फार्मासिस्ट(pharmacist): पहाड़ की स्वास्थ्य सेवाओं का नायक, ग्रामीण पृष्टभूमि का मशाल वाहक, कोरोना से जंग में भी दमदार भूमिका निभा रहे हैं फार्मासिस्ट(pharmacist)

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अल्मोड़ा: बीमार व उपचाराधीन लोगों को डाक्टर की अनुसंशा पर दवा उपलब्ध कराना वाला फार्मासिस्ट (pharmacist) उत्तराखंड की स्वास्थ्य सुविधाओं के दौरान नायक बन कर उभरे हैं|

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ग्रामीण क्षेत्रों में तो अधिकांश अस्पताल या स्वास्थ्य केन्द्रों की सारी जिम्मेदारी यही फार्मासिस्ट (pharmacist) या आम बोलचाल में फार्मेसिस्ट कहलाने वाले ये स्वास्थ्य कर्मी निभा रहे हैं.

लेकिन आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि उपकेन्द्रों का सारा जिम्मा इन्हीं के ऊपर होते हैं.
यही मरीजों के एडवाइजर भी हैं मोबीलाइजर भी है तो उपचारक भी हैं
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अल्मोड़ा,पिथौरागढ़,चंपावत व नैनीताल के ग्रामीण क्षेत्रों की पूरी स्वास्थ्य सेवाएं इन्हीं के कंधों पर टिकी है| कुछ स्थानों पर तो यही अस्पताल खोलते हैं|

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वर्तमान में विश्वव्यापी कोरोना महामारी की चुनौतियों से निपटने में स्वास्थ्य विभाग के ये सिपाही बड़े वारियर्स बनकर सामने आए हैं|

कोरोना को लेकर सामाजिक जागरुकता बढ़ानी हो, स्वच्छता के कार्यक्रमों की जानकारी देनी हो या उपचार के लिए आने वाले मरीजों का परीक्षण करना हो यह सारी जिम्मेदारी इसबीच चिकित्सा सेवा के इस तकनीकी संवर्ग पर आ गई है|

यदि कोरोना के संक्रमण संभावित इस दौर में ग्रामीण क्षेत्र के स्वास्थ्य केन्द्र की कल्पना करें , अस्पताल में मौजूद फार्मासिस्ट (pharmacist ) के सम्मुख गांव में जागरुकता कार्यक्रम का लक्ष्य, लेकिन अचानक एक बीमार और परेशान व्यक्ति का अस्पताल पहुंचना तब सोचिए कि एक फार्मासिस्ट क्या करेगा|

लक्षणों को देखते हुए उस जरूरतमंद का उपचार भी जरूरी है तो सावधानी और समुचित सुरक्षा किट भी|

हमने कई स्थानों पर इन संवर्गीय कर्मियों को मुंह पर रुमाल बांध जिम्मेदारी निभाते देखा है| जबकि दूरस्त ग्रामीण क्षेत्रों पर स्वास्थ्य सुविधाएं व जरूरी सुरक्षा दोनों की हालत जग जाहिर है|

वर्तमान परिस्थितियों में चिकित्सा विभाग में सारे संवर्गो का चाहे वो चिकित्सक संवर्ग हो या फिर नर्सिंग संवर्ग, कोरोना नाम की इस महामारी में अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं|

देश के प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री भी स्वास्थ्य विभाग के सभी कर्मचारियों को वास्तविक योद्धा बता चुके हैं|

लेकिन अस्पताल या उपचार की परिकल्पना तब तक पूरी नहीं हो सकती जब तक वहां इंजेक्शन, डिस्पेंसिंग,स्टोरेज,वीआईपी ड्यूटी, इंडोर, आउटडोर,छोटे मोटे सर्जीकल कार्य, व चिकित्सक की अनुपस्थिति में पेसेंट देखने वाला एक तकनीकि संवर्गीय अधिकारी न हो|

पर्चे को देखते ही दवाओं की उपलब्धता व डोज के बारे में समझाने वाला यही सफेद कोट धारी फार्मासिस्ट कहलाता है| लेकिन इस संवर्ग कई बार सिस्टम की नजर पर ही नहीं आता है|

उत्तराखंड राज्य का फार्मासिस्ट इस सब की परवाह किये बिना अपने सीमित संसाधनों के साथ कोरोना के खिलाफ इस लड़ाई में सरकार, शासन, प्रशासन के साथ अग्रिम पंक्ति में जाकर खड़ा है।

आज उत्तराखंड राज्य के तमाम छोटे बड़े चिकित्सालयों में फार्मासिस्ट दिन रात कोरोना के खिलाफ अपना योगदान दे रहे हैं|

अब तो फार्मासिस्ट पुलिस चेक पोस्टों व बैरियर के साथ ही राज्य में बाहर से अन्य राज्यों से आये व्यक्तियों की जांच उनकी सूची बनाने,जन सामान्य को जागरूक करने सोशल ,डिस्टेंसिंग साफ सफाई अपनाने जैसी तमाम प्रकार से सरकार और शासन के कार्यो में अपना योगदान दे रहे है।


इसलिए जरूरी है कि फार्मासिस्ट को कई जरूरी सुविधाए भी उपलब्ध कराई जाए यह कार्य उनके उत्साह में जरूर कई गुना वृद्धि करेगा|

अल्मोड़ा की बात करें तो यहां 66 उपकेन्द्रों में चौकीदार से थोकदार तक की सारी जिम्मेदारी यही फार्मेसिस्ट निभा रहे हैं|


इस जिले में डाक्टरों की उपलब्धता 50 प्रतिशत ही है इसलिए करीब 50 प्रतिशत अस्पताल इन्हीं के भरोसे चलते हैं|

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लेकिन कई बार हाईरिस्क अभियानों में सुरक्षा उपकरण जरूरी होते हैं और यदि इनकी उपलब्धता भी हो जाए तो यह संवर्ग ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना के खिलाफ जंग में अहम योगदान निभा सकता है|

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