष्मी’ !

Newsdesk Uttranews
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सलीम मलिक

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रामनगर । हाईकोर्ट के आदेश पर निजी रिसॉर्ट्स द्वारा सैलानियों को सफारी कराये जाने वाले जब्त हाथियों में शामिल 55 साल की बुजुर्ग हथिनी ‘लक्ष्मी’ को क्या विभाग दया मृत्यु देने जा रहा है? यह सवाल इस बीमार हथिनी की हालात में वैटनरी डॉक्टर्स की टीम के लाख प्रयासों के बाद भी कोई सुधार न होने के बाद वनाधिकारियों के सामने मुंह बाये खड़ा है।
बीते लंबे समय से बेहद कष्ट झेल रही इस हथिनी के इलाज के लिए वन विभाग भारत से लेकर दक्षिणी अफ्रीका तक के वैटनरी डॉक्टर्स की सेवाएं ले चुका है, लेकिन इसके बाद भी उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है।

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पिछले साल अगस्त के महीने में हाई कोर्ट के ऑर्डर पर निजी रिसॉर्ट्स से छुड़ाये गये इन आठ हाथियों को विभाग ने आमडंडा के पास रखा हुआ है, जहां इनके भोजन आदि की व्यवस्था में ही विभाग को पसीने छूट रहें हैं। ऐसे हालात में लक्ष्मी नाम की एक हथिनी के पैर में इंफैक्शन होने ने विभाग की मुश्किलों में और इज़ाफ़ा कर दिया है। देश में सख्त वन्यजीव कानूनों और हाईकोर्ट से जुड़ा मामला होने के चलते अधिकारी लक्ष्मी की बीमारी के मामले में फूंक-फूंककर कदम रख रहें हैं।

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कॉर्बेट पार्क, जीबी पंत यूनिवर्सिटी, भारतीय वन्य जीव संस्थान, मथुरा के एलिफैंट कंजर्वेशन एंड केयर सेंटर के विशेषज्ञों के साथ-साथ ही दक्षिणी अफ्रीका के बेहतरीन वैटनरी डॉक्टर्स मिस्टर कोबट रथ तक से इस हथिनी का इलाज करवाकर थक चुके वनाधिकारियों की निजी राय अब इस सिलसिले को दया मृत्यु के माध्यम से खत्म करने की ओर बढ़ रही है।
लक्ष्मी की ज़िन्दगी और मौत का फैसला लेने के लिए वन विभाग ने विशेषज्ञों और वैटनरी डॉक्टर्स की एक समिति का गठन कर दिया है, जिसने मौके पर जाकर हथिनी के स्वास्थ्य व उसके इलाज के मामले में पूरी जानकारी हासिल की है। इस समिति ने हाथियों का निरीक्षण कर लक्ष्मी नामक बीमार हथिनी के स्वास्थ्य को नाजुक बताया है।

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समिति में शामिल पंतनगर विश्वविद्यालय के डॉक्टर, वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट देहरादून, आईवीआर बरेली, चिड़ियाघर नैनीताल के अधिकारी शामिल हैं। लक्ष्मी की हालत के बारे में अब यह समिति अपनी रिपोर्ट विभाग के सुप्रीम अधिकारियों को सौंपेगे जिसके बाद जल्द ही लक्ष्मी के जीवन के बारे में कोई फैसला ले लिया जायेगा।

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उत्तराखंड का पहला मामला है दया मृत्यु


यदि लक्ष्मी नाम की इस हथिनी को वनाधिकारियों ने दया मृत्यु दिये जाने का निर्णय लिया तो यह इस प्रदेश का पहला मामला होगा। हालांकि इससे पहले एक बार 2007 में राज्य के राजाजी नेशनल पार्क में एक हाथी को दया मृत्यु दिये जाने का निर्णय लिया तो जा चुका है, लेकिन इससे पहले कि इस निर्णय पर अमल हो पाता उस हाथी की प्राकृतिक मौत हो चुकी थी।

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दया मृत्यु कानून की नज़र में


बेज़ुबान जानवरों को उनके कष्ट से निजात दिलाये जाने के मामले में दी जाने वाली दया मृत्यु के बारे में बीते साल मद्रास उच्च न्यायालय स्थिति स्पष्ट कर चुका है। एक मंदिर के हाथी के प्रकरण में सुनवाई के दौरान मद्रास हाईकोर्ट ने अप्रेल 2018 में कहा कि पशु क्रूरता अधिनियम 1950 के तहत मौत की हद तक बीमार या बंधक पशु के बारे में अधिकारी पशु को दया मृत्यु दिये जाने के बारे में निर्णय ले सकते हैं।

यहां न्यायालय ने दया मृत्यु की इज़ाज़त इस शर्त के साथ दी थी कि वैटनरी डॉक्टर इस बात का प्रमाण पत्र दे कि हाथी को जीवित रखना उसके साथ क्रूरता होगी। इसके साथ ही न्यायालय ने मानवीय ढंग से कम से कम दर्दनाक मौत की पैरवी की थी।

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