राजनीति -पीएम मोदी ने देहरादून में पढ़ी कविता,तो हरीश रावत ने भी कविता में दे डाला यह जवाब

शनिवार 4 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उत्तराखंड दौरा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देहरादून में एक जनसभा को संबोधित किया और अट्ठारह हजार…

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शनिवार 4 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उत्तराखंड दौरा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देहरादून में एक जनसभा को संबोधित किया और अट्ठारह हजार करोड़ से अधिक की योजनाओं का तोहफा उत्तराखंड की जनता को दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण की सबसे खास बात उनके द्वारा अंत में पढ़ी गई कविता थी। इस कविता के जरिए उन्होंने उत्तराखंड का गुणगान किया और इसके ध्यान से ही खुद के धन्य हो जाने की बात कही। अब प्रधानमंत्री के इस कविता का जवाब हरीश रावत ने भी एक कविता के माध्यम से दिया है, तो चलिए एक बार दोनों की कविताएं देखते हैं किसने क्या कहा।

प्रधानमंत्री की कविता

जहां पवन बहे संकल्प लिए, जहां पर्वत गर्व सिखाते हैं,जहां ऊंचे नीचे सब रस्ते बस भक्ति के सुर में गाते हैं,
उस देव भूमि के ध्यान से ही,उस देव भूमि के ध्यान से ही मैं सदा धन्य हो जाता हूं.
है भाग्य मेरा, सौभाग्य मेरा,मैं तुमको शीश नवाता हूं मैं तुमको शीश नवाता हूं और धन्य धन्य हो जाता हूं.
तुम आंचल हो भारत मां का, जीवन की धूप में छांव हो तुम. बस छूने से ही तर जाएं,सबसे पवित्र वो धरा हो तुम.
बस लिए समर्पण तन मन से मैं देव भूमि में आता हूं.
मैं देव भूमि में आता हूं,है भाग्य मेरा, सौभाग्य मेरा जहां हर एक मन बस निश्छल हो,
मैं तुमको शीश नवाता हूं,मैं तुमको शीश नवाता हूं और धन्य धन्य हो जाता हूं
जहां अंजुली में गंगा जल हो,जहां गांव-गांव में देश भक्त,जहां नारी में सच्चा बल हो
उस देवभूमि का आशीर्वाद लिए मैं चलता जाता हूं उस देवभूमि का आशीर्वाद लिए,मैं चलता जाता हूं
है भाग्य मेरा, सौभाग्य मेरा,मैं तुमको शीश नवाता हूँ मैं तुमको शीश नवाता हूंऔर धन्य धन्य हो जाता हूं.
मंडवे की रोटी, हुड़के की थाप,हर एक मन करता शिवजी का जाप,
ऋषि मुनियों की है ये तपो भूमि,कितने वीरों की ये जन्म भूमि

मैं देवभूमि में आता हूं मैं तुमको शीश नवाता हूं और धन्य धन्य हो जाता हूं

हरीश रावत ने जवाब में लिखी ये कविता

“जब-जब मैं आता हूंँ, उत्तराखंड तेरे गीत गाता हूँ,
कभी केदार का नाम लेकर, कभी गंगा का नाम लेकर,
मैं उत्तराखंड वादियों को बहलाता हूं,
उत्तराखंड वासियों को कुछ झूठ-मूट कुछ कहकर बहलाता हूं।
मैं जब-जब आता हूं, उत्तराखंड मैं तेरे गीत तुझको ही सुनाता हूं,
दूसरों ने गुफा बनाई, उस तप कर उसको अपना बताता हूंँ।।
ऑल वेदर रोड, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन पर भी अपना नाम खुदवाता हूंँ।
मंजूर चाहे वो कभी हुई हो, मैं प्रधानमंत्री हूं, मैं उसको अपना बताता हूँ,
कुछ दे सकूं- न दे सकूं, मैं डबल इंजन का नाम लेकर मैं तुम्हारे वोटों को समेटने का काम करता हूं,
जब डबल इंजन कुछ काम न कर पाए तो मुख्यमंत्री बदलकर मैं लोगों का ध्यान भटकाता हूं,
कोरोना में कितना ही उत्तराखंड अपनों को खो गया हो,
मैं उनके नाम पर एक भी आंसू नहीं बहाता हूं, आपदा आए या कुछ आए,
मैं उसमें राजनीति ढूंढता हूंं,उत्तराखंड तुझको कुछ दूं-न दूं,

मगर अपनी बातों से मैं हमेशा तेरा मन बहलाता हूँ,
कुछ जुमले, कुछ बातें जो तुमसे जुड़ी हैं,
उनको कह-कहकर मैं तुम्हारे मन को उकसाता हूंँ,
कुछ धरती पर दिखाई दे या न दिखाई दे,
किसी ने भी कुछ किया हो, मैं उस सबको अपना बताता हूं,
रेडियो टेलीविजन अखबार पर मेरा एकाधिकार है,
जो मैं तुमको सुनाता हूं वही उनसे छपवाता हूं, उनसे आपको बतवाता हूंँ।

मैं प्रधानमंत्री हूं, जुमलों से मुझको बड़ा है प्यार और उत्तराखंड तुझको बहलाने के लिए मैं हर बार कुछ नये जुमले गढ़ कर लाता हूंँ,
मैं जब-जब उत्तराखंड आता हूं, तुमको कुछ नये गीत सुनाता हूंँ।।