प्रशांत भूषण की टिप्पणी कोर्ट की अवमानना नहीं, भाकपा-माले, सीपीएम व अन्य संगठनों ने कलक्ट्रेट में दिया सांकेतिक धरना

प्रशांत भूषण

प्रशांत भूषण

Prashant Bhushan comment not contempt of court, प्रशांत भूषण

पिथौरागढ़ सहयोगी, 20 अगस्त 2020 सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण की टिप्पणी के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अवमानना की कार्रवाई किये जाने पर बार संघ पिथौरागढ़ सहित विभिन्न संगठनों ने रोष जताते हुए इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुठाराघात करार दिया है।

भाकपा-माले, सीपीएम और अन्य संगठनों ने कलक्ट्रेट में सांकेतिक धरना देकर आलोचना को अवमानना बताने का विरोध किया है।

बार एसोसिएशन ने इस मामले को लेकर गुरुवार को कोर्ट परिसर में गोष्ठी की। बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एमसी भट्ट की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में एक प्रस्ताव पारित कर सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार को भेजा गया, जिसमें कहा गया है कि वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण की टिप्पणी न्यायपालिका की अवमानना नहीं है। उन्होंने जजों और न्यायपालिका की कार्यवाही पर सवाल उठाये हैं, जो किसी की अवमानना नहीं है।

बार एसोसिएशन कार्यकारिणी ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुठाराघात करार दिया है। एसोसिएशन अध्यक्ष भट्ट ने कहा कि इस मामले में आगे की रणनीति के लिए जल्द ही बार एसो. कार्यकारिणी की बैठक आयोजित की गई है।

गोष्ठी में बार एसो. के सचिव योगेश तिवारी, उपाध्यक्ष अनिल रौतेला, संयुक्त सचिव विनोद मतवाल समेत करीब तीन दर्जन अधिवक्ता मौजूद थे।

दूसरी ओर भाकपा-माले के जिला संयोजक गोविंद कफलिया, सीपीएम नेता पीके मिश्रा, जनमंच संयोजक भगवान रावत और पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष हेमंत खाती आदि ने प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही के विरोध में कलक्ट्रेट में सांकेतिक धरना दिया।

उन्होंने प्रशांत भूषण के साथ एकजुटता दर्शाते हुए कहा कि आलोचना अवमानना नहीं है, मी-लाॅर्ड अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बिना दम घुटता है। माले नेता कफलिया ने कहा कि अवमानना की कार्यवाही अनुचित है और न्यायपालिका का काम लोकतंत्र की रक्षा करना तथा संविधान की व्याख्या करना है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाना उसका अपमान नहीं कहा जा सकता।