दिल्ली में राग आधारित पहाड़ी रामलीला का स्वाद

इस बार 28 और 29 अक्टूबर, दिल्ली एनसीआर में उत्तराखंड के उन प्रवासियों के लिए यादगार होने जा रहा है जिन्हें उत्तराखंड की राग आधारित…

इस बार 28 और 29 अक्टूबर, दिल्ली एनसीआर में उत्तराखंड के उन प्रवासियों के लिए यादगार होने जा रहा है जिन्हें उत्तराखंड की राग आधारित राम​लीला देखे एक अरसा हो गया है, लेकिन उनकी स्मृतियों में उसके सुर, ताल और अभिनय का नॉस्टेल्जिया तैरता रहता है.

आयोजन समिति से जुड़े राकेश जोशी कहते हैं, ”इस आयोजन के ज़रिए हमारी कोशिश ख़ासकर पहाड़ की उस प्रवासी पीढ़ी को रामलीला से जुड़ी उनकी पुरानी यादों में ले चलना है जिनके लिए अब पहाड़ में जाकर रामलीला देखना संभव नहीं है.”
पहाड़ की रामलीला पारसी थिएटर पर आधारित है जहां संवाद राग आधारित गायन के ज़रिए होते हैं. पहाड़ों में रामलीला की शुरुआत 1860 में अल्मोड़ा के बद्रेश्वर मैदान में हुई थी, यहीं से इसका प्रसार पर्वतीय क़स्बों और गांवों तक पहुंचा. क्योंकि पहाड़ी रामलीला का आधार भी तुलसीदास लिखित रामचरित मानस ही है तो इसमें अवधी और अन्य भाषाओं का मिश्रण मिलता है.

रामलीला के इस आयोजन का निर्देशन कर रहे संगीतज्ञ संजय जोशी कहते हैं, ”हालॉंकि बीते कुछ समय से अलग—अलग मंचों पर पहाड़ी रामलीला के आयोजन में बग़ैर गायन के भी संवाद इस्तेमाल किए जाने लगे हैं. लेकिन हमारा मक़सद है कि हम पहाड़ के प्रवासियों को रामलीला का बिल्कुल पारंपरिक स्वाद दें, इसलिए हमारे सारे संवाद राग आधारित गायन के साथ ही हैं. यही इस आयोजन की ख़ासियत भी है.”

पहाड़ी रामलीलाओं में चौपाई, दोहा, सोरठा को प्रमुख तौर पर भैरवी, मालकौंश, जयजयवंती, विहाग, पीलू और माण रागों में गाया जाता है. आम तौर पर दादरा और कहरवा तालों के साथ ही पहाड़ी होली के ठेके का भी इस्तेमाल होता है.

हालॉंकि इस आयोजन का पहाड़ की प्रवासी बुजुर्ग पीढ़ी के लिए तो ख़ासा महत्व होने ही वाला है लेकिन नई पीढ़ी के लिए भी यह आयोजन एक अनोखा अनुभव बन रहा है. आयोजन से पहाड़ के प्रवासी युवा और बच्चे भी जुड़ रहे हैं. रामलीला में कैकई का किरदार निभा रही शिवानी पंत ने कभी पहाड़ी रामलीला नहीं देखी है लेकिन यह उनके लिए एक लाजवाब अनुभव बन रहा है. वह कहती हैं, ”मेरी पैदाइश दिल्ली की ही है इसलिए पहाड़ी रामलीला देखने का मुझे कभी मौका नहीं मिला. लेकिन इस आयोजन ने रामलीला और इसके ज़रिए पर्वतीय संस्कृति के एक ऐसे हिस्से से मेरा परिचय कराया है जिसके बारे में मुझे अब तक कुछ नहीं मालूम था.”

इसी क्रम में सीता का अभिनय कर रही मनीषा जोशी कहती हैं, ”तालीम के दौरान मुझे थिएटर के इस ख़ास तरह के अंदाज के बारे में पता चला है और मुझे राग आधारित कई प्रसंगों के गायन और मंचन का तरीका भी सीखने को मिला है.”

आयोजन समिति से जुड़े राजेन्द्र जोशी बताते हैं, ”इस रामलीला के आयोजन में अधिकतर अभिनय कर रहे लोग पहली बार रामलीला के मंच पर उतरने वाले हैं. अधिकतर लोग युवा हैं और पर्वतीय संस्कृति से जुड़ने का उनका उत्साह देखने लायक है.”

आयोजन समिति के सदस्य महेश जोशी ने बताया कि पारंपरिक तौर पर पहाड़ी रामलीला का आयोजन 10 दिनों का होता है लेकिन समय के अभाव में इसे 2 दिनों में समेटा गया है. वे कहते हैं, ”हमने स्क्रिप्ट पर काफी काम किया है ताकि सारे ही महत्वपूर्ण प्रसंगों का मंचन हो सके और दर्शक पारंपरिक अंदाज़ में पूरी रामकथा का आनंद ले सकें.”

पर्व​तीय राम​लीला के इस आयोजन को संभव बनाने के लिए संजय जोशी(CA), एलआर पंत, नीरज लोहनी, चंद्रेश पंत, गिरिजा जोशी, निर्मल जोशी, कैलाश पांडे, योगेश ओली, यश अवस्थी, प्रकाश जोशी, भुवन जोशी, शेखर पंत, समेत दिल्ली में पर्वतीय संस्कृति को लेकर सजग कई लोगों सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं.

रामलीला का यह मंचन दिल्ली आईटीओ ​में स्थित प्यारे लाल ऑडिटोरियम में होगा. आयोजन समिति का कहना है कि इसे लेकर सारी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं.