शहीदे आजम भगत सिंह के भांजे प्रो0 जगमोहन बोले- देश के हालात महाभारत जैसे

यहां दून में आयोजित एक व्याख्यान को संबोधित करते हुए शहीदे आजम भगत सिंह के भांजे प्रो0 जगमोहन ने कहा कि देश के हालात महाभारत…

Pro. Prof. Jagmohan said in Lal Bahadur Verma Memorial Lecture - The situation in the country is like Mahabharata.

यहां दून में आयोजित एक व्याख्यान को संबोधित करते हुए शहीदे आजम भगत सिंह के भांजे प्रो0 जगमोहन ने कहा कि देश के हालात महाभारत जैसे बन गए है। उन्होंने कहा कि साल जून के बाद का समय चुनौतीपूर्ण होगा, चाहे लोकसभा चुनावों में कोई भी पार्टी सत्ता में आए। प्रो. जगमोहन सिंह ने कहा कि आज देश के हालात महाभारत के पहले जैसे ही हैं। महाभारत के सभी लक्षण इस वक्त दिख रहे हैं। महिलाओं के अपमान पर धृतराष्ट्र और कौरवों के दरबार की तरह सत्ता चुप है। युवा पीढ़ी अभिमन्यु की तरह अधूरे ज्ञान के कारण चक्रव्यूह में फंसने को है। सत्ता दुर्योधन की तरह सुई की नोक के बराबर जमीन जैसी जिद पर अड़ी है कि वंचितों को सत्ता में हिस्सेदारी न मिले।

रविवार 19 मई को इतिहास बोध मंच की ओर से दून लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर के सभागार में आयोजित कार्यक्रम में प्रो. जगमोहन सिंह ने ‘अतीतग्रस्तता’ और ‘इतिहास बोध’ के बीच विरोधाभास से चर्चा शुरू की। प्रो. लाल बहादुर वर्मा की स्मृति में इतिहास बोध मंच द्वारा आयोजित व्याख्यान में देहरादून आए प्रो. जगमोहन ने ‘क्रांतिकारी विरासत और आज का समय’ विषय पर अत्यंत सारगर्भित और विचारोत्तेजक विचार प्रस्तुत किया। यह व्याख्यान माला का दूसरा व्याख्यान था। पहला व्याख्यान पिछले साल इसी महीने में आयोजित किया गया था जिसमें वरिष्ट पत्रकार और अनुवादक आनंद स्वरुप वर्मा ने ‘प्रतिरोध की संस्कृति’ विषय पर व्याख्यान दिया था।


शहीदे आजम भगत सिंह के भांजे प्रोफेसर जगमोहन सिंह ने प्रो. वर्मा के शब्दों को उद्धृत किया कि “अतीतग्रस्तता व्यक्ति को रूढ़िवादी, पुरातनपंथी, संकीर्ण, हताश, असंतुष्ट और प्रतिक्रियावादी बना देती है। यही प्रवृति आजकल लोकप्रिय है, अतीत ग्रस्त होना। अतीतग्रस्तता एक नकारात्मक समझ है जबकि इतिहास बोध सही नजरिया है। इतिहास बोध एक व्यक्ति को मुक्त, उदार, आशावान, समदृष्टि, प्रगतिशील बनाता है। “

उन्होंने विस्तार से समझाया कि इतिहास को देखने के इन दोनों दृष्टिकोणों का आधार एक ही है — अतीत, लेकिन दोनों एकदम विपरीत हैं। एक पीछे खींचता है, दूसरा आगे बढ़ाता है। एक आंख का पर्दा है और दूसरा सही दृष्टिकोण है। उन्होंने कहा- “प्रो. वर्मा ने कहा था कि इतिहास में बहुत सारी कहानियाँ हैं, पर इतिहास बोध एक दृष्टिकोण है, एक चुनौती भी है कि हम इतिहास से क्या सीखते हैं और हमने उसे कितना अपनाया है। “प्रो. सिंह ने कहा कि “भगत सिंह भी ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने इतिहास की जटिलताओं से जो समझा, उसे व्यावहारिक रूप में लागू किया।”


इतिहास से कई उदाहरण देते हुए, प्रो. सिंह ने बताया कि 1857 का सिपाही विद्रोह कभी-कभी जागीरदारों का आंदोलन माना जाता है, लेकिन इतिहास का विश्लेषण, ब्रिटिश नीति और उनकी विचारधारा के स्तर पर, हमें उस घटना की व्यवस्थागत प्रकृति को बताता है, ” प्रो. सिंह ने कहा। यह संकट असाधारण था और इसने लोगों को 1857 में विद्रोह के लिए उकसाया जब एक गाँव के 1000 लोगों ने खेती पर अंग्रेजों के शोषणकारी नियंत्रण के खिलाफ खुद जागीरदारी को नष्ट कर दिया।


प्रो. सिंह ने बताया कि
इसी तरह, लोगों की एकता ब्रिटिशों के लिए एक नीति का मुद्दा था और इसलिए उन्होंने रॉलेट एक्ट लागू किया। “लाहौर और अमृतसर में रॉलेट एक्ट के खिलाफ विद्रोह के अद्भुत उदाहरण हैं, जहां लोग साथ मिलकर विरोध प्रदर्शन करते थे, हिन्दू-मुस्लिम एक ही लंगर में खाना खाते, एक दूसरे की देख-भाल करते और साथ ही त्यौहार मनाते थे; ये सभी पहलू ब्रिटिश हुकूमत के लिए चुनौती बन गए थे,” प्रो. सिंह ने कहा।

उन्होंने जोड़ा कि यह इतिहास बोध का हिस्सा है और हमें यह सीखना चाहिए कि धर्म, जाति आदि से ऊपर उठकर, जनता की आपसी एकता ने हमेशा जन आंदोलनों को जन्म दिया है। प्रो. सिंह ने इतिहास बोध की प्रकृति को परिभाषित करते हुए कहा कि इतिहास हमें अतीत जीवी भी बनाता है लेकिन इतिहास बोध हमें इतिहास को बदलने की प्रेरणा देता है। उन्होंने देश के इतिहास की क्रांतिकारी विरासत को याद करते हुए बताया कि किस तरह ब्रिटिशकाल की नीतियों की वजह से देश में अकाल पड़े और कौन से आर्थिक व नीतिगत कारण थे जिनकी वजह से 1857 का पहले स्वतंत्रता संग्राम ने जन्म लिया। उन्होंने कहा कि आज हमें शहीद भगत सिंह और महात्मा गांधी दोनों से सीखने की जरूरत है तभी समाज में समानता आ सकती है और मनुष्य को असली मुक्ति मिल सकती है।


उन्होंने 1920 के दशक के महान आंदोलनों, जैसे उत्तर भारत में भगत सिंह की नौजवान भारत सभा की स्थापना, दक्षिण में पेरियार का तर्कवादी और समाजवादी आंदोलन, महाराष्ट्र में अंबेडकर का दलितों को शिक्षित करने का आंदोलन, आदि को याद करते हुए कहा कि “भगत सिंह का ‘साम्राज्यवाद मुर्दाबाद, इंकलाब जिंदाबाद’ का नारा और उसके पीछे की सोच गदर पार्टी की विरासत के अनुरूप थी। जबकि गांधी का आंदोलन आम जनता को राष्ट्रवादी आंदोलन में शामिल करने में सफल रहा। हमें इन दोनों तरीकों से समस्या को समझना और सीखना चाहिए।”


प्रो. सिंह ने एक चेतावनी के साथ अपना व्याख्यान समाप्त किया कि इस साल जून के बाद का समय चुनौतीपूर्ण होगा, चाहे लोकसभा चुनावों में कोई भी पार्टी सत्ता में आए। प्रो. जगमोहन सिंह ने कहा कि आज देश के हालात महाभारत के पहले जैसे ही हैं। महाभारत के सभी लक्षण इस वक्त दिख रहे हैं। महिलाओं के अपमान पर धृतराष्ट्र और कौरवों के दरबार की तरह सत्ता चुप है। युवा पीढ़ी अभिमन्यु की तरह अधूरे ज्ञान के कारण चक्रव्यूह में फंसने को है। सत्ता दुर्योधन की तरह सुई की नोक के बराबर जमीन जैसी जिद पर अड़ी है कि वंचितों को सत्ता में हिस्सेदारी न मिले।

उन्होंने आने वाले समय में कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली नई साम्राज्यवादी नीतियों की ओर संकेत किया। साथ ही उन्होंने कहा कि हमारी क्रांतिकारी विरासत अत्यंत महत्वपूर्ण है और वही हमारे समय में हमारा मार्गदर्शन करेगी। इसके पहले पंजाब से आये मानवाधिकार कार्यकर्ता व प्रो. जगमोहन के साथी नरविंदर ने प्रो. लाल बहादुर वर्मा और प्रो. जगमोहन का दर्शकों से परिचय कराया। दोनों पंजाब में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स का संचालन कर रहे हैं। प्रो. जगमोहन शहीद-ए-आजम भगत सिंह के भांजे हैं, वह पहली बार भगत सिंह की रचनाओं के संकलन और प्रकाशन के लिए जाने जाते हैं।

नरविंदर ने प्रो. लालबहादुर वर्मा के साथ अपने मैत्रीपूर्ण संबंधों के बारे में बताया और कहा, कि वह उनके संपर्क में तब से थे जब उन्होंने इतिहास बोध पत्रिका का पहला अंक प्रकाशित किया था। उनके संगठन ने उनमें से कई लेखों का पंजाबी में अनुवाद किया और लोगों के बीच वितरित किया। उन्होंने आगे कहा कि प्रो. वर्मा एसी कमरे में आराम फरमाने वाले विद्वान नहीं थे। वे ऐसी शख्सियत थे जो इतिहास को जानने और समझने, इतिहास सीखने-सिखाने तथा नया इतिहास रचने के लिए जनता के बीच जाते थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ हिंदी कवि राजेश सकलानी ने कहा कि जब समाज में संस्कृति-संस्कृति का अतिशय शोर होने लगे तो हमें सतर्क होने की जरूरत है क्योंकि संभव है कि इसके जरिए जनता के असल मुद्दों से समाज का ध्यान भटकाने की कोशिश हो रही हो।


कार्यक्रम में स्थानीय व दूर-दूर से आए बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया जिनमें वरिष्ट पत्रकार आनन्द स्वरूप वर्मा, डॉ. रवि चोपड़ा, गीता गैरोला, मुकुल, विक्रम प्रताप, प्रवीन, परमिन्दर, अशोक कंवर, अरविंद शेखर, त्रिलोचन भट्ट, विपनेश गौतम, उषा नौडियाल, अपर्णा, प्रियंवदा अय्यर, उमा भट्ट, बिजू नेगी, त्रिलोचन भट्ट, सोहन सिंह रावत, जितेन्द्र भारती, राजेश पाल, अरुण असफल, राकेश अग्रवाल, संजीव घिल्डियाल, समदर्शी बड़थ्वाल आदि प्रमुख हैं।

कार्यक्रम का संचालन गार्गी प्रकाशन के प्रकाशक और देश-विदेश पत्रिका के संपादक दिगंबर ने किया। कार्यक्रम से पहले प्रवाह सांस्कृतिक मंच, मेरठ के सुनील, प्रीतम अन्य साथियों ने शंकर शैलेंद्र का गीत ‘कवि उनका है, कविता उनकी’ और जयमल सिंह पड्ढा की पंजाबी कविता ‘उनां मितरां दी याद पियारी’ मार्मिक अंदाज में सुनाए। इसके बाद और जनसंवाद के सतीश धौलाखंडी के साथ उन्होंने ‘मेरे हाथों को ये जानने का हक रे’ जनगीत सुनाया जिसे दर्शकों ने काफी सराहा। अंत में इतिहास बोध मंच की ओर से कैलाश नौडियाल ने धन्यवाद ज्ञापित किया।