बीच बहस में : श्री श्री रविशंकर के बयान के मायने

 हिमांचल प्रदेश से डॉ  विजय विशाल ने हमे यह लेख भेजा है। डॉ विशाल जाने माने शिक्षाविद है और सम सामयिक मुददो और शिक्षा पर…

 हिमांचल प्रदेश से डॉ  विजय विशाल ने हमे यह लेख भेजा है। डॉ विशाल जाने माने शिक्षाविद है और सम सामयिक मुददो और शिक्षा पर इनके कई आलेख प्रकाशित हुए है।
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         -:-संपादक मंडल उत्तरा न्यूज -:-

 शिक्षा का निजीकरण किसी समस्या का हल नहीं

डा0 विजय विशाल

भारतीय शिक्षा व्यवस्था की दुर्दशा पर वर्षों पहले प्रख्यात साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल ने अपने व्यंग्यात्मक उपन्यास रागदरबारी में जो टिप्पणी की थी वह आज भी प्रासंगिक है। 

अपने इस बहुचर्चित उपन्यास में उन्होंने लिखा है, शिक्षा प्रणाली सड़क पर पड़ी हुई वह कुतिया है जिसे हर कोई एक लात जमा देता है, पिछले दिनों तथाकथित आध्यात्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर की जयपुर प्रवास के दौरान भारतीय शिक्षा व्यवस्था खासकर सरकारी क्षेत्र में चल रहे स्कूलों पर एक गैर जिम्मेदाराना टिप्पणी इसी सन्दर्भ में देखी जा सकती है

दुनिया को जीने की कला सिखाने वाले वाले इन तथाकथित आध्यात्मिक गुरू का कहना है कि भारत में सरकारी स्कूल नक्सली पैदा कर रहे हैं इसलिए सरकार को चाहिए कि इन्हें सरकारी क्षेत्र से निकाल कर निजी क्षेत्र में दे दे अपने इस व्यक्तव्य में उन्होंने निजी क्षेत्र के स्कूलों की पैरवी करते हुए यह भी तर्क दिए कि निजी क्षेत्र में चल रहे स्कूलों में मूल्यों पर आधारित और संस्कार युक्त शिक्षा दी जाती है जबकि सरकारी स्कूल ऐसा नहीं करते 

यहां यह जानना दिलचस्प होगा और जिसे मैं दावे से कह सकता हूं कि पिछले कुछ वर्षों से देश में चर्चित तमाम बड़े आर्थिक घोटालों के जनक किसी सरकारी स्कूल के उत्पाद नहीं हो सकते विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी और उनके तमाम संगी साथी , यह फैहरिस्त और भी लम्बी हो सकती है  उन निजी स्कूलों के ही उत्पाद हो सकते हैं जिनकी वकालत करते हुए रविशंकर कह रहे हैं कि ये निजी स्कूल नैतिक और संस्कारयुक्त शिक्षा देते हैं जिस बात को रविशंकर आध्यात्मिक गुरू होने का दावा करने के बावजूद अभी तक नहीं समझ सके उस बात को बर्ताल्त ब्रेख्त ने एक कवि के नाते सन् 1940 में ही समझ लिया था तब जबकि निजीकरण के ऐसे भयावह रूप की कल्पना भी नहीं की गई थीं 

कवि वास्तव में ही कितनी दूर की सोचता है यह बात ब्रेख्त की कविता की इन पंक्तियों से समझी जा सकती हैं जो आज की शिक्षा खास कर निजी क्षेत्र में दी जाने वाली शिक्षा पर सटीक बैठती हैं

पुस्तकालयों के भीतर से निकलते हैं हत्यारे च्चों को चिपटाए हताश खड़ी माताएं ध्इंतजार करती, आकाश टटोलती देखती हैंध्प्र,फेसरों की नवीनतम खोजेंण्श् मुझे नहीं मालूम कि श्री श्री रविशंकर ने सरकारी स्कूल में शिक्षा प्राप्त की है या किसी निजी स्कूल मेंण् मगर इतना जरूर कह सकता हूं कि श्री श्रीरविशंकर के कथनानुसार मूल्यहीन व संस्कारहीन शिक्षा प्रदान करने वाले ये सरकारी स्कूल भले ही नक्सली पैदा कर रहे हों परन्तु वैसे बड़े अपराधी पैदा नहीं करते जो देश को ही खा जाने पर आमादा होंण् हालांकि मैं नक्सली हिंसा का कतई समर्थन नहीं करता परन्तु इतना तो जानता ही हूँ कि नक्सलवाद का जन्म एक ऐसी वैकल्पिक राजनीतिक.आर्थिक व्यवस्था के पक्ष में हुआ था जो शोषितए निर्बलए उत्पीड़ित और वंचित समाज की हिमायत में काम करती हो

आध्यात्मिक गुरू श्री श्रीरविशंकर न कोई शिक्षाविद् हैं न ही ऐसे चिंतक जिनका शिक्षा क्षेत्र से नित्य प्रति सरोकार हो अपने स्वनिर्मित प्रभामण्डल में विचरण करने वाले ये तथाकथित धर्मगुरू या तो सचमुच नहीं जानते कि स्वतंत्र भारत में शिक्षा के प्रसार में इन सरकारी स्कूलों का क्या योगदान है या फिर अपने पूर्वाग्रहों के चलते नहीं चाहते कि शिक्षा सबके लिए सुलभ होण् इन बातों से इतर यह भी हो सकता है कि एक सोची समझी रणनीति के तहत निजीकरण की वकालत करते हुए यह बात कही या कहलवायी गई हो क्यांकि नव उदारवादी आर्थिक.नीतियों के तहत शिक्षा को बाजार के हवाले करने का दबाव लगातार रहा है अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार ने तो बड़े व्यापारियों टाटा, बिड़ला,अंबानी के नेतृत्व में शिक्षा के व्यापारीकरण हेतु एक शिक्षा समिति गठित की थी इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में उच्च शिक्षा के निजीकरण की सिफारिश की थी जिसके परिणामस्वरूप देश में धड़ाधड़ निजी विश्वविद्यालय अस्तित्व में आए या आ रहे हैं
इसी दौर में सरकारी विद्यालयों व उनमें कार्यरत शिक्षकों को गरियाने का जो सिलसिला शुरू हुआ वह निरंतर आज भी जारी है हर छोटी.बड़ी समस्या का हल निजीकरण की नीतियों में ढूंढने वाले न नेताओं की कमी है न चिंतकों की न पत्रकारों की और न बड़ी पूंजी के हाथों खेलते इलैक्ट्रानिक मीडिया की फलस्वरूप आज सरकारी स्कूलों की ऐसी छवि बना दी गई है कि कोई भी जागरूक अभिभावक इन स्कूलों में अपने बच्चों को दाखिल करवाने से झिझकता है बीते दो दशकों में सरकारी स्कूली शिक्षक की अत्यंत नकारात्मक छवि प्रचारित की गई है नई आर्थिक नीतियाँ लागू करने के समय से ही ऐसा माहौल बनाया जाने लगा था जिसमें सभी यह मानने लगे कि सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को बहुत पैसे मिलता हैए वे पढ़ाते नहीं हैं भेदभाव करते हैं स्कूलों ये गायब रहते हैं राजनीति में लिप्त रहते हैं इन नीतियों के समर्थकों का यह भी कहना है कि शिक्षा बजट का 80.90 प्रतिशत तक हिस्सा इन शिक्षकों के वेतन पर खर्च होता हैण् जिनकी आउट पुट शून्य हैण् इसलिए ये लोग सरकारी स्कूलों के निजीकरण में ही समस्या का समाधान देते हैं

हां! श्रीरविशंकर के इस नकारात्मक ब्यान से दो सकारात्मक घटनाएं अवश्य हुई। पहली तो यह कि श्री रविशंकर ने इतना तो स्वीकार किया कि सरकारी स्कूल भी कुछ काम करते हैं भले ही नक्सली क्यों न पैदा करते हों घl दूसरी और जिसे मैं महत्वपूर्ण घटना मानता हूँ कि पहली बार देश के कई मंत्रियों को सरकारी स्कूलों के पक्ष में खड़े होते और ब्यान देते देखा इतना ही नहीं बल्कि कईयों ने तो गर्व से स्वीकारा की हमारी शिक्षा भी सरकारी स्कूल में ही हुई है  हर समस्या का हल निजीकरण में ढंढने के इस दौर में केन्द्रीय मंत्रियों के यह ब्यान कुछ तो सुकून देते ही हैं