शिक्षा में सृजनशीलता का प्रश्न और मौजूदा व्यवस्था भाग 9

शिक्षा में सृजनशीलता का प्रश्न और मौजूदा व्यवस्था पर महेश चन्द्र पुनेठा का यह लेख किश्तों में प्रकाशित किया जा रह है, पुनेठा मूल रूप से शिक्षक…

शिक्षा में सृजनशीलता का प्रश्न और मौजूदा व्यवस्था पर महेश चन्द्र पुनेठा का यह लेख किश्तों में प्रकाशित किया जा रह है, पुनेठा मूल रूप से शिक्षक है, और शिक्षा के सवालो को उठाते रहते है । इनका आलोक प्रकाशन, इलाहाबाद द्वारा ”  भय अतल में ” नाम से एक कविता संग्रह  प्रकाशित हुआ है । पुनेठा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों द्वारा जन चेतना के विकास कार्य में गहरी अभिरूचि रखते है । देश के अलग अलग कोने से प्रकाशित हो रही साहित्यिक पत्र पत्रिकाओ में उनके 100 से अधिक लेख, कविताए प्रकाशित हो चुके है ।

सबको शिक्षा और समानतामूलक शिक्षा का मसला गुणवत्ता से भी जुड़ा हुआ है। यदि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं दी जाती है तो ऐसी शिक्षा का दिया जाना किसी मतलब का नहीं है। शिक्षक-छात्र का जो मौजूदा अनुपात(1ः30) तय किया गया है, उससे कितनी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त की जा सकती है, यह समझा जा सकता है। एक शिक्षक द्वारा एक समय में एक से अधिक कक्षाओं और स्तरों के बच्चों को पढ़ाने से बच्चों को शिक्षा नहीं सरकारी प्रमाणपत्र ही दिया जा सकता है। सरकारी स्कूलों की इसी कमजोरी के चलते आज हर अभिवावक अपनी हैसियत के अनुकूल अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाना चाह रहा है। इसके लिए क्या कहीं न कहीं सरकार की नीतियाँ जिम्मेदार नहीं हैं? आज एक बड़ा वर्ग अभाव वाली शिक्षा प्राप्त करने के लिए विवश क्यों है?

क्या सरकार को इस अभाव को दूर नहीं करना चाहिए? शिक्षाविदों का मानना है कि शिक्षा मानव को बौद्धिक और भावनात्मक रूप से इतना मजबूत और दृष्टिवान बनाती है कि वह स्वयं ही आगे बढ़ने का रास्ता, ज्ञान के सृजन का रास्ता और उसके सहारे अपने और अपने समाज के विकास का रास्ता ढूँढने योग्य हो जाता है। क्या हमारी शिक्षा ऐसा कर पा रही है? इस दिशा में गम्भीरता पूर्वक विचार कर ईमानदारी से आगे बढ़ने की आवश्यकता है।

आज निजी विद्यालयों में बच्चों को पढ़ाना ‘स्टैटस सिंबल’ बन चुका है। हर एक अभिभावक की कोाशश है कि अपने पाल्य को अपने पड़ोसी व नाते-रिश्तेदार और परिचित के बच्चे से बेहतर पब्लिक स्कूल में भेजे या कम से कम उस स्कूल में तो भेजे ही जहाँ पड़ोसी का बच्चा पढ़ रहा है। एक होड़ सी मची हुई है। अपनी आर्थिक हैसियत से भी बढ़कर पब्लिक स्कूल खोजे जा रहे हैं। प्रवेश पाने के लिए जुगाड़ लगाया जा रहा है।

अभिभावक ऊँची से ऊँची कैपीटिशन फीस देने से पीछे नहीं हट रहे हैं, जबकि कैपिटेशन फीस को आर.टी.ई. के तहत अवैध घोषित कर दिया गया है। पड़ोस का सरकारी स्कूल भले ही कितनी भी अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा प्रदान कर रहा हो कोई भी अपने बच्चे को वहाँ नहीं भेजना चाहता है। सरकारी स्कूलों में अब केवल वही बच्चे जा रहे हैं, जिनके पास पब्लिक स्कूल के रूप में कोई विकल्प नहीं है या जिनके अभिभावकों की वहाँ भेजने की हैसियत नहीं है।


लेकिन शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 के तहत निजी विद्यालयों के लिए अपनी
कुल छात्र संख्या के कम से कम पच्चीस प्रतिशत गरीब तबके के बच्चों को अनिवार्य रूप से प्रवेश देने के प्रावधान के बाद अब इस तबके के बच्चों के लिए भी निजी विद्यालयों के दरवाजे खुल गए हैं। इसके तहत गरीब तबके के उन बच्चों को एक वाऊचर दिया जाएगा जो निजी विद्यालयों में प्रवेश लेंगे। प्रावधान है कि बाऊचर उतनी ही धनराशि का होगा जितना आज की तिथि में सरकार सरकारी स्कूलों में एक वर्ष में एक बच्चे के ऊपर खर्च कर रही है। ऐसी स्थिति में सरकारी स्कूलों में छात्र नामांकन की दर गिरना स्वाभाविक है।


बाजारवाद, अंग्रेजी माध्यम के बढ़ते प्रभाव और सरकारी शिक्षा की बदहाली के चलते जहाँ पहले ही सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या कम होती जा रही थी, वहाँ निजी विद्यालयों में पच्चीस प्रतिशत गरीब बच्चों के आरक्षण ने कोढ़ में खाज का काम किया है। इससे प्रतिवर्ष बच्चों की नामांकन दर तेजी से गिरने लगी है। कम छात्र संख्या के चलते अनेक स्कूल बंद होने लगे हैं। यही स्थिति रही तो आगामी नौ-दस वर्षों में सरकारी प्रारंभिक विद्यालयों के सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो जाएगा। केवल वहीं सरकारी विद्यालय दिखेंगे जहाँ निजी विद्यालयों की पहुँच नहीं है।

अब नए सरकारी स्कूल खोलने के स्थान पर सरकार द्वारा गैर-सरकारी संस्थाओं को स्कूल खोलने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। निजी विद्यालयों को संचालित करना अब आसान भी हो जाएगा। इसके दो कारण हैं-पहला, दूरस्थ क्षेत्रां में सरकारी स्कूलों के न रहने से निजी विद्यालयों को छात्र असानी से मिल जाएंगे और दूसरा, इन पच्चीस प्रतिशत बच्चों के नाम पर मिलने वाली सरकारी धनराशि से वे अपने आधारभूत खर्चे आसानी से निकाल लेंगे। अन्य पिचहत्तर प्रतिशत बच्चों से शुल्क के रूप में मिलने वाली राशि उनका विशुद्ध लाभ होगा। साथ ही पच्चीस प्रतिशत बच्चों के लिए सरकार की ओर से छात्रवृत्ति, मध्याह्न भोजन, ड्रेस, पाठ्य पुस्तक आदि के लिए मिलने वाली धनराशि में से कमीशनखोरी अलग होगी