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आपात काल (Emergency) के 45 साल- वो रात कुछ अजीब थी

की आधी रात! घड़ी में नई तारिख टंगने वाली थी,देश की जनता नई सुबह के सुहाने सपने को लेकर गहरी मीठी नींद के आगोश में थी। और एक नई सुबह का इंतजार कर रही थी। सुबह समय पर हुई लेकिन आंखे खुली तो मानव को मानव समझने वाले लोकतात्रिक ​अधिकार जेबी हो गए थे।सत्ता का गलियारा इसे अनुशासन का नाम देकर अपनी करनी को जायज ठहराने की कोशिश कर रहा था।

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