हिमालय हेतु जैव विविधता डेटा संकलन में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एवं मशीन लर्निंग के उपयोग विषय पर जीबी पंत संस्थान में हुई कार्यशाला

अल्मोड़ा: गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान के जैव विविधता संरक्षण एवं प्रबंधन केन्द्र द्वारा आयोजित ’’हिमालय हेतु जैव विविधता के डेटा संकलन में…

Screenshot 2024 1122 085624

अल्मोड़ा: गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान के जैव विविधता संरक्षण एवं प्रबंधन केन्द्र द्वारा आयोजित ’’हिमालय हेतु जैव विविधता के डेटा संकलन में आर्टिफिशियल इन्टेलिजेंस तथा मशीन लर्निंग का उपयोग’’ विषय पर दो दिवसीय कार्यशाला संपन्न हो गई है।


संस्थान के निदेशक प्रो. सुनील नौटियाल तथा जैव विविधता संरक्षण एवं प्रबंधन केन्द्र के केन्द्र प्रमुख डा. आईडी भट्ट के दिशानिर्देशन में आयोजित उपरोक्त कार्यशाला में एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर के पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रमुख प्रो. आर.के. मैखुरी मुख्य अतिथि रहे। कार्यशाला के दौरान भारतीय प्राणी सर्वेक्षण संस्थान, कोलकता के वैज्ञानिक डा. ललित शर्मा ने सम्मानित अतिथि के रूप में तथा रास्ता शोध एवं विकास संस्थान हल्द्वानी से आए धीरज खेतवाल, नितिश सिंह तथा अन्य प्रतिनिधियों ने प्रशिक्षक के रूप में प्रतिभाग किया।


इससे पूर्व कार्यशाला के प्रथम दिवस में शुभारम्भ सत्र के दौरान सर्वप्रथम केन्द्र प्रमुख डा. आईडी भट्ट द्वारा सभी सम्मानित अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत किया तथा हिमालय जैव विविधता सम्बन्धित डेटा संकलन एवं संकटग्रस्त प्रजातियों के आंकलन हेतु चलाई जा रही परियोजना की संक्षिप्त जानकारी दी गयी।
डा. ललित शर्मा ने इस क्षेत्र में भारतीय प्राणी सर्वेक्षण संस्थान द्वारा किये जा रहे प्रयासों पर चर्चा की। मुख्य अतिथि प्रो. मैखुरी ने अपने सम्बोधन में हिमालयी क्षेत्र की दुर्गम तथा चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में शोधकार्य के दौरान आने वाली समस्याओं पर चर्चा की तथा कहा कि युवा शोधार्थियों को जैवविविधता के प्रति सचेत होने की आवश्यकता है। इस महत्वाकांक्षी कार्यशाला में तकनीकी सत्रों के दौरान आर्टिफिशियल इन्टेलिजेंस तथा इसके प्रयोगों की जानकारी दी गई।


प्रथम तकनीकी सत्र के दौरान वैज्ञानिक डा. सुरेश राणा ने ’’विभिन्न राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने हेतु हिमालयी जैव विविधता का संकलन” विषय पर प्रस्तुतीकरण दिया। इसके उपरान्त श्री धीरज खेतवाल द्वारा डेटा संकलन हेतु विभिन्न तकनीकों के प्रयोग की जानकारी दी गयी। इसी के साथ कार्यशाला के प्रथम दिवस का समापन हुआ।


कार्यशाला के द्वितीय दिवस पर द्वितीय तकनीकी सत्र के दौरान प्रशिक्षक श धीरज खेतवाल द्वारा ओसीआर तथा जीन एआई तकनीकों द्वारा प्रकाशित माध्यमों से डेटा संकलन करना सिखाया गया। श्री खेतवाल ने आईओटी के प्रयोग से हिमालयी प्रजातियों की पहचान हेतु किये जा रहे प्रयासों की जानकारी दी।


डा. ललित शर्मा ने उनके संस्थान द्वारा आरएस-जीआईएस के प्रयोग से जैव विविधता संरक्षण हेतु किये जा रहे कार्यों के बारे मे विस्तृत प्रस्तुतीकरण दिया गया।


कार्यशाला के समापन सत्र के अवसर पर डा. आईडी भट्ट द्वारा निदेशक महोदय प्रो. सुनील नौटियाल को दो दिवसीय कार्यशाला के दौरान आयोजित तकनीकी सत्रों की संक्षिप्त जानकारी दी गयी। इसी दौरान डा. ललित शर्मा ने कहा कि कार्यशाला के दौरान विभिन्न महत्वपूर्ण तकनीकों के प्रयोग की जानकारी दी गयी जिसके प्रयोग से जैवविविधता सम्बधित शोध कार्यों में सफलता प्राप्त की जा सकेगी।


संस्थान के निदेशक प्रो. नौटियाल ने कहा कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में शोध एवं विकास हेतु आर्टिफिशियल इन्टेलिजेंस तथा मशीन लर्निंग तकनीकों का प्रयोग अति आवश्यक हैं। उन्होनें बताया कि इन तकनीकों के नीति सम्मत प्रयोग द्वारा जैव विविधता संकलन में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की जा सकती है। हांलाकि इन सभी तकनीकों पर पूर्णतः आश्रित होने के बजाय इसे सहायता के रूप में प्रयोग करने की आवश्यकता है। इसके उपरान्त मुख्य अतिथि प्रो. मैखुरी ने कहा कि हिमालयी क्षेत्र के प्रमुख मुद्दों जैसे जैव विविधता संरक्षण, जलवायु परिवर्तन औषधीय पादपों के प्रयोग तथा मशीनन लर्निंग तकनीकों के प्रयोग लाभकारी होंगे। उन्होने कहा कि इनके अतिरिक्त क्षेत्र की जैव-सांस्कृतिक, पारम्परिक विरासत के संरक्षण हेतु इन तकनीकों के प्रयोग पर भी विचार करने की आवश्यकता है।


धीरज खेतवाल ने कहा वर्तमान में मशीन लर्निंग द्वारा कई चुनौतियोंपूर्ण कार्य आसानी से किये जा सकते है। इसके प्रयोग द्वारा शोध, शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सफलताऐं हासिल की जा सकती हैं। कार्यशाला के अन्त में संस्थान के वैज्ञानिक डा. सुरेश राणा द्वारा सभी अतिथियों तथा प्रतिभागियों को धन्यवाद ज्ञापित किया गया। इस कार्यशाला में डा. सतीश आर्य, डा. के.एस. कनवाल, डा. सुबोध ऐरी, डा. लक्ष्मण सिंह सहित 30 शोधार्थियों ने प्रतिभाग किया।