संस्कृति और आधुनिकता का संगम अल्मोड़ा (Almora)

अल्मोड़ा (Almora) शब्द जेहन में आते ही मन रोमांचित हो जाता है। इस शहर का आकर्षण ही कुछ ऐसा है जिसे शब्दों में कह पाना…

almora

अल्मोड़ा (Almora) शब्द जेहन में आते ही मन रोमांचित हो जाता है। इस शहर का आकर्षण ही कुछ ऐसा है जिसे शब्दों में कह पाना नामुमकिन सा लगता है इसे शहर का आकर्षण कहें या कुछ और पता नहीं जो भी इस शहर में आया वो यहीं का होकर रह गया चाहे वह विख्यात वैज्ञानिक बोसी सेन हो या नृत्य सम्राट उदयशंकर। छोटे से इस पहाड़ी शहर अल्मोड़ा (Almora) की हर बात ही निराली लगती हैं।

सन् 1530 में चन्द्र राजा भीष्मचन्द्र का बसाया तब का अल्मोड़ा (Almora)अभी भी कहीं जीवित है सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक थपेड़ों को झेलता अल्मोड़ा इतिहास का वह  पन्ना है जिसे भुलाया नहीं जा सकता।

सांस्कृतिक, ऐतिहासिक साहित्यिक,  कला, राजनैतिक तथा विभिन्न क्षेत्रों में अल्मोड़ा (Almora) की अपनी एक विशिष्ट पहचान रही है। इस शहर ने पूरे देश को कई विलक्षण प्रतिभाए दी हैं ,राजनीति में भारत रत्न गोविन्द बल्लभ पंत, कामरेड पी.सी. जोशी, मुरली मनोहर जोशी, साहित्यिक क्षेत्र में शिवानी, मनोहर श्याम जोशी, रमेश लाल शाह एवं पूर्व थल सेनाध्यक्ष बिपिन चन्द्र जोशी, सहित अनेक विभूतियां इसी  माटी से संबंध रखती हैं।

अल्मोड़ा (Almora) नगर सामाजिक चेतना के क्षेत्र में भी पीछे  नहीं है,पहले स्वतंत्रता संघर्ष बाद में चिपको आंदोलन, नशा नहीं रोजगार  दो तथा उत्तराखण्ड आंदोलन के अलावा अनेक जनांदोलनों का यह गढ़ रहा है।ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार इस नगर को कुमांऊ के चंद वंशीय राजाओं ने विधिवत रूप से बसाया। सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानते हुए इसे अपनी राजधानी के रूप में विकसित किया जिसके चलते यह पूरे कुमाॅऊ की संस्कृति का केन्द्र बन गया।

आज भी यहां पुरानी नक्काशी के मकान, हस्तशिल्प निर्मित तांबे के बर्तन तथा पटाल बाजार इसके प्रमाण हैं।रूहेलों का आक्रमण हो, गोरखा राज्य हो या फिर ब्रिटिश राज्य हो पुराने अल्मोड़ा (Almora) ने अपने अस्तित्व तथा परम्पराओं को बहुत हद तक बचाया है। बात करते हैं अल्मोड़ा (Almora) के इतिहास की लगभग पांच सौ साल सालों के हो चले इस शहर ने जहां अपनी  पुरानी यादों को सहेज कर रखा है वहीं आधुनिकता के इस युग में भी यह शहर  पीछे नहीं है। चन्द्र वंश रूहेलों का आक्रमण, गोरखा राज फिर अंग्रेजी राज के साथ-साथ इस शहर का  इतिहास जुड़ा हुआ है।

महाराजा भीष्म चन्द्र द्वारा बसाये गए सांस्कृतिक, ऐतिहासिक साहित्यिक,  कला, राजनैतिक तथा विभिन्न क्षेत्रों में अल्मोड़ा (Almora) की अपनी एक विशिष्ट पहचान रही है।

अल्मोड़ा (Almora) शहर ने पूरे देश को कई विलक्षण प्रतिभाए दी हैं ,राजनीति में भारत रत्न गोविन्द बल्लभ पंत, कामरेड पी.सी. जोशी, मुरली मनोहर जोशी, साहित्यिक क्षेत्र में शिवानी, मनोहर श्याम जोशी, रमेश लाल शाह एवं पूर्व थल सेनाध्यक्ष बिपिन चन्द्र जोशी, सहित अनेक विभूतियां इसी  माटी से संबंध रखती हैं। अल्मोड़ा (Almora) नगर सामाजिक चेतना के क्षेत्र में भी पीछे  नहीं है, पहले स्वतंत्रता संघर्ष बाद में चिपको आंदोलन, नशा नहीं रोजगार  दो तथा उत्तराखण्ड आंदोलन के अलावा अनेक जनांदोलनों का यह गढ़ रहा है।

ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार अल्मोड़ा (Almora) नगर को कुमांऊ के चंद वंशीय राजाओं ने विधिवत रूप से बसाया। सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानते हुए इसे अपनी राजधानी के रूप में विकसित किया जिसके चलते यह पूरे कुमाॅऊ की संस्कृति का केन्द्र बन गया।

अल्मोड़ा (Almora) शहर अपनी बौद्धिकता के लिए भी विख्यात रहा है । उन्नीसवीं सदी के कुछ बौद्धिक क्रियाकलापों के कारण इस शहर को बुद्धिजीवियों के शहर के रूप में भी जाना जाने लगा जिसमें अल्मोड़ा (Almora) से प्रकाशित अल्मोड़ा अखबार (Almora akhbar) का प्रकाशन एक महत्वपूर्ण घटना थी।

यहां का  आतिथ्य और प्राकृतिक सौन्दर्य गांधी जी को इतना भाया कि अपनी कुमायूॅ  यात्रा के चैदह दिन उन्होंने कौसानी में ही बिताए। यहां से जाने के बाद  उन्होंने यंग इंडिया में अपने संस्मरणों को शब्दबद्ध करते हुए लिखा मैं  साश्चर्य सोचता हूंॅ कि इन पर्वतों के दृश्यों और जलवायु से बढ़कर होना तो  दूर रहा इसकी बराबरी भी संसार का कोई अन्य स्थान नहीं कर सकता। इन पर्वतों में तीन सप्ताह रहकर मुझे अब तो पहले से भी अधिक आश्चर्य होता है कि हमारे देशवासी स्वास्थ्य लाभ के लिए यूरोप क्यों जाते होंगे।

अल्मोड़ा (Almora) प्राचीन काल से ही विद्वानजनों के आकर्षण का केन्द्र रहा है। उत्तराखण्ड हिमालयी संस्कृति में इसका एक विशिष्ट स्थान माना जा सकता है। इस क्षेत्र की भौगोलिक संरचना एवं जलवायु मानव आवास के अनुकूल रही है। आदि मानव के प्रमाण अल्मोड़ा (Almora) नगर के समीपवर्ती ग्राम फलसीमा में भी दृष्टिगत हुए हैं। इस क्षेत्र की उत्तर पूर्वी पर्वत श्रृंखलाएं इस बात की गवाह हैं कि यहां प्रागैतिहासिक मानव का प्रवेश हुआ था।

 धार्मिक दृष्टि से भी अल्मोड़ा (Almora) का अतीत किसी से पीछे नहीं रहा है। नंदादेवी मंदिर हो, जागेश्वर के मंदिर हों या फिर बैजनाथ-बागेश्वर के मंदिर हों, धार्मिक परम्पराओं को अल्मोड़ा ने बरकरार रखा। इसके अलावा अल्मोड़ा नगर के दशहरा, होली, रामलीला की भी अपनी विशिष्ट पहचान है। स्वतंत्रता आंदोलन में भी अल्मोड़ा (Almora) का उल्लेखनीय योगदान रहा है।

पंडित बद्रीदत्त पांडे का कुली बेगार हो या रामसिंह धौनी की शहादत के साथ ही खुमाड़, देघाट के स्वतंत्रता सेनानी सब के सब अल्मोड़ा (Almora) के ही सपूत थे। 19वीं शताब्दी में ही इसी अल्मोड़ा (Almora) नगर के एक प्रतिभावान एवं राष्ट्रीय विचारों के विद्वान श्रीकृष्ण जोशी के वैज्ञानिक आविष्कारों खासकर सूर्य के ताप से भानुताप नामक यन्त्र बनाने से पूरे देश के लोग अचंभित रह गए। इन्हीं के भ्राता देवीदत्त जोशी ने कुमाॅऊ में गेय पद्धति पर आधारित रामलीला का मंचन प्रारंभ कर विश्व के सबसे बड़े यानी ग्यारह दिनों तक चलने वाली रंगमंचीय नाटिका का सूत्रपात किया।

उन्नीसवीं शताब्दी में ही अल्मोड़ा (Almora)  बौद्धिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक और राष्ट्रीयता की गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र बन चुका था। बीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक में यहां के तत्कालीन स्कूलों में वर्तमान रैमजे और जी.आई.सी. के कुछ शिक्षकों ने स्वराज्य आंदोलन के लिए वातावरण बनाना शुरू कर दिया था। 19वीं शताब्दी के सकारात्मक क्रियाकलापों को बीसवीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में अल्मोड़ा (Almora) के विद्वानों ने नई दिशा दी। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में बंग-भंग आंदोलन ने पूरे देश में शिक्षित युवकों को झकझोर कर रख दिया। देश भर में देशभक्ति से ओतप्रोत साहित्य लिखा जाने लगा और अल्मोड़ा के बुद्धिजीवियों ने भी साहित्य का सृृजन किया। 

वंदे मातरम् का कुमांऊनी रूपान्तरण करके स्वराज्य आंदोलन को गति देने का प्रयास हुआ। रैमजे के विद्वान शिक्षक बद्री साह ने इसी दौर में भारत मां को केन्द्रित करते हुए उत्कृष्ट पुस्तकें लिखी जिसकी प्रशंसा गांधी और तिलक जैसे नेताओं ने की। इस तरह के कुछ और प्रयास अल्मोड़ा (Almora) नगर के बुद्धिजीवियों ने किए। उस समय नगर की जनसंख्या वर्तमान जनसंख्या से 15-20 प्रतिशत ही रही होगी। साधन, संसाधन न होने के बावजूद नगर के बौद्धिक क्रियाकलाप राष्ट्रीयता के रंग में रंगे हुए थे।वही 1871 से प्रकाशित हो रहे अल्मोड़ा (Almora)अखबार का संपादन विदेशी हुकूमत के खिलाफ आग उगलने लगा।

कुली बेगार प्रथा को अमानवीय बताकर इसके खिलाफ संघर्ष करने का आहवान किया जाने लगा। इसी नगर के ईसाई परिवार में जन्मे विक्टर मोहन जोशी, बद्रीदत्त पाण्डे और साथियों ने होमरूल लीग की स्थापना करके ब्रिटिश शासकों को सीधी चुनौती दे डाली। अल्मोड़ा (Almora)नगर के लोगों ने स्वराज्य के शाश्वत स्वरों को गांव-गांव में प्रतिघ्वनित करने में अहम भूमिका निभाई। यह इस नगर के इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ है।

मातृभूमि के लिए त्याग-बलिदान का वातावरण तैयार करने के लिए इसी नगर से स्वाधीन प्रजा का प्रकाशन विक्टर मोहन जोशी ने किया। 1930 का झण्डा सत्याग्रह मोहन जोशी के त्याग और वीरता का अनूठा उदाहरण है।

21वीं सदी में इस तेज रफ्तार में बदलते वातावरण में भी यह नगर (Almora) अपनी मजबूत सांस्कृतिक परंपराओं के साथ ज्यों का त्यों खड़ा है, उतना ही आधुनिक जितना कि प्राचीन। एक सांस्कृतिक क्षेत्र के रूप में भी इस नगर की अपनी विशिष्ट छवि रही है। चंदों के काल में विद्वत समाज को आश्रय देकर संस्कृत, ज्योतिष एवं धार्मिक उपासना केन्द्रों के माध्यम से विविध ग्रन्थों एवं रचनाओं की जानकारी प्राप्त होती है, इनमें धर्मशास्त्र, ज्योतिष, वास्तुशास्त्र एवं आयुर्वेद से जुड़े ग्रन्थ उल्लेखनीय हैं। इस नगर के बसने के तथ्य भी महत्वपूर्ण हैं।

ऐतिहासिक तथ्यो से उत्तराखण्ड में एक सुव्यवस्थित शासन तंत्र कत्यूरी राजाओं के काल से माना जा सकता है जहा हमें एक राजनैतिक व्यवस्था की जानकारी प्राप्त होती है। 

कत्यूरी शासन प्रभाव में अल्मोड़ा (Almora) नगर का क्षेत्र भी रहा और उन्होने नगर की दक्षिण-पूर्वी पर्वत श्रृंखला में खगरमरकोट नामक स्थल में कत्यूरी राजाओं का दुर्ग स्थापित किया।

वर्तमान में इसी क्षेत्र में खगमरकोट में एक भव्यमंदिर स्थित है। वही नगर बसाने की प्रक्रिया में चंदों ने अपनी आवश्यकता के अनुरूप समाज के विविध वर्ग के लोगों को यहां बसाया। और कालांतर में एक सुव्यवस्थित मोहल्लों का स्वरूप इस नगर में दृष्टिगत हुआ। शिल्पियों के लिए उन्होंने राजपुरा नामक स्थल का चयन किया था और आज भी यहां यह मोहल्ला विद्यमान है। 

अल्मोड़ा (Almora) नगर के कई अन्य मोहल्ले एवं बाजार बनने की प्रक्रिया राजा रूद्रचन्द्र के काल से आरम्भ हुई थी।कालांतर में राजा लक्ष्मण चन्द्र के काल मंे नगर के उत्तरी छोर में लक्ष्मेश्वर मंदिर एवं इस क्षेत्र में नागरिकों के बसने का क्रम आरंभ हुआ। राजा बाजबहादुर चंद के काल में नारायण तिवाड़ी देवालय स्थापित किया गया और वर्तमान में इससे लगे  हीराडुंगरी नामक क्षेत्र का विकास हुआ, सुविधा के लिए अब इस क्षेत्र को एन.टी.डी. कहा जाने लगा है। कत्यूरियों के पराभव के साथ ही कुमांऊ में चंद राजाओं ने शासन सत्ता ग्रहण की थी।

कुमांऊ के चन्दवंशी राजाओं की मूल राजधानी चंपावत थी और राजसत्ता के विस्तार के साथ ही चंद अपनी राजधानी सैन्य, सुरक्षा एवं राजनैतिक कारणों से एक केंद्रीकृत स्थल पर ले जाना चाहते थे। यहां के इतिहास के संदर्भ में अधिकारिक जानकारी देने वाले विद्वानों जिनमें ट्रेल, एटकिंसन, बैटन आदि हैं उन्होंने भी इस मत को पुष्ट किया है। पिछले कुछ वर्षों में अन्य दस्तावेजों की खोजों से विद्वानों का भी यह मानना है  कि राजधानी चंपा़वत से अल्मोड़ा (Almora) लाने का मुख्य कारण सुरक्षा का प्रश्न था। अल्मोड़ा (Almora) नगर में चंदों की राजधानी बसने एवं बनने की प्रक्रिया राजा  भीष्म  चंद के समय आरंभ हुई थी।

यह भी माना जाता था कि अल्मोड़ा (Almora) नगर सन् 1560-62 के आसपास बसाया गया था किंतु यह तथ्य उदघाटित हुए हैं कि यह तिथि सन् 1530-35 के आसपास की है, क्योंकि राजा भीष्म चंद्र की तिथि यही है इस तिथि पर कई विद्वानों इतिहासविदों में विवाद हो सकता है। राजा भीष्म चंद का उत्तराधिकारी राजा कल्याण चंद को माना जाता है। उन्होंने राजधानी खगमरकोट से अत्यधिक सुरक्षित स्थल की ओर स्थानांतरित की यह क्षेत्र वर्तमान पलटन बाजार का क्षेत्र था।

ऐसा प्रतीत होता है कि प्रथम चरण में चंदों ने राजधानी बनाने की प्रक्रिया में वर्तमान अल्मोड़ा (Almora) के लालमण्डी पलटन क्षेत्र का ही विस्तार किया था और कालांतर में राजा रूद्रदेव के समय में मल्ला महल नाम से अपना राजनिवास निर्मित किया था। यहा वर्तमान में  कलेक्टर कार्यालय है जहा श्रीराम शिला मंदिर भी विद्यमान है।चंदों ने राजा उद्योत चंद के काल में वर्तमान राजकीय कन्या इंटर कालेज के समीप डयोड़ी पोखर नामक स्थल में राज परिवार का आवास बनाया। इसी समय नंदादेवी मंदिर परिसर का भी निर्माण किया गया था।

almora
सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा

इस प्रकार चंदों के काल में अल्मोड़ा (Almora) नगर बसता गया और इसके प्रमाण आज भी उस काल के मंदिर, भवन एवं अन्य स्थलों से देखे जा सकते हैं। सन् 1790 से ब्रतानवी शासकों के यहां प्रवेश तक यह नगर गोर्खों के आधिपत्य में रहा और उस समय यह कहा जा सकता है कि पलटन बाजार का क्षेत्र ही उन्होंने अपने किले या आवास के लिए उपयुक्त समझा था। 

किसी समय उन्नीसवीं शताब्दी का एक छोटी सी आबादी वाला यह सांस्कृतिक नगर अल्मोड़ा (Almora) आज अपना अर्थ बदल चुका है। 1820 के बाद इस नगर की जनसंख्या 3515 थी और आवासीय भवन मात्र 742 थे। आज सीमेंट के अनियोजित विकास के साथ बन रहे भवनों एवं विकृत होते स्वरूप में केवल इस शहर का सुन्दर इतिहास वर्णित किया जा सकता है।

कृपया हमारे youtube चैनल को सब्सक्राइब करें

https://www.youtube.com/channel/UCq1fYiAdV-MIt14t_l1gBIw