इंडियन आइडल के मंच में पवनदीप की रितु—रैण ने मचाई धूम

संगीत की दुनिया में अब Pawandeep Rajan का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। इंडियन आइडल के मंच पर जब उन्होंने पहाड़ी रितु—रैण गाई…

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संगीत की दुनिया में अब Pawandeep Rajan का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। इंडियन आइडल के मंच पर जब उन्होंने पहाड़ी रितु—रैण गाई तो उनकी खनकती आवाज़ ने माहौल बना दिया।


उत्तराखंड से उभरे कमाल के सिंगर Pawandeep Rajan पवनदीप राजन का यह वीडियो पहाड़वासियों को बरबस ही अपनी ओर खींच रहा है। इंडियन आइडियल में अपनी एक प्रस्तुति में पवनदीप ने कुमाऊँनी लोक गायन की एक खूबसूरत विधा रितु रैण को भी पिरोया।


कुमाऊँनी के इस ‘रितु’ गायन में कमाल की मैलोडी है। लोक गायन की इस शैली के मूल रचनाकारों को संभवत: यह भान ना रहा हो कि गायन के यह सुर मिलकर ‘देस राग’ बन जाते हैं।
पवनदीप की इस प्रस्तुति पर जहां कार्यक्रम के जज उन्हें एप्रिशिएट करते दिखाई दिए वहीं पहाड़ के दर्शकों ने इसके साथ खासा कनेक्ट किया है।


हालांकि संगीत और पवन की आवाज़ ने भरपूर जादू बिखेरा है लेकिन शायद ही हिंदी के दर्शक ‘रितु रैण’ के फ़ॉर्म में गाई गई कुमाऊंनी लोक की इस कविता अर्थ समझ पाए होंगे. इसलिए इस कविता का हिंदी अनुवाद यहां दिया जा रहा है, उनके सभी के ​लिए जो कुमाऊंनी नहीं जानते..


-कुमाऊंनी वर्ज़न-
हां बे हां..
जेठ मैणो जेठ होलो
हां बे रंगीलो बैसाख..
हां बे रंगीलो बैसाख रे लाडिलो चैत..
हां बे हां..
जो भागी बची रौलो..
सो रितु सुणैलो..
हां बे मरियो मानिस रे पल​टि नि ऊनो..


-हिंदी अनुवाद-
हां रे हां..
जेठ/ज्येष्ठ का महीना बड़ा होगा..
और हां बैशाख का होगा रंगीला..
लाड़ला/प्यारा होगा चैत/चैत्र..
हां रे हां..
जो अपने भाग से बचा रहेगा..
वही रितु सुन पाएगा..
हां रे! क्योंकि
मर जाने के बाद मनुष्य पलट कर वापस नहीं आता..