ठेले में सौ रुपए का फ्रिज

  जगमोहन रौतेला    सूरज का ताप हर दिन तेजी के साथ बढ़ रहा है . तेज होते ताप के बीच हर किसी को पीने…

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  जगमोहन रौतेला 

  सूरज का ताप हर दिन तेजी के साथ बढ़ रहा है . तेज होते ताप के बीच हर किसी को पीने के लिए ठंडे पानी की आवश्यकता होती है  , ठंडे पानी की चाह में हमारे हाथ बरबस ही घर में फ्रीज की ओर बढ़ जाते हैं और हम बिजली की मशीन से ठंडा किया गया पानी गटागट गले से नीचे उतारने लगते हैं , बिना यह सोचे कि बेहद ठंडा यह पानी हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी है . डॉक्टर अब फ्रिज का पानी पीने से मना भी करने लगे हैं , इसके बाद भी जबरन व्यस्त बना दी गई जीवन शैली के बीच हम इस ओर से लापरवाह ही बने रहते हैं ।

फ्रिज के पानी से होने वाली बीमारियों से बचना है तो आज ही फ्रीज के पानी को टा- टा , बाय – बाय करें और ठेले में बिकने वाला सौ रुपए वाला फ्रिज ,हॉ मैं बात कर रहा हूँ सौंधी महक वाले मिट्टी के घड़े , सुराही की . इन दिनों हर गली – मोहल्ले में ठेले में मिट्टी के घड़े व सुराही बेचने वाले आ रहे हैं . घड़े के आकार के अनुसार इनकी कीमत 80 रुपए से लेकर 250 रुपए तक है . सुराही भी 150 रुपए से लेकर 200 रुपए तक की कीमत के हैं . घड़े व सुराही का पानी मिट्टी की सौंधी खुशबू के साथ उसके सभी प्राकृतिक गुणों से भरपूर भी होता है।  मैंने जिस ठेले वाले से मिट्टी का फ्रिज खरीदा वह बरेली ( उत्तर प्रदेश ) जिले के बहेड़ी तहसील के गोहल्युईया गॉव का रहने वाले प्रेमपाल हैं . जो पिछले 20 वर्षों से गर्मियों में ठेले में घड़े , सुराही रखकर हल्द्वानी के मोहल्ले – मोहल्ले बेच रहे हैं . घड़े व सुराही के अलावा प्रेमपाल गमले , गुल्लक , मिट्टी के बड़े कटोरे भी बेचते हैं . ये कटोरे दही जमाने के काम आते हैं . कुछ लोग इन्हें चिड़ियों को पानी पिलाने के लिए भी उपयोग में लाते हैं।

यह पूछने पर कि फ्रिज के  हर रोज बढ़ते प्रचलन के जमाने में क्या घड़े व सुराही को बेचने का उनका धंधा मन्दा नहीं पड़ा है ? प्रेमपाल इससे इंकार करते हैं और कहते हैं , ” बाबू जी ! कोई फर्क नहीं पड़ा . मेरे हर रोज ठीक – ठाक मटके व सुराही बिक जाते हैं ” . लगभग कितना मिल जाता है हर रोज ? पूछने पर प्रेमपाल ने कहा ,” लगभग 200 से 400 रुपए हर रोज कमा लेता हूँ “. लोगों द्वारा घड़े व सुराही खरीदने का कारण पूछने पर प्रेमपाल ने कहा कि बहुत सारे लोगों को फ्रीज का पानी ” सूट ” नहीं होता है और कई लोगों ने कभी फ्रिज का पानी पिया ही नहीं है . वे घड़े व सुराही का ही पानी पीते हैं ।

प्रेमपाल हल्द्वानी में अकेले ही रहते हैं . उनका परिवार गॉव में ही रहता है . मिट्टी के सारे बर्तन बरेली से ही आते हैं . गाड़ी में लाते समय व मोहल्ले में घूमते समय जो भी टूट – फूट होती है , वह सब प्रेमपाल के ही हिस्से आती है। उस टूट – फूट को लगाकर ही वे मिट्टी के बर्तनों की कीमत तय करते हैं . उसमें ग्राहक द्वारा कीमत को लेकर की जाने वाली मग़जमारी भी शामिल है , जिसके बाद पॉच – दस से लेकर बीस – पच्चीस रुपए तक कई बार कम करने पड़ते हैं ।

 प्रेमपाल ग्राहक को जो भी मटका , घड़ा , सुराही देते हैं , पानी डालकर उसे चैक करने के लिए वे ग्राहक को पूरे दस – पन्द्रह मिनट देते हैं . इस बीच घड़े , सुराही के ” लीक ” न करने पर ही वह रुपए लेते हैं और लीक होने पर उसे तुरन्त बदल देते हैं . दो – चार दिन बाद अगर प्रेमपाल उसी मोहल्ले में फिर से जाते हैं तो अपने पुराने ग्राहक से वह यह पूछना नहीं भूलते कि बाबू जी – माता जी – बहन जी  , घड़ा व सुराही लीक तो नहीं कर रहा है ? अगर लीक होने की शिकायत हो तो वह इसके बाद भी उसे बदल देने को तैयार रहते हैं . मतलब ये कि ग्राहक की संतुष्टी की प्रेमपाल का मूल मन्त्र है अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए क्या आप प्रेमपाल जैसे लोगों से ठेले में बिकने वाला सौ रुपए का फ्रिज नहीं खरीदना चाहेंगे ?