World earth day- खूबसूरत पृथ्वी पर अत्याचार बंद करो मनुष्य

22 अप्रैल 2021 वरिष्ठ पत्रकार जगमोहन रौतेला की फेसबुक वॉल से साभार- World earth day- कल रात 9 बजे से ही हवा के साथ बूँदाबादी…

World earth day

22 अप्रैल 2021

वरिष्ठ पत्रकार जगमोहन रौतेला की फेसबुक वॉल से साभार-

World earth day- कल रात 9 बजे से ही हवा के साथ बूँदाबादी होने लगी थी। देर रात 12 बजे के बाद तेज हवा चलने लगी, जो सवेरे तक जारी रही। रात में कुछ देर के लिए हल्की बौछार आई तो, पर वह धरती की प्यास नहीं बुझा पाई।

इससे इतना अवश्य हुआ कि रात काफी ठंड हो गई थी और कंबल का सहारा लेना पड़ा। आज 22 अप्रैल को विश्व पृथ्वी दिवस (World earth day) है। संक्रमण के इस भयावह दौर में यह तय हो गया है कि अगर मनुष्य ने पृथ्वी के संसाधनों का निर्ममता से दोहन जारी रखा और अपनी हरकतें पर लगाम नहीं लगाई तो आने वाले साल उसके लिए और भयावह होंगे।

प्रकृति व पृथ्वी (World earth day) को अपने साथ किए जा रहे जुल्म का हिसाब लेना आता है। जिस ऑक्सीजन के लिए आज मनुष्य मारा-मारा फिर रहा है और अपनी जान बचाने की भीख मांग रही है, वहं धनदौलत व किसी भी तरह की ताकत किसी काम नहीं आ रही है।

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मनुष्य ने अपने घमंड में इस खूबसूरत पृथ्वी (World earth day) को हर तरह के प्रदूषण से हलकान कर दिया है। हम बहुत तेजी के साथ चारों ओर से खुद के पैदा किए व फैलाए गए प्रदूषण की चपेट में हैं। इसके बाद भी हमारी हरकतें हैं कि कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं. संक्रमण से लाचारी के इस भयावह व दर्दनाक दौर से भी हमने सबक नहीं सीखा तो तय मानिए कि कुछ वर्षों में पृथ्वी मानव नाम के सबसे खुदगर्ज, असंवेदनशील जीव से मुक्ति पा लेगी।

अभी भी वक्त है संभल जाओ। इस खूबसूरत पृथ्वी (World earth day) को कूड़े का ढेर मत बनाओ। दुकान में सामान व सब्जी लेने जाओ तो घर से थैला ले जाओ, दुकान से पॉलीथीन की थैली में कोई सामान मत लाओ। जब पॉलीथीन में हाथ हिलाते हुए सामान लाने में शर्म नहीं आती तो घर से एक थैला हाथ में पकड़ कर ले जाने में शर्म कैसी? अपने दोपहिया व कार में भी अलग-अलग आकार के दो-तीन थैली हमेशा अवश्य रखो, ताकि राह चलते मन पसन्द साग-सब्जी व फल मिलने पर थैले में रख सको और उसके लिए बेवजह 2-4 पॉलीथीन की थैलियॉ घर में लाकर कभी नष्ट न होने वाला कूड़ा पैदा करने के सबसे बड़े अपराध से बच सको।

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यह विविधताओं से भरी हुई धरा केवल हमारे लिए ही नहीं है, बल्कि इसमें हजारों-लाखों किस्म के जीव-जन्तु व वनस्पतियां भी हैं। उन्हें इस पृथ्वी (World earth day) पर नैसर्गिक ढंग से रहने व फलने-फूलने व रहने का अधिकार हमसे ज्यादा है, क्योंकि वे पृथ्वी से उतना ही लेते हैं, जितनी उन्हें आवश्यकता है।

वे हमारी हर वस्तु का अपने लिए ढेर नहीं लगाते। वह भी तब जब बहुत बुद्धिमान होने को घमण्ड पालने के बाद भी मनुष्य को यह नहीं पता कि हमारे जीवन के सांसों की धड़कन पता नहीं किस वक्त बंद हो जाये?

आज क्या हो रहा है? जिस अस्पताल, डॉक्टर व दवाओं की शरण में हम जीवन की डोर को थाम लेने की आश दौड़ लगा रहे हैं, क्या वे हमारी सांसों की धड़कनों को अचानक थमने से रोक पा रहे हैं? नहीं ना। तो फिर किस बात का घमण्ड रहता है हमें कि हम पृथ्वी के उन संसाधनों को बेरहमी के साथ अपने हितों की बलि चढ़ा रहे हैं, जिन पर हमारा अधिकार है ही नहीं. पृथ्वी (World earth day) को पृथ्वी ही रहने दें, उसे अपनी हवस की पूर्तियों का अड्डा न बनायें।

जगमोहन रौतेला वरिष्ठ पत्रकार हैं और हल्द्वानी में रहते हैं। अपने धारदार लेखन और पैनी सामाजिक-राजनैतिक दृष्टि के लिए जाने जाते है।

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