ऐतिहासिक स्याल्दे-बिखौती मेले(Syalde Bikhoti Fair) में ओढ़ा भेंटने पहुंचे लोगों ने बनाए रखी सोशल डिस्टेंसिंग
अल्मोड़ा/ द्वाराहाट। द्वाराहाट में होने वाले ऐतिहासिक स्याल्दे-बिखौती मेला (Syalde Bikhoti Fair)पहली बार वैश्विक स्तर पर हुए कोराना महामारी के चलते नहीं हो पाया।
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हालाकि मेले का आयोजन नहीं होने से मेला आने के शौकीन और व्यवसाय करने वालों को निराशा हुई है लेकिन अपनी विरासत एवं परम्पराओं को संजोए रखने की उमंग लोगों में पूरे चरम पर दिखी।
लोगों ने यहां ओढ़ा भेटने की रश्म तो निभाई लेकिन एक दूसरे से दूर दूर रहे यह भी उम्मीद जताई कि अगले बार इस मेले को और भव्य रूप से मनाने का अवसर मिलेगा।
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मंगलवार को मुख्य मेले के दिन आल व गरख धड़े के थोकदारों द्वारा मुख्य बाजार में स्थित ओड़ा स्थल पर पहुंचकर पूजा के उपरांत ओढ़ा भेंटने की रस्म अदा की ।
सीमित संख्या में मेलार्थियों ने अपनी बारी के अनुसार ओढ़ा भेंटने में कोरोना वायरस के चलते सामाजिक दूरी भी बनाये रखी।
इस दौरान निश्चित दूरी में रहकर थोकदारों ने ओड़ा स्थल पर दमुआं, नगाड़े व नरसिंहा बजाकर कोरोना वायरस से अपने घरों में कैद लोगों ने अपने छत पर से ही स्याल्दे-बिखौती की याद को ताजा किया।
वहीं सोसल मीडिया में पूर्व वर्ष के स्याल्दे-बिखौती (Syalde Bikhoti Fair)मेले की खूब विडियो वायरल कर लोग मेले की यादों को ताजा कर रहे हैं।
द्वाराहाट से सात किलोमीटर दूर विमांण्डेश्वर महादेव मंदिर में रात्री के बिखौती मेले से इस भव्य ऐतिहासिक पर्व की शुरूआत होती है।
उसके बाद वैशाख मास के 1 व 2 गते छोटी स्याल्दे एवं बड़ी स्याल्दे के रूप में आल,गरख व न्यौज्यूला धड़े के मेलार्थी अपनी बारी के अनुसार गॉव-गॉव से नगाड़े-निसाणों के साथ हजारों की संख्या में झोड़े, चॉचरी, भगनौल व लोकगीतों को छिमटे व हुड़के की थाप में गाते हुए एैतिहासिक स्थल पर पहुंचकर ओड़ा भेटने की रस्म अदा करते थे।
लेकिन पहली बार यह मेला कोरोना महामारी के चले नहीं हो पाया। सिर्फ औपचारिक रूप से रस्म अदायगी की गई। क्षेत्र के कई बुजुर्ग मोहन चन्द्र तिवारी, प्रताप सिंह बिष्ट आदि लोगों से बताया कि स्याल्दे-बिखौती मेले को हमने कभी नहीं होते नहीं देखा।