यहां देखें बग्वाल का वीडियो
हर वर्ष दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा के दिन आयोजित होने वाली बग्वाल के बारे में बड़े बुजुर्ग बताते है कि मान्यता है कि वर्षो पूर्व किसी आतताई को भगाने के लिए दोनों गांवो के लोगों ने एकजुट होकर उसे पत्थरबाजी कर पकड़ लिया था । और बाद में उसके भाग जाने और पानी पीने की मोहलत देने के अनुरोध पर ही गांव वासियों ने उसे छोड़ा था। हालाकिं नई पीढी इस कहानी के बारे में भी ज्यादा नहीं जानती है। पत्थर युद्ध नदी के दोनों छोरों से खेला जाता है और जिस टीम का व्यक्ति सबसे पहली पानी पीने पहुंच जाता है वही टीम विजयी घोषित हो जाती है। इसके साथ ही युद्ध का समापन हो जाता है। इस युद्ध की सबसे बढ़ी खासियत यह है कि युद्ध के दौरान पत्थरों से चोटिल हो जाने वाला योद्धा किसी दवा का इस्तेमाल नहीं करता बल्कि बिच्छू घास के उबटन को घाव पर लगाया जाता है। इस बार की बग्वाल में कोटयूड़ा खाम के तीन य़ोद्धा चोटिल हुए जिनका पंरपरागत तरीके से उपचार किया गया। पाटिया निवासी भगवती प्रसाद पाण्डे ने बताया कि पूर्वजों के दौर से चली आ रही यह परिपाटी जारी है लेकिन युद्ध का आगाज कबसे और किस कारण हुआ इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। यहां पर यह भी बताना जरूरी है कि सदियों से आपसी आयोजन से चल रही इस परम्परा को उभारने और चम्पावत के देवीधूरा की तर्ज पर इसका प्रचार प्रसार करने के प्रशासन द्वारा कोई ठोस पहल नहीं की जा सकी है इसीलिए यह आयोजन प्रसिद्धि नहीं पा सका है।