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शिक्षा में सृजनशीलता का प्रश्न और मौजूदा व्यवस्था भाग 23

Newsdesk Uttranews
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शिक्षा में सृजनशीलता का प्रश्न और मौजूदा व्यवस्था पर महेश चन्द्र पुनेठा का यह लेख किश्तों में प्रकाशित किया जा रहा है, श्री पुनेठा मूल रूप से शिक्षक है, और शिक्षा के सवालो को उठाते रहते है । इनका आलोक प्रकाशन, इलाहाबाद द्वारा ”  भय अतल में ” नाम से एक कविता संग्रह  प्रकाशित हुआ है । श्री पुनेठा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों द्वारा जन चेतना के विकास कार्य में गहरी अभिरूचि रखते है । देश के अलग अलग कोने से प्रकाशित हो रही साहित्यिक पत्र पत्रिकाओ में उनके 100 से अधिक लेख, कविताए प्रकाशित हो चुके है ।
भाषायी दक्षता के विकास में दीवार पत्रिका की भूमिका
भाषायी दक्षता के विकास की पहली शर्त है कि बच्चे को स्वतंत्र चिंतन और सुनने,बोलने,पढ़ने और लिखने के अधिकाधिक अवसर प्रदान किए जाएं। यह स्वाभाविक है, बच्चे भाषायी कौशलों का जितना अधिक अभ्यास करेंगे, उनकी भाषायी दक्षता उतनी अधिक बढ़ेगी। भाषायी कौशलों के अभ्यास के लिए विशेषकर लेखन कौशल की दृष्टि से, दीवार पत्रिका सबसे अच्छा माध्यम है। जो बच्चे जितना अधिक पढ़ते और लिखते हैं,उनकी भाषा उतनी अधिक मजबूत होती है। दीवार पत्रिका के लिए रचना तैयार करते हुए बच्चे अपने चिंतन को टूटी-फूटी भाषा में दबाब मुक्त होकर व्यक्त करते हैं, जिससे उनकी भाषा मजबूत होती है। बच्चों के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
सामान्यतः हमारे स्कूली शिक्षा के ढांचे में बच्चों की मौलिक अभिव्यक्ति के बहुत कम अवसर हैं। हमारी स्कूली शिक्षा बच्चों को परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण सूचनाओं,तथ्यों,विवरणों और अवधारणाओं को रटने तथा परीक्षा में ज्यों का त्यों उतार देने को ही अधिक प्रोत्साहित करती है। दीवार पत्रिका इस कमी को पूरा करती है। यह बच्चों को अपने विचारों और भावनाओं को अभिव्यक्त करने का अवसर देने का सबसे सशक्त माध्यम है। बच्चे इसमें अपनी बोलचाल की भाषा में अपने मन की बात सहज रूप में व्यक्त कर पाते हैं ,ऐसा कर वे आनंद का अनुभव भी करते हैं जिससे उनके मस्तिष्क का स्वाभाविक विकास होता है।
लेखन और अध्ययन दोनों एक दूसरे पर निर्भर हैं। लिखने के लिए पढ़ना जरूरी है और पढ़ने से लिखने की प्रेरणा मिलती है। दीवार पत्रिका में प्रकाशनार्थ रचना तैयार करने हेतु बच्चों को विभिन्न पुस्तकों तथा पत्र-पत्रिकाओं का अघ्ययन करना पड़ता है जिसके चलते बच्चों में अध्ययन की आदत विकसित होती है। दीवार पत्रिका में लिखा बच्चों के स्तर का होता है जिसके कारण सभी बच्चों के समझ में आसानी से आ जाता है, इससे उन बच्चों में भी पढ़ने के प्रति लगाव बढ़ता है, जिन बच्चों की भाषा पर बहुत अच्छी पकड़ नहीं होती है।
आपके मन में प्रश्न पैदा हो रहा होगा कि आखिर यह दीवार पत्रिका क्या है ? दरअसल ,यह एक हस्तलिखित पत्रिका है, जो दीवार पर कलैंडर की तरह लटकायी जाती है। इसमें साहित्य की विभिन्न विधाओं,बच्चों के अनुभवों ,रोचक गतिविधियों और चित्रकला को स्थान दिया जाता है। रचनाओं को एकत्र कर पहले सादे कागज पर सुलेख में लिख लिया जाता है, फिर सारी सामग्री को एक दिन एक लंबे चार्ट पेपर या पुराने कलैंडर में चिपका दिया जाता है। पूरा चार्ट पेपर भर जाने के बाद उसे दीवार पर ऐसे स्थान पर लटका दिया जाता है,जहां पर खड़े होकर उसे आसानी से पढ़ा जा सके। यह कार्य एक निश्चित समयांतराल पर किया जाता है। पुराना अंक पढ़ लिए जाने के बाद नया अंक उसके स्थान पर लगा दिया जाता है। इसे भित्ती पत्रिका या वॉल मैग्जीन के नाम से भी पुकारा जाता है।
इसे बहुत कम लागत पर आसानी से तैयार किया जा सकता है।बच्चों की रचनात्मकता को मंच देने हेतु यह बहुत आसान और प्रभावशाली माध्यम है। इसके द्वारा लेखन,संपादन और प्रबंधन का पूरा अवसर बच्चों को प्रदान किया जा सकता है। यह मुद्रित स्वरूप में आने वाली स्कूल पत्रिका से भी अधिक महत्व रखती है, क्योकि इसमें बच्चों को अधिक स्वायत्तता और अवसर मिलते हैं। व्ययसाध्य होने के कारण स्कूल पत्रिका तो वर्ष में एक ही बार प्रकाशित की जा सकती है, जिस कारण बच्चों को एक वर्ष में एक ही बार प्रकाशित होने का अवसर मिल पाता है, जबकि दीवार पत्रिका के साथ ऐसी कोई दिक्कत नहीं है। यदि रचनाएं अधिक संख्या में आने लगें तो दीवार पत्रिका के प्रकाशन का समयंतराल घटाया जा सकता है। एक ही स्कूल से एक से अधिक पत्रिकाएं भी प्रकाशित की जा सकती हैं।
दीवार पत्रिका इस तरह तैयार की जा सकती है
0-सर्वप्रथम एक संपादक मंडल का गठन किया जाय।इसमें ऐसे बच्चों का चयन किया जाय जिनकी लिखावट सबसे अच्छी हो तथा वर्तनी संबंधी गलतियां कम से कम करते हों।कुछ ऐसे बच्चे भी रखे जांय जो चित्रकला में रूचि रखते हों। प्रबंधन के लिए अपेक्षाकृत बड़े बच्चों का भी चयन किया जाय। संपादक मंडल में शामिल बच्चों में से किसी एक को संपादक तथा दो को सहायक संपादक बना दिया जाय।
0-संपादक मंडल को दीवार पत्रिका की अवधारणा के बारे में बताते हुए बच्चों के साथ चर्चा करते हुए दीवार पत्रिका का एक नाम तय कर लिया जाय। अच्छा हो इस अवसर पर एक तैयार दीवार पत्रिका बच्चों के सामने प्रस्तुत की जाय।
0-संपादक मंडल के सहयोग से सभी बच्चों को छोटी-छोटी कविता-कहानी, संस्मरण, यात्रा वृतांत, आसपास के सामचार लिखने तथा पहेलियां,चुटकुले,दिमागी खेल आदि ढूंढकर लाने और चित्र बनाने के लिए कहा जाय। इसके लिए बच्चों को कुछ बाल पत्रिकाएं पढ़ने और लिखने के टिप्स देने की भी आवश्यकता पड़ेगी।
0-सामग्री एकत्र हो जाने के बाद संपादक मंडल से उस सामग्री को पढ़कर चयन करने तथा वर्तनी संबंधी गलतियों को ठीक करते हुए पुनर्लेखन करने के लिए कहा जाय। संपादक अपना संपादकीय भी तैयार करे।
0-पर्याप्त सामग्री एकत्र हो जाने के बाद दो चार्ट लिए जाय। दोनों को लंबवत जोड़ लिया जाय। इस तरह चार्ट की लंबाई लगभग एक मीटर से अधिक हो जाएगी। चिपकाए हुए चार्टों के रंग से भिन्न चार्ट से लगभग दस सेंटीमीटर चौड़ी एक पट्टी काट ली जाय। इस पट्टी पर कलात्मक रूप से दीवार पत्रिका का नाम लिख लिया जाय जिसे लंबे चार्ट के ऊपरी सिरे पर चिपका दिया जाय।ये सारे कार्य बच्चों के द्वारा ही करवाए जाय।
0-तैयार चार्ट को कुछ समय सूखने देने के बाद उसमें एक सिरे से सादे कागज में बच्चों द्वारा लिखी सामग्री को चिपकाने के लिए कहा जाय। यह बच्चे ही तय करें कि कौनसी सामग्री कहां ,पर चिपकाई जाय।
0- सारी सामग्री चिपका लिए जाने के बाद हर रचना के चारों ओर स्केज या मार्कर से बार्डर खींच लिया जाय।
0-अंत में दीवार पत्रिका के दोनों सिरों को सपोर्ट देने के लिए उसके पीछे टेप की सहायता से पतली डंडी लगाई जाय जिससे मुड़ने से बच जाएंगे। ठीक बीच में उचित दूरी पर दो छेद कर फाइल टैग लगाकर कलैंडर की तरह उसे दीवार पर टांगने की व्यवस्था करें। चार्ट के कोने फटने न पाएं इसके लिए चारों ओर किनारों को चौड़े टेप से लेमिनेट किया जा सकता है।
दीवार पत्रिका के लिए विषय-सामग्री जुटाने के लिए निम्न उपाय किए जा सकते हैं-
1-वर्षभर होने वाले विशेष दिवसों के अवसर पर वाद-विवाद ,भाषण,निबंध,कहानी,कविता लेखन तथा चित्रकला प्रतियोगिताओं का आयोजन करना। इन प्रतियोगिताओं में प्राप्त प्रविष्टियों को सुरक्षित रख क्रमशः दीवार पत्रिका में स्थान दिया जा सकता है।
2-विभिन्न विषयों के यूनिट टेस्टों में ऐसे प्रश्न दिए जा सकते हैं जिनमें बच्चों को अपने विचारों तथा अनुभवों को व्यक्त करने का अधिक अवसर मिलता हो। परीक्षा के दौरान हर बच्चा कोशिश भी करता है कि वह अपना बेहतरीन प्रदर्शन करे। इनमें से अच्छी सामग्री का चयन कर दीवार पत्रिका में इस्तेमाल किया जा सकता है।
3-कभी न कभी प्रत्येक बच्चा कोई न कोई यात्रा अवश्य करता है। यह यात्रा उसके गांव से शहर की या उसके शहर से गांव की भी हो सकती है। बच्चे से अपनी यात्रा के बारे में लिखने के लिए कहा जा सकता है। प्रत्येक अंक में एक-दो बच्चों के यात्रा-वृत्तांतों को प्रकाशित किया जा सकता है।
4-विद्यालय के सेवित क्षेत्र में आए दिनों कोई न कोई स्थानीय तीज-त्यौहार और मेले आयोजित होते रहते हैं। इनके संबंध में कब,कहां,क्यों,कैसे आदि जानकारियां एकत्र कर उनका वर्णन करने के लिए बच्चों से कहा जा सकता है।
5-प्रत्येक बच्चे से प्रतिदिन डायरी लिखने के लिए कहा जा सकता है, जिसमें से रोचक और महत्वपूर्ण पृष्ठों को दीवार पत्रिका में एक नियमित स्तम्भ के रूप में दिया जा सकता है।
6-प्रार्थना सभा में प्रतिदिन बच्चों द्वारा प्रस्तुत प्रेरक प्रसंगों और समाचारों को लिखित रूप से एकत्र किया जा सकता है।
7-विभिन्न विषयों में दिए जाने वाले परियोजना कार्यों में सर्वोत्तम परियोजनाओं का सार-संक्षेप।
8-बच्चों को अपने गांव या आसपास के इतिहास ,संस्कृति, पर्यटन स्थल ,प्रसिद्ध व्यक्तियों के बारे में लिखने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। आज भाषा तथा सामाज विज्ञान से संबंधित विभिन्न विषयों की पाठ्यपुस्तकों में इस तरह की गतिविधियां सम्मिलित भी हैं। इसी तरह लोकगीतों,लोककथाओं,लोकोक्तियों,पहेलियों,किस्सों आदि का संकलन भी करवाया जा सकता है। ये गतिविधियां भी दीवार पत्रिका के लिए विषय सामग्री जुटाने का अच्छा स्रोत हो सकती हैं।
9-अपने क्षेत्र के जाने माने खिलाड़ियों, लोक कलाकारों,सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्त्ताओं,स्वतंत्रा सेनानियों तथा अन्य क्षेत्रों के प्रतिभावान व्यक्तित्वों के साक्षात्कार ।
10-कक्षा-शिक्षण के दौरान दिया जाने वाला ऐसा गृह कार्य जिसमें खोज-बीन और चिंतन-मनन के अधिक अवसर हों। ऐसे लिखित कार्य में से भी दीवार पत्रिका के लिए सामग्री चयनित की जा सकती है।
11- विद्यालय में आयोजित होने वाले विभिन्न सामारोहों तथा गतिविधियों की रिपोर्टिंग ।
12- पुस्तकालय से दी जाने वाली पत्रिकाओं या पुस्तकों के बारे में बच्चों से अपनी प्रतिक्रिया लिखने के लिए कहा जा सकता है।
13-उक्त उपायों के अलावा रचनात्मकता विकास के लिए खाली वादनों, मध्यांतर या अवकाश के दिनों बच्चों के साथ निम्न गतिविधियां करवाई जा सकती हैं-
0कुछ शब्द देकर कविता या कहानी लिखवाना।
0कोई दृश्य चित्र देखकर कविता या कहानी लिखने को कहना।
0जब मुझे बहुत रोना आया, जब मुझे बहुत खुशी हुई,जब मेरी पिटाई हुई,जब मुझे पुरस्कार मिला,जब बहुत डरा लगा जैसे परिस्थिति विशेष के विषयों पर बच्चों से अपने अनुभव लिखवाना।
0अधूरी कविता या कहानी पूरी करवाना।
0किसी देखी फिल्म,धारावाहिक या नाटक की कहानी लिखने को कहना।
0मूक फिल्म पर कहानी लिखवाना।
0जीवन में घटी किसी सत्य घटना का वर्णन जो बहुत याद आती है।
0किसी कहानी का नाट्य रूपांतर करवाना।
0किसी नाटक को कहानी में रूपांतरित करवाना।
0पहेलियां बनवाना।
0जीवन के ऐसे प्रसंगों को लिखवाना जिन पर बहुत हंसी आयी हो।
0दीवार पत्रिका के पिछले अंकों को पढ़कर प्रतिक्रिया देते हुए पत्र लिखवाना।
0पिछले दिनों देखी फिल्म या पढ़ी किताब पर अपनी राय लिखना।
0क्षेत्र की किसी समस्या पर फीचर लिखवाना।