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पौराणिक मान्यताओं के अनेक राज समेटे हुए है बाणासुर का किला

Newsdesk Uttranews
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ऐतिहासिक धरोहर है काली कुमाऊं स्थित प्राचीन बाणासुर (कोट) किला

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ललित मोहन गहतोड़ी

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काली कुमाऊं। लोहाघाट से छह किलोमीटर की दूर खेतीखान मार्ग पर स्थित है द्वापर कालीन प्राचीन धरोहर बाणासुर का किला। आज भी इस किले में कालांतर के पौराणिक अवशेष मौजूद हैं। बाणासुर को ब्रह्म का वंशज माना गया है। इसकी गाथा यहां की होलियों में गाई जाती रही है। अभी भी बीस गांव बिसुंग के अधिकांश लोग स्वयं को राक्षस राज बाणासुर से जोड़ते रहे हैं।

किले के उत्तरी छोर से शिव पर्वत हिमालय का विराट स्वरूप सामने दिखाई पड़ता है। माना जाता है कि बाणासुर राजा भी इसी जगह से भगवान शिव की आराधना किया करता था। बताया जाता है कि बाणासुर ने अपनी भक्ति के बल पर भगवान शिव को प्रसन्न किया था। एक पौराणिक कथा के अनुसार द्वापर युग में बाणासुर नामक राक्षस राज परम शिव भक्त था। बाणासुर ने शिव की आराधना कर उसने महाबली होने का वर मांगा था। तब शिव शंकर ने उसे ध्वजा देते हुए आगाह किया था कि जिस दिन यह ध्वजा टूटेगी उस दिन से बाणासुर तेरे वैरी का अवतार हो जाएगा। हाल फिलहाल यह किला जिले की संरक्षित एतिहासिक धरोहरों में से एक है।

किले के उपरी हिस्से से जुड़ीं सीढ़ियां हैं किले का असल राज


आंतरिक हिस्से को देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि किले के उपरी छोर पर स्थित सीढ़ियां महल के अंदर जा रही प्रतीत होती हैं। जो एक के बाद एक कर धूल मिट्टी आदि से बंद होती रही। बाद में इसे टिन आदि से दबाकर बंद कर दिया गया। जो अब भविष्य के गर्त में है तब तक जब तक पुरातत्व विभाग की ओर से इस की जानकारी के संबंध में कोई पहल ना की जाए। इतिहासकार देवेंद्र ओली सहित अन्य शोध कर्ताओं की ओर से काली कुमाऊं स्थित ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण की मुहिम को जारी रखा गया है। काली कुमाऊं के इस क्षेत्र में एक से बढ़कर एक पौराणिक महत्व के धार्मिक एवं पर्यटन स्थल मौजूद हैं। इनका संरक्षण कर शोध किए जाने की आवश्यकता है।

काफी समय पहले सैकड़ों तो अब महज दो दर्जन सीढ़ियां ही दिखाई देती हैं किले के अंदर आसपास के ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने अपने बूढ़े बुजुर्गों से सुना है कि पहले पहल यहां बहुत नीचे तक जाने के लिए सैकड़ें की संख्या में पत्थर के स्लेटों की सीढ़ियां उन्होंने भी देखी हैं। इसके अलावा और नीचे गहरा खोदने पर सीढ़ी दर सीढ़ी निकलते भी देखा सुना है। जबकि अब महज 23-24 सीढ़ियां ही दिखाई देती हैं शेष सब धूल मिट्टी से दबी हुई हैं।

तो क्या किले को पहाड़ में किया गया था तब्दील


आसपास के किस्से कहानियों में बिशुंग की समतल भूमि को देख कर अनुमान लगाया जाता रहा है कि संभवत यह पहाड़ महल को सुरक्षा के लिहाज से बनाया गया है। माना जाता है कि मुख्य मार्ग से कोट के ठीक बीच गेट स्थित मां कड़ाई का मंदिर भी इसी इतिहास का एक हिस्सा रहा होगा।