“जब जब कोसी बहती है स्वामी विवेकानंद कहती है…”

नीरज भट्ट अल्मोड़ा। राष्ट्रीय युवा दिवस यानी युगपुरुष स्वामी विवेकानंद जन्म दिवस के अवसर पर कर्बला स्थित विवेकानंद स्मृति स्थल पर ये नारे नौनिहालों की…

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नीरज भट्ट

अल्मोड़ा। राष्ट्रीय युवा दिवस यानी युगपुरुष स्वामी विवेकानंद जन्म दिवस के अवसर पर कर्बला स्थित विवेकानंद स्मृति स्थल पर ये नारे नौनिहालों की निश्छल आवाज़ में उस महान आत्मा का आह्वान कर रहे हैं जिन्होंने विश्व में भारत को एक आध्यात्मिक और गौरवपूर्ण छवि दी। चीड़ के आवरण में स्थित इसी स्थल में सन 1990 में अपने पहले

अल्मोड़ा आगमन में स्वामी विवेकानंद में काकड़ीघाट से पैदल आते हुए इतने थक गए कि मूर्छित हो गए।

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तब पास के कब्रिस्तान में रहने वाले संरक्षक जुल्फिकार खां ने उनको ककड़ी का रस पिलाकर उनकी प्यास बुझाई। इस घटना का जिक्र स्वामी विवेकानंद ने बाद में तब किया जब वे सन 1893 के शिकागो धर्म सम्मलेन से लौटने के बाद 1897 में रघुनाथ मंदिर अल्मोड़ा में स्थानीय जनसमुदाय द्वारा आयोजित स्वागत कॉर्यक्रम में मंच पर थे।उन्होंने मंच से भीड़ में जुल्फिकार को पहचान कर गले लगाया और उन्हें अपने प्राणों को बचाने वाला कहा।

ऐसी ऐतिहासिक जगह ही लोधिया इंटर कॉलेज में आज हर्षो उल्लास के साथ स्वामी विवेकानंद को याद किया जा रहा है।
स्कूली नौनिहालों ने स्कूल प्रांगण से लेकर लोधिया बाजार में रैली निकालकर हाथों में तख्तियां लेकर स्वामी विवेकानंद के विचारों का जय घोष किया।प्रांगण में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे अलमोड़ा नगरपालिका अध्यक्ष श्री प्रकाश जोशी,जिन्होंने बच्चों को कुमाउँनी भाषा में संबोधित करते हुए स्वामी विवेकानंद के प्रेरक विचारों और घटनाओं का बखान किया और उनके अल्मोड़ा आगमन के बारे में बताया और कहा कि युवाओं को शारीरिक,वैचारिक,चारित्रिक रूपों में सशक्त होना चाहिए।क्यों कि युवा ही विश्व और समाज की धूरी है इसलिए युवाओं को ही समर्थ और सशक्त बनना होगा।उन्होंने जातिवाद,क्षेत्रवाद,साम्प्रदायिकता,दहेज़ प्रथा,नशाखोरी के खिलाफ लोगो को जागरूक होने की अपील की।
कॉर्यक्रम का संचालन विदयालय के शिक्षक राजेंद्र खड़ायत ने किया। इस अवसर पर तुरियानंद कुटीर रामकृष्ण मिशन के सन्यासी प्रणात्मानंद जी ने मनमोहक भजन बच्चों के साथ मिलकर प्रस्तुत किया।
स्वामी विवेकानंद के उस समय के विचार आज भी कितने प्रासंगिक हैं ये उनके इस स्वदेश मंत्र में झलकता है

ऐ भारत ! तुम मत भूलना कि तुम्हारे उपास्थ सर्वत्यागी उमानाथ शंकर हैं, मत भूलना कि तुम्हारा विवाह, धन और तुम्हारी स्त्रियों का आदर्श सीता,सावित्री,दमयन्ती है। मत भूलना कि तुम्हारा जीवन इन्द्रिय सुख के लिए, अपने व्यक्तिगत सुख के लिए नहीं है।

मत भूलना कि तुम जन्म से ही माता के लिए बलिदान स्वरूप रखे गए हो, मत भूलना की तुम्हारा समाज उस विराट महामाया की छाया मात्र है, तुम मत भूलना कि नीच,अज्ञानी,दरिद्र,मेहतर तुम्हारा रक्त और तुम्हारे भाई हैं। ऐ वीर, साहस का साथ लो ! गर्व से बोलो कि मैं भारतवासी हूं और प्रत्येक भारतवासी, मेरा भाई है। बोलो कि अज्ञानी भारतवासी, दरिद्र भारतवासी, ब्राह्मण भारतवासी, चांडाल भारतवासी, सब मेरे भाई हैं।

तुम भी कटिमात्र वस्त्रावृत्त होकर गर्व से पुकार कर कहो कि भारतवासी मेरा भाई है, भारतवासी मेरे प्राण हैं, भारत के देव-देवियाँ मेरे ईश्वर हैं। भारत का समाज मेरी शिशुसज्जा,मेरे यौवन का उपवन और मेरे वृद्धावस्था की वाराणसी है।

भाई, बोलो कि भारत की मिट्टी मेरा स्वर्ग है, भारत के कल्याण में मेरा कल्याण है, और दिन-रात कहते रहो कि हे गौरीनाथ,हे जगदम्बे, मुझे मनुष्यत्व दो ! मां मेरी दुर्बलता और कापुरुषता दूर कर दो, मुझे मनुष्य बनाओ!

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