उत्तराखंड उच्च न्यायालय में हाल ही में एक ऐसा मामला देखने को मिला है जिसमे 16 वर्षीय बलात्कार पीड़िता के पिता ने 28 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय मे अर्जी लगाई इस पर मेडिकल बोर्ड ने सलाह दी की इससे नाबालिग लड़की को खतरा हो सकता है।
पीड़िता के पिता ने तर्क देते हुए कहा की अगर गर्भावस्था जारी रही तो इससे पीड़िता को मानसिक चोट पहुंच सकती है। जिस पर न्यायालय ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 के अनुसार, एक बलात्कार पीड़िता को अपनी गर्भावस्था को समाप्त करने का पूरा अधिकार है।
न्यायालय ने कहा कि गर्भावस्था को जारी रखने के लिए मजबूर करने से लड़की के अनुच्छेद 21 के तहत मानवीय गरिमा के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन होगा और फैसला देते हुए न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा ने कहा की यदि इससे पीड़ित के जीवन के लिए कोई जोखिम पाया जाता है तो इस प्रक्रिया को रद्द कर दिया जाएगा।