काठगोदाम की रावत कॉलोनी में एक बैंक के रिलेशनशिप मैनेजर अजीम खान के घर हुई लाखों की चोरी के बाद पुलिस की कार्यशैली सवालों के घेरे में आ गई है। चोरी की घटना के 19 दिन बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज की, जबकि पीड़ित ने आठ मार्च को ही पुलिस को सूचना दे दी थी। पुलिस ने पहले तो घटना को संदिग्ध माना, फिर चोरी गए गहनों की संख्या को लेकर अपनी गणना करने लगी। इस दौरान मामला टलता रहा और अंततः 19 दिन बाद मुकदमा दर्ज किया गया।
अजीम खान छह मार्च को अपने परिवार के साथ बरेली गए थे। जब आठ मार्च की सुबह वे घर लौटे, तो उन्होंने देखा कि दरवाजे का ताला टूटा हुआ था। अंदर जाकर देखा तो नकदी और गहने गायब थे। घर का हाल देखकर पूरा परिवार स्तब्ध रह गया। उन्होंने तुरंत पुलिस को सूचना दी और तहरीर भी सौंपी, लेकिन पुलिस ने पहले मामले को गंभीरता से नहीं लिया। किसी ने चोरी को संदिग्ध करार दिया, तो किसी ने चोरी गए सामान का मूल्यांकन अपने हिसाब से करना शुरू कर दिया।
यह पहला मामला नहीं है जब काठगोदाम पुलिस ने चोरी की एफआईआर दर्ज करने में इतनी देर की हो। जीतपुर नेगी में भी 31 जनवरी को चंदन सिंह गुसाईं के घर चोरी हुई थी। जब वे प्रयागराज महाकुंभ से लौटे, तो उन्होंने घर का ताला टूटा पाया और लाखों के जेवरात गायब थे। इस मामले में भी पुलिस ने 47 दिन तक टालमटोल किया और फिर मुकदमा दर्ज कर अगले ही दिन चोर को पकड़ने का दावा कर दिया। लेकिन बरामदगी के नाम पर केवल एक अंगूठी और एक मांग टीका ही मिला। नकदी को लेकर चोर ने बताया कि उसे 97 हजार रुपये मिले थे, जो उसने जुए में गवां दिए।
इन घटनाओं से यह साफ है कि चोरी की एफआईआर दर्ज करने में पुलिस की लापरवाही और बरामदगी के नाम पर लीपापोती आम हो गई है। यदि पुलिस सक्रियता दिखाए और तुरंत कार्रवाई करे, तो शायद चोरी गए सामान को सही समय पर बरामद किया जा सकता है। लेकिन जब एफआईआर दर्ज करने में ही इतनी देरी हो, तो अपराधियों को खुली छूट मिलना स्वाभाविक है। पीड़ितों के लिए यह स्थिति और भी तकलीफदेह है, जब वे अपनी जमा-पूंजी खोने के बावजूद न्याय की आस में पुलिस के चक्कर लगाते रहते हैं।