विमर्श : हमेशा दिल की ही नहीं कभी-कभी अपने दिमाग की भी सुनें

जब कोई व्यक्ति जीवन की जंग लड़ते-लड़ते अचानक थक हारने लग जाता है तो स्वाभाविक तौर से उसके मन में अच्छे विचारों की जगह गंदे…

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जब कोई व्यक्ति जीवन की जंग लड़ते-लड़ते अचानक थक हारने लग जाता है तो स्वाभाविक तौर से उसके मन में अच्छे विचारों की जगह गंदे विकार पैदा होने लगते हैं। अपनी इन कमियों के चलते स्वयं की स्थिति के लिए समाज को दोषी ठहराते हुए खुद को नशे के गर्त में झोंकने लगता है। इसके चलते या तो वह गलत व्यसन में अनाप-शनाप धन खर्चने लग जाता है। या फिर उसकी अकर्मण्यता उसे एक सीमित दायरे में बांध कर रख देती है। और वह पुरुषार्थ के लिए घर की चौखट लांघना तक बंद कर देता है।

निराशा से घिरा और नशे की गिरफ्त में फंसा मनुष्य मनोरंजन क्रियाओं से दूर, एकांकी रहकर स्वयं को समाज से अलग कर देता है। इसके चलते वह धीरे-धीरे पतन की राह पर बढ़ने लग जाता है। शौकिया तौर में गम मिटाने के लिए पीते हुए धीरे-धीरे वह नशे का आदी होने लग जाता है। तमस में मदमस्त नशे को ही वह अपना जीवन समझने लगता है। सुबह पौ फटने से लेकर देर रात तक उसकी मंजिल घर से मैखाने के आसपास तक ही भटकती रह जाती है। अपनी तमस को मिटाने के लिए वह घरेलू बर्तन, कपड़े, गहने आदि को दांव में लगाने से भी नहीं चूकता। इस सबके चलते उसका जीवन प्रभावित होकर रह जाता है। इस सबका असर उसके अपने परिवार पर सबसे ज्यादा पड़ता है। धीरे-धीरे कर एक के बाद दूसरी बहुमूल्य वस्तुएं घर की दहलीज से निकलकर बाजार में बिकने लग जाती हैं। इसके चलते समाज में उसकी बदनामी होने लगती है। समाज के लोग सरेआम उसके करतबों की उलेहना देने लगते हैं। इस तरह वह स्वयं को समाज से स्वयं को दूर करने लगता है।
असल कहानी तो इसके बाद से शुरू होती है‌। नशापान की आदत के चलते अब वह घर और रिश्तेदारों की ओर से प्रताड़ित किया जाने लगता है। उसकी इस आदत के चलते उसके अपने लोग भी उसे समझाने-बुझाने के बजाय उल्टा प्रताड़ना देने लगते हैं। स्थिति ज्यादा गंभीर तब हो जाती है जब नशे के बिना उस व्यक्ति के हाथ, पैर कंपन्न करने लगते हैं और उसे बेचैनी महसूस होने लगती है। इसके चलते वह नशापान को ही अपना सबकुछ समझने लग जाता है। एक-एक कर जेब और घर का धन नशे में समाप्त होने के चलते उसके परिवार की शांति भंग हो जाती है। अंत में इस सबसे तंग आकर वह आत्मघाती कदम उठाते हुए अपनी जीवन लीला समाप्त कर देता है। जिसका सीधा असर उसके बच्चों पर पड़ता है। परिवार के किसी व्यक्ति पर आई इस स्थिति से पहाड़ के अधिकतर घर जूझ रहे हैं।

मनोचिकित्सकों का कहना है एकाएक जीवन में आई इस स्थिति से कुछ विरले लोग ही निपट पाते हैं। जो अपने दिल के साथ दिमाग की भी सुनते हैं। किसी ने क्या खूब कहा है कि हमेशा अपने दिल की ही नहीं कभी-कभी अपने दिमाग की भी बात सुन लिया करें। अपने जीवन में हमेशा सकारात्मकता लाएं। इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी में सुकून के पल बिताने के लिए अपने परिवार के सदस्यों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय व्यतीत करें। समाज के विकास में अपने बहुमूल्य समय का सदुपयोग करें। अपनी चादर के हिसाब से पैर फैलाएं। और जितना हो सके अपने आसपास में जरूरतमंदों का सहयोग करें।

दिल नही दिमाग की सोचियें
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