मुद्दा : रिजल्ट के खौफ का शिकार बनते बच्चे

बोर्ड परीक्षाफल जारी होने के बाद अपने मन मुताबिक रिजल्ट ना आने से व्यथित कई ​विद्यार्थियों ने मौत को गले लगा लिया। रिजल्ट के खौफ…

बोर्ड परीक्षाफल जारी होने के बाद अपने मन मुताबिक रिजल्ट ना आने से व्यथित कई ​विद्यार्थियों ने मौत को गले लगा लिया। रिजल्ट के खौफ पर चर्चा कर रहे है शिक्षक लाल सिंह वाणी

जान का खतरा तो हिंसक जानवरों, डाकुओं, लुटेरों से होता है। फिर उन मासूम बच्चों को किस बात का खतरा जो अभी तक इस दुनिया को ठीक से समझ भी नहीं सके हैं। बमुश्किल पन्द्रह-सोलह साल के हुए हैं।

हाईस्कूल व इण्टर का बोर्ड परीक्षाफल क्या किसी की जान भी ले सकते हैं? नहीं। बिल्कुल नहीं। जान का खतरा तो हिंसक जानवरों, डाकुओं, लुटेरों से होता है। फिर उन मासूम बच्चों को किस बात का खतरा जो अभी तक इस दुनिया को ठीक से समझ भी नहीं सके हैं। वह बमुश्किल पन्द्रह-सोलह साल के हुए हैं। अगर परीक्षाफल किसी की मौत का कारण बनते हैं तो यह भयावह है। ज्यादातर मामलों में परीक्षा परिणाम आने के बाद सभी समाचार पत्र, टी0वी0 व सोशल मीडिया टॉपर बच्चों की कवरेज से पट जाते हैं। हर तरफ खुशियां मनाते हुए बच्चे व उनके माता-पिता देखे जा सकते हैं लेकिन इन सबसे दूर कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जिनके लिये बोर्ड परीक्षाफल भयंकर सुनामी जैसा होता है। उनके लिये ये समाचार पत्र किसी डरावने कार्टून जैसे होते हैं। शायद बच्चों को परीक्षा देने के दिन से परीक्षाफल घोषित होने तक अनुत्तीर्ण होने का भय सताता रहा हो। लगभग एक माह तक वे उम्मीद लगाये रहते होंगे कि उनकी नैया भी किसी तरह पार लग जायेगी लेकिन आशातीत परिणाम न आने पर उन्हें लगता है कि उन्होंने कोई भयंकर अपराध कर लिया है जिससे बचने का एकमात्र तरीका आत्मघाती कदम है। ऐसा आत्मघाती कदम तो वह अपराधी भी नही उठाता है जिसके पीछे पुलिस लगी रहती है। वह भी अदालत में समर्पण कर देता है तथा उम्मीद लगाये रहता है कि वो कानून के दंड से बच जायेगा। बच्चे सोचते होंगे कि उनके फेल होने से उनके माता-पिता को शर्मिन्दगी महसूस होगी। समाज में उनका नाम रोशन करने की बजाय मलिन हुआ होगा जिसके लिये वे अपने को दोषी ठहराते हैं। बच्चों को अपने माता-पिता के चेहरे पर निराशा देखी नहीं जाती होगी क्योंकि वे उन्हें दुनियां में सबसे ज्यादा प्यार करते हैं। शायद ऐसा सबकुछ सोचकर अनुत्तीर्ण छात्र आत्मघाती कदम उठा लेते होंगे।

क्या ऐसा नहीं हो सकता कि शिक्षा विभाग उन बच्चों की, जो फेल हुए हैं, परीक्षाफल घोषित करने से पहले गाइडेंस व काउंसलिंग करे। बच्चे यदि जीवित रहेंगे तो वे दुबारा परीक्षा दे सकेंगे लेकिन यहां तो उनकी जिंदगी ही खत्म हो जाती है। शिक्षा विभाग फिर से अगले साल की तैयारी में जुट जाता है व फिर दूसरे साल कुछ छात्र फिर से आत्मघाती कदम उठा लेते हैं और आगे भी यही सिलसिला जारी रहता है। मूल्यांकन करने वाले शिक्षक को यह पता नहीं रहता है कि जिस छात्र की उत्तरपुस्तिका वह जांच रहा है वह कितनी दफा बोर्ड परीक्षा में फेल हो चुका है व वह कितनी विकट परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए बार-बार परीक्षा देने का साहस जुटा रहा होता है। राजमिस्त्रि का काम करने वाले चौखुटिया निवासी जीवन राम ने अपने पुत्र के लगातार तीसरी बार बारहवी कक्षा में अनुत्तीर्ण होने पर जहर गटक लिया व कुछ अन्य छात्रों की स्थिति भी गंभीर चल रही है। मूल्यांकनकर्ता को यह पता नहीं रहता है कि अनुत्तीर्ण होने वाले छात्र के माता-पिता किस तरह अपने बच्चे की पढ़ाई का खर्च उठा रहे होंगे व वह छात्र एक-दो साल से अनुत्तीर्ण चल रहा होगा। मूल्यांकनकर्ता यह मान लेते हैं कि जो छात्र अनुत्तीर्ण हो रहा है वह मेहनती नहीं होगा तभी तो वह उत्तीर्णांक भी नहीं ला पा रहा है अन्यथा हर साल एक-दो अंको से अनुत्तीर्ण होने वाले छात्र की उत्तरपुस्तिका का वह उदारतापूर्वक मूल्यांकन करता।

शिक्षा विभाग को कुछ ऐसा प्रावधान करना चाहिये जिससे बार-बार या पहली बार अनुत्तीर्ण होने वाले छात्रों को आत्मघाती कदम उठाने से बचाया जा सके। अनुत्तीर्ण होने वाले छात्रों को दूसरे स्कूलों में भी आसानी से प्रवेश नहीं मिलता है। उत्तर प्रदेश परीक्षा बोर्ड में पूर्व में विज्ञान एक या दो तथा गणित एक या दो चुनने का प्रावधान था लेकिन अब ऐसा नही है। छात्र हित में प्रत्येक विषय में दो तरह के प्रश्नपत्र बनाये जा सकते हैं जिसमें दूसरा अपेक्षाकृत सरल हो। छात्रों के लिये विकल्प होना चाहिये कि वे जिस विषय में खुद को कमजोर समझते हैं उसमें वह सरल प्रश्नपत्र में बैठे। इसका उल्लेख उसके प्रमाणपत्रों में किया जा सकता है। ऐसा करने से वे अनुत्तीर्ण होने के कारण सम्भावित आत्मघाती कदम उठाने की तरफ सोचेंगे भी नही व शिक्षा विभाग का भी कोई नुकसान नही होगा। ऐसा भी किया जा सकता है कि जो छात्र अनुत्तीर्ण हो रहा है उसका रिजल्ट घोषित न किया जाय व उसे कुछ समय अंतराल में पुनः परीक्षा में बैठाया जा सकता है उनके लिये अपेक्षाकृत सरल प्रश्नपत्र का प्रावधान किया जा सकता है।

लाल सिंह वाणी पेशे से अध्यापक है और उत्तराखण्ड के हल्द्वानी में रहते है।