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श्राद्ध पक्ष:- अपने पितरों को याद करने के 16 दिन

उत्तरा न्यूज डेस्क
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साल में एक बार आधा महिना यानी पूरा पक्ष एक खास अवसर को समर्पित रहता है| भाद्रपद पूर्णिमा से अश्विन माह की अमावस्या तक के इस पूरे पक्ष को पितृ पक्ष कहा जाता है| इन 16 दिनों के दौरान हर घर में एक कार्य प्रमुखता से होता है वह है पितरों यानी पुरखों को याद करने का मौका, इस पूरे कार्य को श्राद्ध कर्म कहा जाता है|

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मान्यता के अनुसार इन 16 दिनों के लिए पितृ घर में विराजमान होते है पुण्य तिथि के अनुसार लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध तर्पण आदि करते हैं| इस बार पितृ पक्ष 13 सितंबर से शुरु हो गए हैं जो 28 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या के साथ समाप्त होगे।
इन 16 दिनों में जो हम दान पूर्वजों को देते है वो श्राद्ध कहलाता है। शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि जिनका देहांत हो चुका है और वे सभी इन दिनों में अपने सूक्ष्म रुप के साथ धरती पर आते हैं और अपने परिजनों का तर्पण स्वीकार करते हैं।
नियमों के मुताबिक श्राद्ध का अधिकार पुत्र को प्राप्त है, लेकिन अगर पुत्र नहीं है तो पौत्र, प्रपौत्र या फिर विधवा पत्नी भी श्राद्ध कर सकती है। वहीं पत्नी का श्राद्ध पुत्र के ना होने पर पति कर सकता है।श्राद्ध कर्म में पिंडदान महत्वपूर्ण होता है| मान्यता के अनुसार कहीं पकाए गए चावल यानि भात और कहीं भिगोने के बाद पिसे गए चावलों के पिंड बनाया जाता है|
इस बार के श्राद्ध की महत्वपूर्ण तिथियां

13 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध
14 सितंबर- प्रतिपदा
15 सितंबर- द्वितीया
16 सितंबर- तृतीया
17 सितंबर- चतुर्थी
18 सितंबर- पंचमी महा भरणी
19 सितंबर- षष्ठी
20 सितंबर- सप्तमी
21 सितंबर- अष्टमी
22 सितंबर- नवमी
23 सितंबर- दशमी
24 सितंबर- एकादशी
25 सितंबर- द्वादशी
26 सितंबर- त्रयोदशी, मघा श्राद्ध
27 सितंबर- चतुर्दशी श्राद्ध
28 सितंबर- पितृ विसर्जन, सर्वपितृ अमावस्या

आचार्य घनश्याम सिंह जोशी से बातचीत के बाद बेतालघाट से राजेश पंत की रिपोर्ट