क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट में बदलाव नहीं हुआ तो कई राज्यों में बंद हो जाएंगे निजी अस्पताल,आएएमए ने सरकार से की यह मांग,छह दिन से बंद चल रहे है निजी क्लीनिक

आइएमए की मांग एक्ट में संगठन के सुझाव शामिल करे सरकार अल्मोड़ा। क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट को लेकर सरकार और निजी डाक्टरों में एक राय नहीं…

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आइएमए की मांग एक्ट में संगठन के सुझाव शामिल करे सरकार

अल्मोड़ा। क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट को लेकर सरकार और निजी डाक्टरों में एक राय नहीं बन रही है। डाक्टर इस एक्ट के विरोध में पिछले छह दिन से अपने क्लीनिक और अस्पताल बंद कर हड़ताल पर हैं। इससे आम जनता और लोगों को उपचार के लिए इधर उधर भटकना पड़ रहा है। इस क़ानून को लेकर चिकित्सा संगठनों और चिकित्सकों को लेकर इसका विरोध किया जा रहा है। अल्मोड़ा में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के जिला सचिव डा.एनएस चौहान का कहना है कि यह एक्ट उत्तराखंड जैसे दुर्गम, पर्वतीय और छोटे राज्य के लिए व्यवहारिक नहीं है। यदि जल्द ही एक्ट के नियमों में बदलाव नहीं हुआ तो उत्तराखंड जैसे राज्यों में जहां चिकित्सा सुविधा मजबूत नहीं हैं वहां निजी अस्पताल नियमों की सख्ती के चलते बंद हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि संगठन लगातार सरकार से एक्ट में बदलाव के लिए आइएमए के सुझावों को मानने की अपील कर रहा है यदि उनकी मांगों पर गौर नहीं किया गया तो प्रांतीय और राष्ट्रीय नेतृत्व से जो दिशा निर्देश मिलेंगे उसके अनुसार अगली रणनीति बनाई जाएगी।

मालूम हो कि सरकार पिछले दो वर्षों से इस एक्ट को लागू नहीं कर पाई है। एक्ट कहता है कि इसके लागू होने के बाद खासकर प्राइवेट अस्पतालों की कमाई पर सीधा असर पड़ेगा। क्योंकि इस क़ानून में मरीज को कॉलेज में पारदर्शिता लाने के लिए तमाम नियम हैं, जिससे कोई भी चिकित्सक या अस्पताल मरीज से मनमाने पैसे नहीं ले सकता। लेकिन आइएमए इस कानून के कुछ मुद्दों का डॉक्टर जोर-शोर से विरोध कर रहे हैं, जिससे अभी तक ये कानून लागू नहीं हो पाया है।

कब आया था कानून

वर्ष 2010 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट नाम का एक कानून पारित किया था। इस कानून के माध्यम से हर प्राइवेट अस्पताल, डायग्नोस्टिक सेंटर, नर्सिंग होम्स, क्लीनिक्स की जवाबदेही तय थी। जिसमें ये सुनिश्चित करना था कि वह एक्ट से जुड़े मापदंडों का पालन कर रहें हैं या नहीं। ऐसा न करने पर अस्पतालों पर जुर्माने का प्रावधान था।
शुरुआत में ये कानून अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मिज़ोरम और सिक्किम के लिए बनाया गया था और दूसरे राज्यों के पास विकल्प था कि या तो वो इसे अपने यहां लागू करें या फिर इस विषय पर अपना कोई अलग क़ानून बनाएं। इसके बाद पांच राज्य राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, असम और उत्तराखंड ने इस क़ानून को स्वीकार कर लिया लेकिन इसको लागू करने में कई चुनौतियां हैं।

ये हैं क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट

1— अस्पताल आने वाले हर मरीज का इलेकट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड और मेडिकल हेल्थ रिकॉर्ड अस्पताल प्रशासन के पास सुरक्षित होना चाहिए।

2- इस एक्ट के मेटरनिटी होम्स, डिस्पेंसरी क्लिनिक्स, नर्सिंग होम्स, एलोपैथी, होम्योपैथी और आयुर्वेदिक से जुड़ी स्वास्थ्य सेवाओं पर समान रूप से लागू होता है।

3- हर अस्पताल, क्लीनिक्स का खुद का रजिस्ट्रेशन भी जरूरी है जिससे ये सुनिश्चित किया जा सके कि वो लोगों को न्यूनतम सुविधाएं और सेवाएं दे रहे हैं।

4- इस एक्ट के तहत प्रत्येक स्वास्थ्य सुविधा देने वाले संस्थानों का ये कर्तव्य है कि किसी रोगी के इमरजेंसी में पहुंचने पर उसको तुरंत स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करवाएं जिससे रोगी को स्थिर किया जा सके।
5- प्रत्येक अस्पताल अपनी सेवाओं की कीमत केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर ही ले सकेंगे। इसके अलावा अस्पतालों को स्वास्थ्य सुविधाओं के एवज में ली जा रही कीमत को अंग्रेजी और स्थानीय भाषा में चस्पा करना होगा।

6- इस एक्ट से जुड़े प्रावधानों का उल्लंघन करने पर अस्पताल का रजिस्ट्रेशन रद्द से लेकर, उन पर जुर्माने का प्रावधान है।
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इन बातों का विरोध कर रहे हैं डॉक्टर

डॉक्टरों की सबसे ज़्यादा नाराज़गी सेक्शन 12(2) से है। डाक्टरों का कहना है कि इस सेक्शन के मुताबिक अगर कोई रोगी इमरजेंसी में अस्पताल पहुंचता है तो उसे वो सभी सुविधाएं मुहैया करवाई जाएंगी जिससे रोगी को स्टेबल किया जा सके लेकिन क़ानून में इसका कहीं कोई ज़िक्र नहीं है कि इलाज का खर्च कौन उठायेगा। आईएमए का मानना है कि इस कानून से भ्रष्टाचार और इंस्पेक्टर राज बढेगा।