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पहाड़ की सूनी बा​खलियां कब होंगी रोशन,अब त्योहारों पर गुलजार नहीं रहती अपनी बाखलियां

Newsdesk Uttranews
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उत्तरा न्यूज अल्मोड़ा। ‘बाखली'(Bakhli) यह शब्द पहाड़ के हर उस सख्स के जेहन में ताजा होगा जो यहां रहा है। बचपन में मकानों के बीच में बने मैदाननुमा आंगन में जिसने भी अपने साथियों के साथ खेला हो। वह इस शब्द को चाह कर भी भुला नहीं सकता।

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लेकिन जबसे पलायन(migretion) नाम का रोग यहां लगा है तब से इन बाखलियों में रौनक खत्म सी हो गई है। भवन खड़े तो हैं लेकिन उन्हें अपनों का इंतजार है जो उनके बंद पड़ चुके कपाटों को खोले और उसके आंगन पहले की तरह किलकारियों और धमालचौकड़ी से गूंजे। पहाड़ में जहां कई सारे मकान एकसाथ बने होते हैं अधिकांश की बनावट भी एक जैसी होती है। उसे बाखली नाम से जाना जाता है।

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एक बार फिर दीवाली चली गई। सोशल मीडिया के चरम उत्थान के इस दौर में खूब बधाईयां दी गई।पहाड़ी होने व पहाड़ी संस्कृति पर गर्व जैसी बातें भी खूब हुई। खूब आतिशबाजियां हुई और पहाड़ और मा​तृभूमि से बात करने जैसी क्रांतिकारी संदेश भी दिखाई दिये लेकिन रोशनी के इस त्योहार में एक बार अपनों का इंतजार करती बाखलियां सूनी आंखों से अपनों की आहट के लिए तरसती रही।

उत्तराखंड एक ऐसा राज्य बन गया है जहां राज्य बनने के बाद से लगातार गांव खाली होते जा रहे हैं (Villages are becoming empty)। युवाओं की संख्या इसमें सबसे ज्यादा है। हालत यह है कि जो एक बार अपना गांव छोड़ कर गया उसकी दोबारा वापसी बहुत कम हुई गांवों में कई घर ऐसे हैं जो कई दशकों से खुले ही नहीं हैं। यहां के नेताओं ने भी गांवों को कमतर साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हालत ऐसी है कि गांवों में मकान के मकान बंजर पड़े हैं। सोशल मीडिया(social media) में नारेबाजी करने वाले भी तीज त्योहारों पर तक घर आना नहीं चाहते। ऐसी स्थिति में गांव लगातार सूने होते जा रहे हैं।

पलायन आयोग की रिपोर्ट(Migration commission Report) अकेले अल्मोड़ा जिले में ही 70 हजार लोगों ने पलायन किया है। सूबे की 646 पंचायतों के 16207 लोग स्थाई रूप से अपना गांव छोड़ चुके हैं।

रिपोर्ट में 73 फ़ीसदी परिवारों की मासिक आय 5000 रुपये से कम बताई गई है इसके बाद आयोग ने मूलभूत सुविधाओं के अभाव को पलायन की मुख्य वजह बताया है।

बताते चलें कि 17 सितंबर 2017 में पलायन आयोग(Migration commission) का गठन किया था और आयोग ने साल 2018 में सरकार को अपनी पहली रिपोर्ट सौंपी थी। आयोग की इस पहली रिपोर्ट के अनुसार 2011 में उत्तराखंड के 1034 गांव खाली थे
। 2018 तक 1734 गांव खाली हो चुके थे राज्य में 405 गांव ऐसे थे, जहां 10 से भी कम लोग रहते हैं। देवभूमि के 3.5 लाख से अधिक घर वीरान पड़े हैं, जहां रहने वाला कोई नहीं।
सीएम ​त्रिवेंद्र सिंह रावत के गृह जनपद पौड़ी में ही अकेले 300 से अधिक गांव खाली है। अब खाली पड़े गांवों को भूतिया गांव(Haunted village) कहे जाने लगा है। आयोग ने यह भी माना है कि पलायन के मामले में इस बार भी पौड़ी और अल्मोड़ा जिले शीर्ष पर रहे हैं।

चौंकाने वाली बात यह है कि पलायन करने वालों में 42.2 फीसदी 26 से 35 उम्रवर्ग के युवा हैंं। यह युवा पंचायत चुनावों में वोट देने तो पहुंचते हैं लेकिन रोजगार के अभाव में यहां रुक नहीं पाते। यानी पहाड़ आना कई युवा चाहते हैं लेकिन रोजगार नहीं होने के कारण उनका यहां रुकना संभव नहीं हो पा रहा है।