समाज के लिए एक मिसाल है लोहाघाट की रीता दी

ललित मोहन गहतोड़ी लोहाघाट (चम्पावत) । तीलू रौतेली पुरस्कार प्राप्त रीता गहतोड़ी समाज में अब किसी परिचय की मोहताज नहीं। रीता स्वयं में इस समाज के…

ललित मोहन गहतोड़ी

लोहाघाट (चम्पावत) । तीलू रौतेली पुरस्कार प्राप्त रीता गहतोड़ी समाज में अब किसी परिचय की मोहताज नहीं। रीता स्वयं में इस समाज के लिये एक जीती जागती मिसाल है। जीवन में कठिन से कठिन परिस्थितियों में धैर्यपूर्वक सामने आ रही हर चुनौती को स्वीकारते हुए रीता ने सभी बाधाओं को पार कर एक अलग मुकाम हासिल किया है। हम उम्र महिलाओं में जब जागरूकता की बात आती है तो चम्पावत जिले की बेटी रीता का नाम सबसे पहले सामने आता है।

गरीब और समाज से अलग थलग कटे बा​ल्मिकी समाज के बीच बच्चों को शिक्षित करने का बीड़ा हो, महिलाओं के अधिकारों के हनन की बात हो या अस्पताल में मरीजों को हो रही परेशानी हो, विक्षिप्त महिलाओं के अधिकारों की बात हो, प्रत्येक जगह पहुंचकर रीता लोगों की मदद के लिये हमेशा तत्पर रहती है। कुछ वर्षो पूर्व अफगानिस्तान की एक किशोरी को हक दिलाने की लड़ाई में रीता आगे रही। समाज में सौहार्दपूर्ण भाईचारा बनाए रखने के प्रेरित भी करती है। जीवन में समाज सेवा को अपनी मुहिम बना लेने वाली रीता अब खादी को जन जन तक पहुंचने के लिए प्रयासरत है। रीता का कहना है कि खादी पहनने से देश की गरीबी दूर होने के साथ ही स्वदेशी वस्त्रों की बिक्री भी बढ़ेगी जिससे रोजगार के अनेक साधन पैदा होंगे। इसके लिए स्वयं रीता भी अपनी पोशाक में खादी के कपड़े पहनने लगी है।
जीआईसी लोहाघाट के निकट चानमारी में निवास कर रही अपनी बूढ़ी मां और तीन बहिनों में सबसे बड़ी रीता ने समाज के मिथकों को तोड़ने का भी काम किया है। उन्होने अपने स्वर्गीय पिता को मुखाग्नि देते प्रचलित रीति रिवाजों को बदलने का साहस दिखाया।
रीता दी के नाम से जाने वाली रीता गहतोड़ी ने अपना पूरा जीवन लोगों की मदद के लिये समर्पित किया हुआ है। पिता की मौत के बाद परिवार की जिम्मेदारियों को उठाते हुए उसने अपनी दोनों बहनों को भी प्रोत्साहित करते हुए उन्हें अच्छी तालीम दिलाने में उन्होने महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। समाज में जिन मुद्दों को उठाने में पुरुष प्रधान समाज अपना हाथ पीछे खींचता है ऐसे मुद्दों को सामने लाकर रीता अब समाज में अपनी एक अलग पहचान बना चुकी है। बाल्मिकी समाज के बच्चों को प्रोत्साहित कर मुख्य धारा में लाने के लिए की गई कोशिशों के चलते रीता को समाज में काफी उलेहना सहनी पड़ी थी। लेकिन अपने उसूलों पर अंत तक अटल रीता इन दकियानूसी बातों को किनारा कर समाज सेवा में निरंतर तल्लीन है। आज भी सुबह से शाम तक  कंधे में झोला लटकाए खादी के कपड़ों में अपने कार्यस्थल पर जूझते रीता दी को देखा जा सकता हे।