इसी कड़ी में मंगलवार को आम आदमी पार्टी (Aap) ने ऐलान किया कि वो 2022 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड में सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. पार्टी ने बकायदा प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि वो सूबे में सदस्यता अभियान चलाएगी. पार्टी ने इसके लिए वट्सएप नंबर भी जारी किया. लेकिन सवाल ये है कि आम आदमी पार्टी (Aap) भौगोलिक दृष्टि से जटिल और मैदान और पहाड़ में बंटा राजनीतिक गणित उसे यहां पैर जमाने देगा.
आप (Aap) का कहना है कि उसका लक्ष्य उत्तराखंड में 10 लाख सदस्य बनाने का है. पार्टी दिल्ली का मॉडल उत्तराखंड में लागू करने की बात कर रही है. उसने दावा किया है पहाड़ में भी लोगों को दिल्ली की तरह बिजली, पानी की बुनियादी सुविधाएं दी जाएंगी. उसने राज्य में विकल्प की जरूरत पर भी जोर दिया है. ये सच है कि राज्य गठन के 20 साल हो गए हैं और जिस सोच के साथ राज्य का गठन किया गया था, वैसा धरातल पर संभव नहीं हो पाया है. राज्य ने 20 सालों में काफी राजनैतिक अस्थिरता देखी है. राज्य में अब तक 9 लोगों ने मुख्यमंत्री पद संभाला है और इनमें से दिवंगत पूर्व सीएम नारायण दत्त तिवारी को छोड़कर कोई भी पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है.
सूबे के गठन में क्षेत्रीय दल उत्तराखंड क्रांति दल का बहुत बड़ा योगदान रहा है. लेकिन राज्य बनने के बाद वो कभी भी सूबे में अपनी मज़बूत राजनीतिक उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाया. उसने विपक्ष में बैठने की जगह हर बार सत्ताधारी दल के साथ हाथ मिलाया. इसका नतीजा ये हुआ कि जनता का उससे मोहभंग हो गया. इसके अलावा पार्टी में दोफाड़ भी उसका राज्य में विस्तार ना होने का प्रमुख कारण बनी. ऐसे में आप के लिए भी फिलहाल बेहतर राजनीतिक संभावना यहां नहीं दिखती है. इसका पहली बड़ी वजह चेहरा है. आप (Aap) के पास उत्तराखंड में अभी तक कोई ऐसा चेहरा नहीं है जिस पर लोग भरोसा करके उसे कांग्रेस-बीजेपी का राजनैतिक विकल्प के तौर पर स्वीकार करें.
दिल्ली में केजरीवाल के चेहरे के सामने कोई चेहरा ना होना बीजेपी की हार की बड़ी वजह बनी. आप के लिए दूसरा सबले बड़ा संकट संगठन का ना होना है. दो साल बाद राज्य में विधानसभा चुनाव हैं और पार्टी ने अभी तक कोई तैयारी नहीं की है. दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद वो ताल ठोकने की बात कर रही है. लेकिन जमीन पर उसके पास कोई ठोस रोडमैप नहीं दिखाई देता है.
सूबे का इतिहास हर पांच साल में परिवर्तन का रहा है, ऐसे में कांग्रेस भी पूरे दमखम से मैदान में उतरेगी. यहां उसे काग्रेंस से भी लोहा लेना होगा. इन सबके बावजूद इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि लंबे समय से यहां तीसरे विकल्प की बात जनता कर रही है पर कोई ठोस विकल्प और चेहरा ना होने की वजह से वो इसे अपना नहीं पाई है. अब देखना होगा कि आने वाले चुनाव में क्या आप (Aap) भागीरथ प्रयास कर नया इतिहास रचेगी या फिर वो ही होगा जो पिछले 20 सालों से हो रहा है.
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