अल्मोड़ा, 05 अगस्त 2021- छंजर सभा अल्मोड़ा के तत्वाधान में हुई काव्य गोष्ठी में वर्तमान कोरोना काल (कोविड-19)के कारण पुनः ऑनलाइन आयोजित की गई ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफ़ेसर डॉ.दिवा भट्ट द्वारा की गई,काव्य गोष्ठी का संचालन नीरज पंत (प्रधानाचार्य) द्वारा किया गया।
गोष्ठी का आरम्भ माँ नंदा सुनंदा स्तुति के साथ हेम चंद्र दूबे द्वारा किया गया तत्पश्चात स्थानीय एवं बाहरी क्षेत्रों से सम्मिलित कवि साहित्यकारों द्वारा वर्षा ऋतु,श्रावन मास, प्रकृति,श्रृंगार रस आधारित रचनाओं के साथ वर्तमान विविध ज्वलंत एवं समसामयिक विषयों पर भी आधारित हिंदी व कुमाउनी में रचनाएं काव्य पाठ ग़ज़ल, नज़्म तथा गीत काव्य रूप में प्रस्तुत किये गए ।
गोष्ठी के अंत में अध्यक्षता कर रहीं विदुषी शिक्षाविद एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.दिवा भट्ट द्वारा सभी प्रतिभागी कवियों विशेषकर बाहरी क्षेत्रों से सम्मिलित हुए कवि साहित्यकारों का आभार व्यक्त करते हुए अपनी रचना प्रस्तुत की।
अपने अध्यक्षीय संबोधन में डॉ. दिवा भट्ट द्वारा विभिन्न विधाओं/विविध विषयों पर आधारित रचनाओं की समीक्षा करते हुए महत्वपूर्ण साहित्यिक मार्गदर्शन दिया ।
उन्होंने प्रति माह के अंतिम शनिवार को होने वाली छंजर सभा को एक बार ऑफलाइन भी करते हुए माह में दो बार आयोजित करने का सुझाव दिया ताकि स्थानीय एवं बाहरी क्षेत्रों के अनेक अन्य प्रतिभावान् रचनाकारों को भी एक साहित्यिक मंच प्राप्त हो सके।
संचालन करते हुए नीरज पंत ने महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की कृतियाँ ‘नमक का दरोगा’, ‘शतरंज के खिलाड़ी ‘ सहित अन्य रचनाओं को साझा करते हुए सभी का आभार जताया।
काव्य गोष्ठी में प्रस्तुत कुछ रचनाओं की एक झलक— (मुखड़े)
* देवी नंदा सुनंदा मेरी सेवा लिया हो
कोट की माता वर दैणा
सुफल है जाया हो…..
* मुझे किसी से कोई गिला नहीं
मैं किसी से कभी मिला नहीं
— हेम दूबे
* शिखरों को चूम रहे हैं बादल
हल्के- फुल्के बादल
जैसे नन्हा मुन्ना चूम रहा हो
दादा के गाल…..
— मोती प्रसाद साहू
* ‘ मुझे तुमसे प्यार है शायद ,
मुझको इकरार
मुझे तुमसे प्यार है शायद ,
मुझको इकरार है शायद ।
तुम कितनी खूबसूरत
जैसे कोई हो मूरत
सारी दुनिया में सबसे
हंसी हो …..शायद………
— नीरज पंत
* ‘एक आंसू ही तो है बह जाने दो ।
उसकी याद ही तो है दिल से निकल जाने दो ।
मैं मुस्कुराउंगी फिर से पहले की तरह
पर उसके अक्स को थोड़ा भूल जाने दो ।
एक आंसू ही तो है बह जाने दो……
— चंद्रा उप्रेती, काव्य प्रेमी
*’ काश ऐसा मंजर हो जाए
अहसास मेरे अंदर हो जाए
है कलम जो मुहब्बत की
वक्त पड़े तो खंजर हो जाए……
— डा कुंदन सिंह रावत
*’ अतीत की लिखावट की स्याही को घोलने वाला
वह पानी हूं मैं
जो लिखना पूरा होते-होते
उड़ जाता है
वर्तमान की महफिलों का
वह चेहरा हूं मैं
जो भीड़ जुटते ही खो जाता है।
— डॉ.दिवा भट्ट
* वो रातों में ख्वाबों में आना किसी का
बताता है अपना कोई अब नहीं है…..
* हुस्ने बाजार में देखता कौन है
बेवफा कौन है बावफा कौन है
अपनी गहराईयों पर समुंदर को नाज़
उसे क्या पता कि डूबता कौन है……..
— राजीव जोशी (डायट बागेश्वर)
* ‘ वर्षा आई रिमझिम-रिमझिम,
ले आई हरियाली।
सावन के स्वागत में देखो,
झुकी फलों से डाली…
— डॉ.धाराबल्लभ पांडेय ‘आलोक’
* ‘हालातों के ये बदलते रुख
चुपके से इशारा करते हैं
थाम लो जरा अपनी साँसों को
हम सपने सजाया करते हैं और
ऐसे में ही कहीं से खुशियाँ देने
हमें वो आ जाया करते हैं……..
— नीलम नेगी
* ‘ तेरी चाहत को सीने में दबाये जाता हूं
यही एक रीत है जो रोज़ निभाये जाता हूं……
— मनीष पंत
(यह काव्य गोष्ठी बीते 31 जुलाई को आयोजित की गई)