नन्हें हाथों को सलाम स्कूल में बोया हरेला और पर्व के दिन किया पौध रोपण,प्राथमिक विद्यालय बजेला की बच्चों ने धूमधाम से स्कूल में मनाया हरेला महोत्सव

अल्मोड़ा। राजकीय प्राथमिक विद्यालय बजेला में हरेला महोत्सव बहुत हर्षोउल्लास के साथ मनाया गया,उत्तराखंड की संस्कृति के संरक्षण व बाल रचनात्मकता को बढ़ावा देने के…

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अल्मोड़ा। राजकीय प्राथमिक विद्यालय बजेला में हरेला महोत्सव बहुत हर्षोउल्लास के साथ मनाया गया,उत्तराखंड की संस्कृति के संरक्षण व बाल रचनात्मकता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से यह महोत्सव विद्यालय में आयोजित किया गया जिसमें शिक्षक, विद्यार्थियों, और विद्यालय प्रबंधन समिति ने प्रतिभाग किया,इस अवसर पर नन्हें मुन्ने बच्चो ने पौधरोपण कर समाज में नई जागरूकता फैलाने का सार्थक प्रयास किया। त्यौहार के मौके को सार्थक बनाते हुए बच्चों के लिए त्यौहारी पकवान का भी आयोजन किया गया। शिक्षकों और बच्चों ने एक साथ विशेष भोज का आनंद लिया।

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इस मौके पर कई प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया गया। जिसमें  मेरा हरेला सबसे न्यारा प्रतियोगिता के लिए सावन लगने से 10 दिन पहले ही बच्चों ने दो टोलियो में हरेला बो दिया था मनीषा खनी कक्षा 5 की टोली प्रथम आयी, सभी बच्चो को अध्यापक ने हरेला लगाकर ढेरो आशीर्वाद प्रदान किये गए ।

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 चित्रकारी व पोस्टर निर्माण प्रतियोगिता में बच्चो ने चित्रकारी और हरेले पर पोस्टर का निर्माण किया और अपनी अपनी समझ अनुसार हरेले का चित्रण किया ।वृक्षारोपण कार्यक्रम के तहत हरेले के पावन पर्व पर पूरे विद्यालय के चारो तरफ 30 पौधों का रोपण किया गया ।

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इन पौधों में आड़ू , काफल, बाँज, नींबू , मेहल, बुराँश  आदि पेड़ो का रोपण किया गया ।इस मौके पर विद्यालय में विशेष भोज कार्यक्रम के तहत विभागीय निर्देशों के अनुसार आज विद्यालय में हरेला महोत्सव के उपलक्ष में बच्चों के लिए विशेष भोज का आयोजन भी किया गया ।

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साथ ही सामुदायिक रेडियो स्टेशन कुमाऊ वाणी (मुक्तेश्वर स्थित) के साथ रेडियो शो का आयोजन भी किया गया।बाल रचनात्मकता को बढ़ावा देने और पहाड़ी बोली को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से सुमित खनी ,खुशी कहानी कक्षा 3 के छात्रों ने पहाड़ी भाषा में एक रेडियो शो प्रस्तुत किया जिसमें सुमित ने हरेले पर्व के बारे कुमाऊनी बोली में  बताया।

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इस मौके पर विद्यालय के शिक्षक भाष्कर जोशी ने कहा कि  विद्यालय ही संस्कृति के वाहक है,आज के समय में नवीन ज्ञान इतना अधिक हो गया है की वह संभाले नहीं संभल रहा है हम नये ज्ञान को तो आत्मसात कर रहे हैं पर पुरानी परिपाटियां ,तीज- त्योहारों को तिलांजलि देते जा रहे हैं हम अपनी भाषा ,बोलियों को बोलने में शर्म करने लगे है ,हम अपने त्यौहारों को अब उतनी जीवटता से नहीं मनाते और उनके प्रति उदासीन ही रहते हैं ।