नही रहे सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक त्रेपन सिंह चौहान

Newsdesk Uttranews
3 Min Read
Screenshot-5

holy-ange-school

देहरादून। राज्य आंदोलनकारी और लेखक त्रेपन सिंह चौहान का निधन हो गया है। वह 49 वर्ष के थे और उन्होने देहरादून में अंतिम सांस ली। वह पिछले तीन वर्षो से लकवाग्रस्त थे और देहरादून में किराये के मकान में रहकर अपना इलाज करा रहे थे।

ezgif-1-436a9efdef

केपार्स, बासर टिहरी (गढ़वाल) में 4 अक्टूबर, 1971 को त्रेपन सिंह चौहान का जन्म हुआ। उन्होने डीएवी कॉलेज, देहरादून से वर्ष-1995 में एम.ए. (इतिहास) की डिग्री हासिल की। पढ़़ाई पूरी करने के बाद जहां छात्र नौकरी की तलाश में लग जाते वही त्रेपन सिंह चौहान ने अपनी एक अलग ही राह चुनी। उन्होने समाज की सेवा में ही अपने जीवन को समर्पित कर दिया।

हिन्दी साहित्य में त्रेपन सिंह चौहान के कहानी पर आधारित दो उपन्यासों ‘यमुना’ और ‘हे ब्वारि’से प्रसिद्वि मिली। उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन के पीछे उत्तराखंड के लोगों की आकांक्षाओं, उत्कंठाओं, संघर्ष, दमन, उम्मीद, संवेदनाओं और निराशा को उन्होने इन उपन्यासों में स्थान दिया है। उनके कई लेख कन्नड़ भाषा में भी प्रकाशित हुए है।

इसके अलावा त्रेपन सिंह चौहान ने ‘भाग की फांस’, ‘सृजन नवयुग’, ‘यमुना’ और ‘हे ब्वारि’ उपन्यास लिखे। ‘उत्तराखंड राज्य आंदोलन का एक सच यह भी’ नाम से विमर्श लिखा। त्रेपन सिंह चौहान का ‘सारी दुनिया मांगेंगे’ नाम से जनगीतों का संग्रह भी प्रकाशित हुआ है।

उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन, शराबबंदी आंदोलन में भी वह सक्रिय रहे। वह टिहरी बांध प्रभावित फलेण्डा गांव प्रभावितों के आन्दोलन, सूचना अधिकार आन्दोलन, नैनीसार जैसे आंदोलनों से भी अभिन्न रूप से जुड़े रहे। त्रेपन सिंह चौहान राष्ट्रीय जनतांत्रिक समन्वय और उत्तराखंड नव निर्माण मजदूर संघ से भी जुड़े रहे। उनके नेतृत्व में 18 मार्च, 1996 को ‘चेतना आंदोलन’ शुरू हुआ। टिहरी जिले में भ्रष्टाचार के खिलाफ भिलंगना ब्लाक में उन्होने कार्यालय में तालांबदी कर दी थी।

सामाजिक कार्यो में सक्रिय होने और भ्रष्टाचार के खिलाफ मुखर होने के कारण समय समय पर वह शासन प्रशासन के निशाने पर भी रहे। लेकिन सामाजिक असमानता के खिलाफ उनका संघर्ष नही डिगा। सामाजिक कार्यो में लगे रहने और अपने खान पान पर ध्यान नही देने के कारण उनका स्वास्थ्य खराब हो गया और अतंत: वह एक ऐसी बीमारी की चपेट में आ गये जिसने मात्र 49 वर्षो में ही उन्हे इस संसार से अलविदा कहने को मजबूर कर दिया।

trepan singh chauhan

त्रेपन सिंह चौहान को लंबे समय से एक ऐसी बीमारी लग गई जिसके कारण वह ​अक्षम हो गये। वह अपने बिस्तर से नही उठ पाते थे बावजूद इसके अपनी जिजीविशा के चलते वह तब भी लेखन के मोर्चे पर सक्रिय रहे। अपने अंतिम समय तक वह कंप्यूटर प्रोग्रामिंग से जुड़े एक साफ्टवेयर से अपनी आंखों की पुतली से संकेत कर लेखन का कार्य कर रहे थे। वह हाल फिलहाल इस साफ्टवेयर की मदद से एक उपन्यास लिख रहे थे।

https://www.youtube.com/channel/UCq1fYiAdV-MIt14t_l1gBIw

Joinsub_watsapp