सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ उठाने के लिए ईश्रम पोर्टल पर पंजीकरण 8 करोड़ प्रवासी श्रमिकों को बड़ी राहत दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को दो महीने के भीतर प्रवासी श्रमिकों को राशन कार्ड जारी करने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने आदेशों के अनुपालन से पहले सभी 8 करोड़ प्रवासी श्रमिकों के लिए ईकेवाईसी अपडेट करने की आवश्यकता के मद्देनजर राशन कार्ड जारी करने में अनावश्यक देरी पर चिंता व्यक्त की।
ईश्रम पोर्टल पर रजिस्टर प्रवासी श्रमिकों का खाद्य सुरक्षा अधिनियम लाभार्थी के साथ मिलान पहले ही किया जा चुका है और उस आधार पर यह देखा गया था कि 8 करोड लोगों के पास राशन कार्ड नहीं है जिस कारण उन्हें सस्ते दाम पर राशन प्राप्त नहीं होता है। अदालत में यह भी कहा गया कि ई केवाईसी जो केंद्र करना चाहता था उसी समय होनी चाहिए और राशन कार्ड जारी करने में यह बाधा नहीं बननी चाहिए।
अगली सुनवाई 16 जुलाई को
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि एनएफएसए की धारा 3 में कहा गया है कि कोटा के तहत राशन कार्ड जारी किए जाने चाहिए। इसमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत पात्र परिवारों को रियायती मूल्य पर खाद्यान्न प्राप्त करने का अधिकार भी है। पीठ ने कहा, ‘वर्तमान में, राज्य सरकारें/केंद्र शासित प्रदेश राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 की धारा 3(2) के तहत राशन कार्ड जारी करें। इसके प्रभाव की जांच बाद के चरण में की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सुनवाई की अगली तारीख 16 जुलाई तय की।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा यह निश्चित करना केंद्र सरकार का कर्तव्य है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत अंतिम व्यक्ति तक राशन पहुंचे यह हम नहीं चाहते कि केंद्र सरकार कुछ नहीं कर पा रहा है। भारत ने कोविड के दौरान ये निश्चित किया था कि लोगों तक राशन पहुंचे। यह अभी तक जारी है। हमारी संस्कृति या सुनिश्चित करती है कि कोई खाली पेट ना सोए। अदालत कोविड महामारी और उसके परिणामस्वरूप हुए लॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा से संबंधित एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है।
सामाजिक कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज, हर्ष मंदर और जगदीप छोकर की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि 2011 की जनगणना के बाद देश की जनसंख्या में वृद्धि हुई है और एनएफएसए के तहत कवर किए गए लाभार्थियों की संख्या भी बढ़ी है। मामले में याचिकाकर्ताओं ने 2011 की जनगणना के पुराने आंकड़ों का हवाला देते हुए तर्क दिया कि 10 करोड़ से अधिक श्रमिक को खाद्य सुरक्षा अधिनियम से बाहर हो सकते हैं और जनसंख्या वृद्धि के लिए वे जिम्मेदार नहीं हैं।