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सरकार को ताम्रपत्र लौटाएगा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार

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मयंक मैनाली

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रामनगर । देश की आजादी में सैकड़ों रणबाकुरों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। देश को आजाद कराने का सपना संजोए इन नायकों ने अपना पूरा जीवन होम कर दिया। लेकिन इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि देश की भावी पीढ़ी आजादी की सांस ले सके इसलिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले बलिदानियों के परिवारों को आज आजाद भारत की सरकार स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का आश्रित नहीं मानती है । मामला नैनीताल जनपद के रामनगर विधानसभा के ग्राम सांवल्दे का है। मूल रूप से अल्मोड़ा जनपद के रानीखेत क्षेत्र के ग्राम गुमटा निवासी स्व. नारायण दत्त बेलवाल पुत्र स्व. कुलोमणि बेलवाल ने भारतीय स्वतंत्रतता संग्राम में अपने को झोंक दिया । लेकिन आज उनके आश्रित खुद को स्वतंत्रतता संग्राम सेनानी का आश्रित घोषित करवाने के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। लेकिन इससे बडा दुर्भाग्य क्या होगा कि अंग्रेजी हुकुमत से देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले आजादी के सेनानी के परिवार को सरकार आश्रित नहीं मानती। मूल रूप से अल्मोडा जनपद के रानीखेत के ग्राम गुमटा निवासी स्वर्गीय नारायण दत्त बेलवाल ने अंग्रेजों से देश को आजाद कराने के अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था। अल्मोडा जनपद के ग्राम गुमटा निवासी वर्तमान में रामनगर के ग्राम सांवल्दे पश्चिम में निवास कर रहे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के पुत्र गणेश बेलवाल बताते हैं कि उनके पिता स्वर्गीय नारायण दत्त बेलवाल पुत्र स्वर्गीय कुलोमणि बेलवाल ने आजादी की लडाई में बढ-चढ कर प्रतिभाग किया था । वर्ष 1942 में अंग्रेजों भारत छोडों के आंदोलन में अंग्रेजी सरकार के विरूद्व डटकर लोहा लेने के कारण अंग्रेजी हुकुमत ने स्वतंत्रता सेनानी बेलवाल को उस समय अल्मोडा कारागार में बंद कर दिया ,जहां उन्हें कडी यातनाएं दी गई । लेकिन आजादी की तमन्ना के चलते वह जेल से रिहा होने के बाद भी आंदोलनों में सक्रिय रहे। इस दौरान वह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अगुवाई में चले आंदोलनों में बढ-चढ कर प्रतिभाग करते रहे । वह भारत छोडो आंदोलन सहित कुली बेगार, आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे। इसी दौरान वह कुमांऊ केसरी स्वर्गीय बद्रीदत्त पांडे के संपर्क में भी रहे । उनके पुत्र बताते है कि आजादी में उनकी सक्रियता को देखते हुए अंग्रेजों ने उनको बरेली जेल में बंद कर दिया । बावजूद इसके उनका जज्बा कम नहीं हुआ । कई प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नेतृत्व में चले आंदोलन में भागीदार रहने के चलते उन्होंने स्वतंत्रता की लौ को बुझने नहीं दिया। इसी के चलते वर्ष 1947 में वह देश की आजादी के गवाह बने। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को देखते हुए भारत की प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी ने उन्हें ताम्रपत्र भेंट किया। वर्ष 1982 में उनका निधन हो गया । लेकिन उनके निधन के बाद से ही सरकार ने न तो उनके परिवार और न ही उनकें आश्रितों की कोई सुध ली। आज बेहद मुफलिसी का जीवन गुजार रहे उनके परिजन दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर हैं। इस दौरान मामला प्रकाश में आने पर कुछ समाजसेवियों की सहायता से वह जिलाधिकारी,नैनीताल से भी मिले। जिलाधिकारी ने भी उन्हें उचित कार्यवाही का आश्वासन दिया। परंतु इसके बावजूद उन्हें आज तक स्वतंत्रता सेनानी का उत्तराधिकारी सरकार नहीं मानती है। अब सिस्टम से आहत होकर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के आश्रितों ने ताम्रपत्र लौटाने की घोषणा की है।

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डीएम और सीएम हैल्पलाइन से भी नहीं मिली मदद


रामनगर। स्वतंत्रता सेग्राम सेनानी के पुत्र गणेश चंद्र बेलवाल बताते हैं कि उन्होंने जनवरी 2019 में जिलाधिकारी से पेंशन जारी करने की गुहार लगवाई थी। जिलाधिकारी के आश्वासन के बावजूद इसके उन्हें कोई मदद नहीं मिल सकी । वहीं उन्होंनें सीएम हैल्पलाइन पर भी मदद मांगी थी। लेकिन सीएम हैल्पलाइन ने भी समाज कल्याण विभाग को मामला हस्तांतरित कर कुछ समय बाद ही समस्या निस्तारण की बात कह कर फाइल बंद कर दी। वहीं सेनानी के पुत्र गणेश बेलवाल का कहना है कि वह इस संबध में उपजिलाधिकारी समेत कई अन्य अधिकारियों से संपर्क साध चुके हैं। परन्तु कोई सुनवाई नहीं हुई है।