अल्मोड़ा के चीनाखान में सातूं – आठूं पूजा का समापन, गौरा को विधि विधान से भेजा गया ससुराल

Satoon – Eightun worship ends in Almora’s Chinakhan उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल में अल्मोड़ा जिले से लेकर पिथौरागढ़ के गनाई-गंगोली व सोरघाटी तक और बागेश्वर…

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Satoon – Eightun worship ends in Almora’s Chinakhan

उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल में अल्मोड़ा जिले से लेकर पिथौरागढ़ के गनाई-गंगोली व सोरघाटी तक और बागेश्वर से नाकुरी अंचल व चंपावत के काली-कुमाऊं सहित पड़ोसी देश नेपाल में अनेक स्थानों पर भाद्रपद मास में सातूं-आठूं का उत्सव धूमधाम व हर्षोल्लास से मनाया जाता है। सातूं-आठूं पर विवाहिता महिलाएं उपवास रखती हैं। सातूं को बाएं हाथ में पीले धागे युक्त डोर और अष्टमी को गले में दूब घास के साथ अभिमंत्रित लाल रंग के दुबड़े कहे जाने वाले खास धागे धारण कर अखंड सौभाग्य और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।
जबकि कुंवारी युवतियां केवल गले में दुबड़े ही पहनती हैं।

अल्मोड़ा, 22 अगस्त 2022- सांस्कृतिक नगरी अल्मोडा के चीनाखान में सांतू आठू को धूमधाम से मनाया गया ।

Satoon - Eightun worship ends in Almora's Chinakhan
Satoon – Eightun worship ends in Almora’s Chinakhan


महिलाओं ने इस पर्व को बडी हर्षो उल्लास के साथ मनाया, महिलाएं पारंपरिक परिधान पहनकर एवं पूरा श्रृगार कर घरों में धान, मादिरा, कुकुडी और माकुडी से भगवान शिव और माता गौरा बना कर उनकी शादी कर पूजा अर्चना की और गौरा का पूरा श्रृगार कर उन्हे शिव के साथ ससुराल को भेजा।

उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल में अल्मोड़ा जिले से लेकर पिथौरागढ़ के गनाई-गंगोली व सोरघाटी तक और बागेश्वर से नाकुरी अंचल व चंपावत के काली-कुमाऊं सहित पड़ोसी देश नेपाल में अनेक स्थानों पर भाद्रपद मास में सातूं-आठूं का उत्सव धूमधाम व हर्षोल्लास से मनाया जाता है। सातूं-आठूं पर विवाहिता महिलाएं उपवास रखती हैं। सातूं को बाएं हाथ में पीले धागे युक्त डोर और अष्टमी को गले में दूब घास के साथ अभिमंत्रित लाल रंग के दुबड़े कहे जाने वाले खास धागे धारण कर अखंड सौभाग्य और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।


जबकि कुंवारी युवतियां केवल गले में दुबड़े ही पहनती हैं। पंचमी के दिन बिरूडे भिगोए जाते हैं। सप्तमी के दिन धान की सूखी पराल या बंसा घास, तिल और दूब आदि से तैयार गौरा-महेश की मूर्ति बनाकर स्थापित की जाती है। वहीं विशेष पूजा-अर्चना में रात्रि जागरण व लोक संस्कृति पर आधारित गीत गाए जाते हैं। यह सिलसिला अष्टमी तक चलता है। इस दिन किसी खुले स्थान पर एकत्र होकर घर से लाए गए अनाज, धतूरे व फल-फूलों से गौरा-महेश की पूजा की जाती है।


चीनाखान में सभी पारंपरिक रस्में निभाने के बाद महिलाओं ने आखों से गौरा और महेश्वर की विदाई दी। और केले के पेड़ के नीचे गौरा महेश्वर को विसर्जित किया।


महिलाओं का कहना है सातूं आठूं पर्व को महिलाएं बडी धूम धाम के साथ मनाती है महिलाएं पर्व पर दो दिन का उपवास रखती है जिसमें शिव और गौरी की शादी के बाद गौरी को ससुराल को भेजने के बाद ही उपवास को तोड़ा जाता है। इस दिन घरों में विशेष तरह के पकवान बनाए जाते है।

और शिव गौरी को उसका भोग लगाते है। इस पर्व में महिलाए अपनी पति लम्बी आयु के लिए डोर और दुबडे को पहनती है। और भगवान शिव और गौरी से अपने पति की लम्बी आयु की कामना करती है।


महिलाएं बताती है कि जब शिव और गौरी की शादी हो जाती है तो बाद में भगवान शिव और माता गौरी को एक पेड के नीचे स्थापित किया जाता है। वही बुर्जुग महिलाएं बताती है कि सावन माह के शुक्ल पक्ष को सातूं आठूं पर्व मनाया जाता है। इसमें महिलाएं घरों में धान, मादिरा, कुकुड़ी और माकुड़ी के द्वारा शिव और गौरी बना उनकी शादी करवा कर पूजा अर्चना करती है और पति की लम्बी आयु की कामना करती है।


स्थानीय महिला प्रेमा देवी ने बताया कि भगवान शिव और माता गौरी उनकी मनोकामना पूर्ण करती है कहा कि इस त्यौहार को कुमाऊ में बडी धूम धाम के साथ मनाते है। इस पर्व पर महिलाएं घरों में भजन र्कीतन करती है।

पर्व में जुड़ी हैं अनोखी कहानी महिलाओं की जुबानी

भावना ने बताया कि वहीं सातू आंठू पर्व पर बिरूडे भिगोए जाते जिसकी अपनी कथा गोलू देवता से जुडी है कहते है कि चम्पावत के एक राजा की सात पत्निया होती है जिसमें से किसी भी रानी की कोई संतान नही होती है राजा सभी रानियों को संतान प्राप्ती के लिए व्रत कर बिरूडा भिगोने के लिए बोलता है जिसमें सात दाल गूहं, चना, राजमा, उडद, सोयाबीन, मटर, घौत को एक पोटली में एकत्रित किया जाता है छः रानियां उस बिरूडे में से कुछ को खा लेती है जिससे छः रानियों का व्रत टूट जाता है वहीं जब सातवी रानी को राजा बिरूड़ भिगोने के लिए बोलता है तो सातवी रानी का भी बिरूड़ा खाने का मन करता है लेकिन वह बिरूड़ा नही खाती उसके बदले में वह अपने मुह में कोयला डाल खा लेती है जिससे सातवी रानी गर्भवती हो जाती है जो बाद में एक पुत्र को जन्म देती है जिनको गोलू देवता के नाम से जाना जाता है छः रानीयों की कोई संतान नही होने के कारण छः रानीयां सातवी रानी से ईष्या हो जाती है और छः रानीयां उस बच्चे को एक नदी के किनारे फैंक आती है। जो एक मछवारे को मिलता है और मछवारे के द्वारा ही उस पुत्र का पालन पोषण किया जाता है जब सातवी रानी का पुत्र नही मिलता है तो वह अपने मायके चली जाती है और अपनी मां को पूरी बात बताती है तब उसकी मां अपनी बेटी को सरसां देकर कहती है कि इन सरसों को रास्ते में डालते हुए नौले के पास जाना अगर यह सरसों हरे हो गए तो समझना कि तेरा पुत्र जीवित है, वह रानी ऐसा ही करती है ।

जब वह उस नौले पर पहुचती है और पानी पीने लगती है तो गोलू देवता अपनी मां के हाथ का दुबड़ा पकड लेता है और अपनी मां से मिलता है जब इस बारे में राजा को पता चलता है तो वह छः रानीयों का त्याग कर राजपाठ से बाहर कर देता है ।

Satoon - Eightun worship ends in Almora's Chinakhan
Satoon – Eightun worship ends in Almora’s Chinakhan

और सातवी रानी और उसके पुत्र को राजपाठ सौंप देता है। जिसको अब सांतू -आंठू पर्व बडी धूम धाम से मनाते है।(पत्रकार अमित उप्रेती द्वारा लिखा आलेख संपादन साभार)