घिबली ट्रेंड की चकाचौंध में छुपा खतरा: एआई प्लेटफॉर्म पर तस्वीरें अपलोड करना बन सकता है पहचान चोरी और साइबर अपराध का रास्ता

इन दिनों सोशल मीडिया पर एआई जनरेटेड तस्वीरों का एक नया क्रेज तेजी से फैल रहा है, जिसे ‘घिबली स्टाइल’ नाम दिया गया है। जैसे…

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इन दिनों सोशल मीडिया पर एआई जनरेटेड तस्वीरों का एक नया क्रेज तेजी से फैल रहा है, जिसे ‘घिबली स्टाइल’ नाम दिया गया है। जैसे ही आप इंस्टाग्राम, फेसबुक या ट्विटर खोलते हैं, वहां आपको घिबली थीम में बनी अनगिनत तस्वीरें नजर आने लगती हैं। आम लोग ही नहीं, बल्कि बड़े-बड़े राजनेता और फिल्मी सितारे भी इस ट्रेंड में शामिल हो चुके हैं। हर कोई अपने और अपने बच्चों के एनीमेशन लुक्स को बड़े उत्साह से साझा कर रहा है। मगर इस मजेदार लगने वाले ट्रेंड के पीछे छिपे खतरे की चर्चा अब तेज होने लगी है।

एआई टूल्स की मदद से इन तस्वीरों को बनाना जितना आसान और आकर्षक लगता है, उतना ही खतरनाक यह हो सकता है यदि आप बिना सोचे-समझे अपनी तस्वीरें किसी अंजान प्लेटफॉर्म पर अपलोड कर रहे हैं। कई विशेषज्ञों का मानना है कि एआई तकनीक जितनी तेज़ी से विकसित हो रही है, उतनी ही सावधानी से इसके इस्तेमाल की भी ज़रूरत है। क्योंकि एक बार आपकी तस्वीर या निजी जानकारी किसी सर्वर पर अपलोड हो गई, तो उसका नियंत्रण आपके हाथ से पूरी तरह निकल सकता है।

कुछ साल पहले ऐसी ही एक घटना सामने आई थी जब एक निजी कंपनी ने लाखों लोगों की तस्वीरें बिना अनुमति के सोशल मीडिया और वेबसाइट्स से एकत्र कर ली थीं और फिर वह डाटा कानून-व्यवस्था एजेंसियों और निजी कंपनियों को बेच दिया गया। इतना ही नहीं, बीते वर्ष ऑस्ट्रेलिया की एक नामी कंपनी का डेटा लीक होने की घटना सामने आई थी जिसमें लाखों लोगों के चेहरे के स्कैन, लाइसेंस और व्यक्तिगत पते तक सार्वजनिक हो गए थे। इसके बाद कई लोग पहचान चोरी और साइबर धोखाधड़ी का शिकार बने।

देहरादून में साइबर क्राइम विभाग से जुड़े अधिकारी अंकुश मिश्रा बताते हैं कि इस समय कई नामों से चल रहे एआई आधारित ट्रेंड जैसे घिबली, गिबली या जिबली अभी तक किसी बड़े अपराध से नहीं जुड़े हैं, लेकिन इन्हें पूरी तरह सुरक्षित कहना भी सही नहीं होगा। उन्होंने यह भी बताया कि अक्सर जब कोई डेटा लीक होता है, तो उसका मूल कारण होता है हमारी ही लापरवाही — जैसे किसी भी प्लेटफॉर्म पर सुरक्षा विकल्पों की अनदेखी करते हुए तस्वीरें अपलोड करना या जानकारी साझा कर देना।

लोगों को यह जान लेना चाहिए कि जो चीज उन्हें मनोरंजन लग रही है, वही उनकी निजी पहचान के लिए खतरा बन सकती है। फेस रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी का दायरा अब इतना बढ़ चुका है कि 2030 तक यह उद्योग अरबों डॉलर का हो जाएगा। कई बड़ी कंपनियों पर पहले ही आरोप लग चुके हैं कि वे अपने एआई सिस्टम को यूजर्स की तस्वीरों से ट्रेन करती हैं। PimEyes जैसी वेबसाइटें तो केवल एक फोटो के ज़रिए आपके पूरे ऑनलाइन जीवन की जानकारी निकाल सकती हैं — जो किसी के लिए भी गंभीर परिणाम ला सकती है।

इसलिए ज़रूरी है कि किसी भी डिजिटल ट्रेंड में शामिल होने से पहले हम उसकी संभावित जोखिमों को समझें और सतर्कता के साथ कदम उठाएं। क्योंकि आज का एक क्लिक, कल आपकी पहचान का सबसे बड़ा खतरा बन सकता है।