सिस्टम की अनदेखी:जिस फैक्ट्री ने गांवों के पलायन को रोका,आज लटकी बंदी की तलवार!

Newsdesk Uttranews
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अल्मोड़ा मैग्नेसाईट फैक्ट्री में तीन महीने से कर्मचारियों को नहीं मिली तनख्वाह

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अल्मोड़ा: अल्मोड़ा और बागेश्वर के सीमा पर स्थित 51 साल पुरानी अल्मोड़ा मैग्नेसाईट फैक्ट्री जबरदस्त आर्थिक संकट से जूझ रही है. कभी आस पास के दो दर्जन से अधिक गांवों को प्रत्यक्ष और अप्रत्क्ष रोजगार देने वाली यह फैक्ट्री ( factory)अब बंदी के कगार पर है. हालत यह है कि यहां काम करने वाले 500 से अधिक कर्मचा​रियों को तीन माह से वेतन नहीं मिल पाया है. फैक्ट्री संचालकों का साफ कहना है कि इस स्थिति में यह उद्योग ज्यादा नहीं चल पाएगा.

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मैग्नेसाईट फैक्ट्री (Magnesite factory)का पंजीकृत कार्यालय अल्मोड़ा में है. लेकिन फैक्ट्री अब बागेश्वर जिले में स्थापित है. 9171 में यह उद्यम यहां खुला था यहां से कीमती मैग्नेसाईट निकाला जाता है जो देश के विभिन्न हिस्सों में सप्लाई किया जाता रहा है. समय बीतने के साथ ही फैक्ट्री को आय बढ़ाने के लिए अन्य विकल्पों का सहारा मिला सबसे बड़ा सहारा था मैग्नेसाईट निकालने के दौरान निकलने वाले मलबे को क्रस कर उस मैटेरियल को बेचना.

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इस काम के शुरु होने के फैक्ट्री साल में 36 करोड़ तक का कारोबार (Business up to 36 crores)करती थी.एक करोड़ प्रतिवर्ष तो फैक्ट्री राजस्व ही जमा करती है. करीब 500 के आस पास स्थानीय लोग है जो प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से फैक्ट्री से जुड़ कर आजीविका चलाते हैं. इसी स्थानीय रोजगार का परिणाम है कि आसपास के दो दर्जन गांवों में 90 प्रतिशत लोग गांवों में ही हैं यानि पलायन(migration) नहीं है.

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कहानी इसके बाद शुरु हुई सरकार ने कंपनी की आय बढ़ाने के प्रयासों को देखते हुए मैग्नेसाईट निकालने के दौरान निकलने वाले मलबे को क्रसर करने का आदेश दिया. बकायदा ​जीओ(G.O.) जारी किया गया. 2003 से लंबे समय तक इसी आदेश के तहत कार्य किया लेकिन जब से रवन्ना आन लाइन हुआ तब से इनके ई—रवन्ने पर रोक लग गई है.लीज में नहीं जुड़ने के चलते ही रवन्ने पर रोक लग गई है. यहां खनन विभाग(Mining department) से सरकार स्तर तक गुहार लग चुकी है लेकिन इसओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है.

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जबकि फैक्ट्री प्रबंधन के मुताबिक वाइल्ड लाईफ ट्रीब्यूनल(Wild life tribunal) से भी क्लीन चिट मिल गई है. पर्यावरण विभाग भी अपनी मंजूरी दे चुका है.इस फैक्ट्री में स्टील आथेरिटी आफ ​इंडिया,टाटा का भी शेयर है. पहले यहां मैग्नेसाईट निकालने के लिए दो धवन फैक्ट्री चलती थी अब एक का ही संचालन होता है.

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हालांकि आय बढ़ाने की जुगत में लगे प्रबंधन ने अब ब्रिक यूनिट भी खोल ली है लेकिन सबसे बड़ा आय का जरिया है क्रसर जो खनन के बिना केवल मबले के रूप में संचालित होता है. यहीं जरिया बंद होने से फैक्ट्री प्रबंधन सकते में है. सबसे अधिक परेशानी कर्मचारियों की हो रही है. उनका यह भी आरोप है कि किसी बड़े खनन सिंडिकेट का भी इसमें बड़ा हाथ है जो यहं खेल करा रहा है.

कर्मचारी नेता रंजीत रौतेला और भगवत सिंह का कहना है कि उनके सामने बेरोजगारी सी स्थिति आ गई है. पहले यहीं काम मिल जाने से वह बाहर नहीं गए अब यदि फैक्ट्री बंद हो जाएगी तो वह आजीविका कैसे चलाएंगे.

इस संबंध में फैक्ट्री के एमडी योगेश शर्मा और जीएम जॉब चेरियन ने कहा कि वह अपने स्तर से लगातार शासन से पत्रव्यवहार और वार्ता कर रहे हैं उम्मीद है कि जल्द सब कुछ सामान्य हो जाएगा. लेकिन यह जरूर कहा कि ऐसी ही स्थिति रही तो फैक्ट्री का संचालन कठिन हो जाएगा.

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