Tehri Lok Sabha seat- आज भी बरकरार है राजशाही तिलिस्म

Tehri Lok Sabha seat- आजादी के बाद से टिहरी सीट पर लगातार राजशाही का तिलिस्म बरकरार है अब तक के 17 आम चुनावों में टिहरी…

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Tehri Lok Sabha seat- आजादी के बाद से टिहरी सीट पर लगातार राजशाही का तिलिस्म बरकरार है अब तक के 17 आम चुनावों में टिहरी सीट पर 11 बार टिहरी के राज परिवार का ही कब्जा रहा है, लेकिन आपको बता दें टिहरी सीट पर राजपरिवार के सहारे भाजपा आठ बार जीती जरूर है पर ये जीत भाजपा से ज्यादा राजपरिवार की अधिक लगती रही। हालांकि दिलचस्प ये है कि आजादी के बाद से 90 के दशक तक टिहरी संसदीय सीट कांग्रेस का गढ़ बनी रही दो चुनावों में हारने के बाद भी टिहरी में कांग्रेस का कैडर वोट बरकरार रहा। टिहरी की संसदीय सीट के लिए वैसे तो कई बड़े से बड़े नेता मैदान में उतरे लेकिन यहां के राजघराने के वर्चस्व को डिगा नहीं पाए।


Tehri Lok Sabha seat-
आपको बता दें कि 90 के दशक से लेकर अब तक जिस भी पार्टी में राज परिवार का कोई भी मेंबर शामिल रहा है उस पार्टी की जीत पक्की मानी गई है, ये सिर्फ कहने वाली बात नहीं है आपको ये जानकर हैरानी होगी की इसी के सहारे भाजपा ने टिहरी सीट पे आठ बार जीत दर्ज की है लेकिन दूसरा इंटरेंस्टिग पहलू यह भी है कि भाजपा के लगातार जीतने के बाद भी राज परिवार का जादू यहां कांग्रेस की जड़ों को नहीं हिला पाया है। टिहरी सीट पर कांग्रेस को मिले वोटों की बात की जाए तो साल 2014 में कांग्रेस को 31 फीसदी और साल 2019 में 30 फीसदी वोट मिले थे।


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11 बार जीता राजशाही परिवार
साल 1949 में जब टिहरी रियासत का भारत में विलय हुआ तो उसके बाद साल 1952, में पहले लोकसभा चुनाव हुए जिसमें राजा मानवेंद्र शाह कि चुनाव लड़ाने की पूरी तैयारी कर ली गई थी, लेकिन उनका नामांकन खारिज हो गया इसके बाद महारानी कमलेंदुमति शाह को निर्दलीय ही चुनाव के रण में उतारा गया। उत्तराखंड में कांग्रेस जैसी मजबूत पार्टी होने के बाद भी राज परिवार का तिलिस्म बरकरार रहा और महारानी कमलेंदुमति शाह ने टिहरी सीट पर निर्दलीय जीत हासिल कर कि इसके बाद राजशाही परिवार से मानवेंद्र शाह ने कांग्रेस से चुनाव लड़ा फिर क्या था साल 1957, 1962 और 1967 के लोकसभा चुनावों में लगातार राज परिवार की जीत हुई।


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ऐसा नहीं है कि टिहरी सीट पर लगातार राज परिवार ही राज करता रहा, साल 1977 में टिहरी में तर्पण सिंह नेगी ने जनता पार्टी से चुनाव में जीत हासिल की थी, साल 1980 में भी एक बार फिर त्रेपन सिंह नेगी ने कांग्रेस पार्टी से चुनाव जीता इसके बाद साल 1984 और 1989 में ब्रह्म दत्त ने Tehri Lok Sabha seat पर कांग्रेस के टिकट पर लड़कर जीत हासिल की।


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साल 1991 में मानवेंद्र शाह ने भाजपा जाइन कर चुनाव लड़ा और फिर साल 1991 से 2004 तक हुए पांच आम चुनावों में टिहरी सीट पर शाही परिवार का ही राज रहा इसके बाद साल 2009 में कांग्रेस से विजय बहुगुणा ने राजशाही का तिलिस्म तोड़ कर कांग्रेस पार्टी से जीत हासिल की लेकिन फिर साल 2012 में हुए उपचुनाव में भाजपा ने राजपरिवार के जरिए इस सीट पर दोबारा कब्जा कर लिया साल 2014 में कांग्रेस से साकेत बहुगुणा और 2019 में प्रीतम सिंह माला राज्य लक्ष्मी शाह से चुनाव हारे ।


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इस बार की स्थिति
इस बार टिहरी सीट को लेकर चर्चाओं के बाजार गर्म थे माना जा रहा था कि इस सीट से बीजेपी किसी नए और युवा चेहरे को मौका दे सकती है लेकिन एक बार फिर से बीजेपी ने यहां राजशाही परिवार पर भरोसा जताया है। BJP के इस फैसले से पार्टी के अंदर ही एक वर्ग अचंभे में है, लेकिन पार्टी हाईकमान ने चुनावी गणित के हिसाब से ही राजशाही परिवार की प्रतिनिधि को प्रत्याशी बनाना बेहतर समझा। इस बार राजशाही परिवार की रानी माला राज्य लक्ष्मी शाह का मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी जोत सिंह गुनसोला से होना है आपको बता दें, गुनसोला पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं अब देखना ये होगा कि क्या कांग्रेस इस बार टिहरी में राजशाही का तिलिस्म तोड़ने में कामयाब हो पाएगी।