ये उत्तराखंड है सब कुछ चलता है : ट्रांसफर एक्ट की खुलेआम उड़ाई धज्जियां

बागेश्वर।  उत्तराखंड में जनता द्वारा चुनी गई सरकार के कामकाज को देख लगता ही नहीं कि ये सरकार जनता के लिए जबावदेह है। भ्रष्टाचार व गुंडई…

बागेश्वर।  उत्तराखंड में जनता द्वारा चुनी गई सरकार के कामकाज को देख लगता ही नहीं कि ये सरकार जनता के लिए जबावदेह है। भ्रष्टाचार व गुंडई के हर रोज नए कारनामें सामने आते हैं लेकिन सरकार गांधी के बंदर बन कर रह गई है। पारदर्शिता की बात कहने वाली सरकार और उसका तंत्र हर रोज भ्रष्टाचार के दलदल में डूबते चले जा रहे हैं। शराब नीति, खनन नीति हो या उत्तरा प्रकरण, इन्होंने जनता को अपनी नीयत जता दी है। जनता को बेवकूफ बनाने के लिए इन्होंने भ्रष्टाचार निवारण के कई पोर्टल बनाए हैं लेकिन ये पोर्टल भी शिकायत करने वाले के लिए आफत ही हैं। समाधान में शिकायत करने के लिए आधार कार्ड, ईमेल, मोबाइल नंबर, पते की अनिवार्यता के चलते कई लोग शिकायत ही नहीं कर पाते हैं। क्योंकि यहां शिकायतकर्ता को गोपनीय रखने के वजाय उसका सारा इतिहास संबंधित विभाग को भेज दिया जाता है। संबंधित विभाग शिकायतकर्ता की सारी डिटेल जिसकी शिकायत की गई है उसे बता देता है। जिस पर शिकायतकर्ता को हर तरीके से चुप करा दिया जाता है।


मसलन आपने शराब की तस्करी, ओवररेट या अन्य कोई शिकायत समाधान पोर्टल में दर्ज कराई। शिकायत का निपटारा या कार्यवाही करने के वजाय विभाग शराब के ठकेदार को आपका नंबर दे दे दिया जाएगा। और शराब का ठेकेदार आपको फिर अपने हिसाब से चुप करा देगा। अब जब भ्रष्टाचार का कीचड़ प्रदेश के मुखिया की जटाओं से ही नीचे को बह रहा हो तो सिस्टम भी इससे कैसे अछूता रह सकता है।
कुछ ऐसा ही एक मामला बागेश्वर के जिला कार्यालय का है। यहां स्थानानतरण अधिनियम 2017 की धज्जियां ही उड़ाते हुए ट्रांसफर के नियमों को ही दरकिनार कर दिया गया। अपने चहेतों को दूरस्थ ट्रांसफर से बचाने के लिए नीचे के पायदानों के नामों को आगे खिसकाकर अन्य का ट्रांसफर कर दिया गया  जो कि ट्रांसफर की अवधि में आते ही नहीं थे। इस बारे में जिलाधिकारी से जब शिकायत की गई तो वो भी कार्यवाही के वजाय जांच के नाम पर मात्र आश्वासन ही देने में लगे हैं। मामले के शिकायत अब कुमाऊ कमिश्नर के दरबार में पहुंची गई है।


बैजनाथ के गड़सेर गांव के गणेश दत्त भट्ट जो कि मुख्य प्रशासनिक अधिकारी के पद से रिटायर्ड हैं, ने आरोप लगाते हुए कहा कि उत्तराखंड शासन ने स्थानानंतरण अधिनियम 2017 के तहत स्थानान्तरणों में वर्षों से चले आ रहे भाई भतीजावाद, धनबल एवं राजबल पर रोक लगाने का भरपूर प्रयास किया तथा स्थानान्तरण पारदर्शी एवं निष्पक्ष होने के लिए स्थानान्तरण अधिनियम की धारा 8 में सुगम से दुर्गम तथा दुर्गम से सुगम स्थानान्तरण करने के लिए इसी अधिनियम की धारा 9 के महत तैंयार की गई पात्रता सूची से अवरोही क्रम में स्थानान्तरण करने की संस्तुति करने का प्रावधान धारा 16 में किया गया। स्थानान्तरण समिति को धारा 8 एवं धारा 9 के तहत विभागीय वैब साइट पर प्रदर्शित एवं पात्र कार्मिकों पर परिलक्षित पात्रता सूची से उनके द्वारा स्थानान्तरण के लिए दिए गए दस विकल्पों के आधार पर स्थानान्तरण की संस्तुति करनी है किन्तु उत्तरा पन्त का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ है कि बागेश्वर जिले के जिलाधिकारी कार्यालय में विभागीय वेबसाइट पर प्रदर्शित सूची में अंकित सेवा अवधि को दरकिनार कर प्रथम से संशोधित पात्रता सूची तैंयार कर उसे वेबसाइट में न दिखाते हुए जिलाधिकारी से स्थानान्तरण आदेश पारित करा दिए गए हैं।


स्थानान्तरण अधिनियम 2017 के अनुसार नंदाबल्लभ पांडे वरिष्ठ लिपिक का तहसील बागेश्वर से तहसील कपकोट स्थानान्तरण होना था। क्योंकि उनकी प्रथम नियुक्ति एक अक्टूबर 1986 तथा सुगम क्षेत्र में वह 19 जून 1998 से कार्यरत हैं। यहां विभाग के कुछ कर्मचारियों ने गोलमाल कर जिलाधिकारी के समक्ष उनकी सेवा सात मई 1999 दिखाकर उन्हें स्थानान्तरण परिधि से बाहर रख दिया। जबकि तहसील
गरूड़ में तैनात बसंत बल्लभ कांडपाल जो कि दिनांक एक अप्रेल 1999 को अनुसेवक के पद पर आए तथा दिनांक तेरह जून 2006 को लिपिक बने को सुगम में सबसे अधिक अवधि से कार्यरत कार्मिक के रूप में तहसील गरूड़ से तहसील कपकोट स्थानान्तरित कर दिया गया। जबकि नंदा बल्लभ पांडे जो दिनांक एक अक्टूबर 1986 से अनुसेवक के पद पर हैं तथा दिनांक 21 फरवरी 2006 को लिपिक बने हैं कि सेवा को छुपाकर दिनांक एक मई 1999 से कार्यरत दिखाकर उन्हें स्थानान्तरित होने से बचाया गया है। यह भ्रष्टाचार की मिसाल के साथ ही साक्ष्य छिपाना, भारतीय दंड विधान में धारा 201 के तहत दण्डनीय अपराध है।

गणेश दत्त भट्ट कहते हैं कि उन्होंने जिलाधिकारी बागेश्वर के स्तर पर हुए इस अपराध में उत्तराखंड की विधायिका का कार्यपालिका द्वारा उड़ाए गए मजाक की ओर वट्सएप और ईमेल के माध्यम से ध्यान आकृष्ट किया तथा खुद भी प्रभावित के डाटा अधिनियम की धारा 22/4 के तहत प्रार्थना पत्र देकर न्याय की गुहार लगाई लेकिन उस प्रार्थना पत्र को आयुक्त कुमाउं मंडल को निस्तारण हेतु अग्रसारित करने के स्थान पर सर्वप्रथम दूरभाष से सामान्य सहायक के माध्यम से कार्यभार छोड़ने का दबाव बनाया गया तथा दिनांक नौ जुलाई 2018 को अपर जिलाधिकारी द्वारा मौखिक रूप से दबाव बनाया गया। और दूसरे दिन प्रार्थी को एक तरफा कार्यमुक्त दिखा दिया गया। जबकि अधिनियम की धारा 22/4 के तहत प्रार्थी को तब तक कार्यमुक्त नहीं किया जा सकता है जब तक लिखित आदेश प्रदान न किया जाए। प्रार्थी अधिनियम के तहत न्याय न मिलने से आहत होकर अवसाद की स्थिति में आ गया।


गणेश दत्त भट्ट का कहना है कि विभागीय वेब साइट पर किए गए गोलमाल से धारा 8 एवं 9 के प्रावधानों का खुला उल्लंघन किया गया है। उन्होंने जिलाधिकारी से सेवा छुपाने वालों के विरूद् धारा 24 के तहत कार्यवाही कर प्रार्थी को न्याय दिलाने की मांग की है।

अब देखना यह है कि क्या जिलाधिकारी महोदया अपने विभाग में हो रहे इस भ्रष्टाचार पर कार्यवाही करेंगी या सत्ता के दबाव में ‘जांच’ के नाम पर मामले को लटकाते रहेंगी ?