अनुसरणीय होंगी हिमालयी राज्यों में संचालित शोध परियेाजनाएं,जीबी पंत संस्थान में हुई कार्यशाला में सेब के जर्मप्लाज्म को संरक्षित करने जैसे कार्यों की भी सराहना की पढें़ पूरी खबर

अल्मोड़ाः राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन द्वारा आयोजित द्वितीय राष्ट्रीय परियोजना मूल्यांकन एवं अनुश्रवण कार्यशाला में दूसरे दिन 30 से अधिक भारतीय हिमालयी राज्यों में संचालित…

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अल्मोड़ाः राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन द्वारा आयोजित द्वितीय राष्ट्रीय परियोजना मूल्यांकन एवं अनुश्रवण कार्यशाला में दूसरे दिन 30 से अधिक भारतीय हिमालयी राज्यों में संचालित परियोजनाओं का विषय विशेषज्ञों द्वारा तकनीकी सत्रों में मूल्यांकन किया गया। गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत् विकास संस्थान कोसी कटारमल में आयोजित इस वृहद कार्यशालाओं में जैव विविधता संरक्षण एवं प्रबंधन तथा आजीविका संवर्धन से जुड़ी परियोजनाओं का मूल्यांकन किया गया। इस अवसर पर विषय विशेषज्ञों ने विभिन्न संचालित परियोजनाओं की प्रगति रिपोर्ट देखी तथा उन्हें विभिन्न परियोजनाओं के अनुरूप महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए।
विशेषज्ञों ने कहा कि सतत् विकास की अवधारणा पर काम करते हुए हमें हिमालयी राज्यों में जैव विविधता पर मंडरा रहे खतरों को गंभीरता से लेना होगा। यहां के संसाधनों का प्रबंधन इस दिशा में किया जाए कि उसका लाभ मानव व प्रकृति दोनों को हो। विशेषज्ञों ने हिमालयी राज्यों में मिशन द्वारा विभिन्न राज्यों में संचालित परियोजनाओं की प्रगति पर संतोष जताया और अनेक परियोजनाओं की प्रगति को उल्लेखनीय भी बताया। उन्होंने कहा कि आजीविका संवर्धन और रोजगार से जुड़े विषय हिमालयी राज्यों में गंभीर है। इसके अभाव में यहां के प्राकृतिक संसाधनों का भी दोहन होता है।
विभिन्न परियोजनाओं के द्वारा सेब के जर्मप्लाज्म को सरक्षित कर उसकी उन्नत प्रजातियों को बढ़ावा देने, मौन संग्रहालय बनाने, वन्य जीवों की गणना कर मानव के साथ उनके संधर्ष को कम करने के नए माॅडल विकसित करने, 16 वन्य उत्पादों से विभिन्न मूल्यवर्धित उत्पाद बनाकर प्रस्तुत करने, वृक्ष विकास रेखा पर अध्ययन कर जलवायु परिवर्तन के अनअपेक्षित प्रभावों को पादप और जंतु जगत में देखने और आजीविका विकास के विभिन्न नए विकल्पों को तैयार करने वाली परियोजनाओं के कार्र्याें की सराहना भी की गई।

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भारतीय वन्य जीव संस्थान द्वारा अपने अध्ययन से बताया कि उत्तराखण्ड का पौड़ी जनपद में हिमालयी राज्यों में सर्वाधिक तेंदूए का घनत्व देखा गया। वहीं हार्क द्वारा 16 वन्य उत्पादों से जैम, जैली, चटनी, व औषधि बनाने का माॅडल प्रस्तुत किया। ईको टूरिज्म सहित इससे जुड़े अन्य सतत् पर्यटन पर विशेषज्ञों ने कहा कि हिमालयी राज्यों में आज पर्यटन से 4 से 16 हजार मासिक आय माॅडल खड़े हुए हैं। हमें आज टूरिज्म के वार्षिक 360 दिन के कलैण्डर को तैयार करना होगा एवं इसके लिए मोबाईल ऐप का भी विकास करना होगा जिससे वेबसाईट के साथ पर्यटक सीधे इससे ग्रामीण जनता से जुड़े। डाॅ वी के गौड एवं पद्मश्री डाॅ शेखर पाठक, प्रो0 एस पी सिंह, की अध्यक्षता में आयोजित कार्यशालाओं में डाॅ ललित कपूर, डाॅ डी0सी0 उप्रेती , संस्थान निदेशक डाॅ आर एस रावल, डाॅ आर, नागराजा, प्रो0 एस के मिश्रा, ए0 के सराफ, डाॅ वरूण जोशी, डाॅ वी एम चैधरी, इं0 किरीट कुमार, ़ जे0 के0 गर्ग, डाॅ अनीता पाण्डे, सोनाली बिष्ट, डाॅ0 पी0 पी0 डबराल, आदि ने मुख्य सभागार और बुरांश सभागार में दूसरे दिन विभिन्न संस्थाओं और समूहों की 30 से अधिक परियोजनाओं का सघन मूल्यांकन किया।
इस अवसर पर विभिन्न राज्यों से आए परियोजना प्रमुखों और वैज्ञानिकों को विशेषज्ञों ने परियोजनाओं की गति बढ़ाने, समाजोन्मुखी कार्यसंस्कृति विकसित करने सहित राज्यों में परियोजनाओं की उपलब्धियों व सफल प्रारूपों का आदान प्रदान करने आदि के भी सुझाव दिए। ज्ञातव्य है कि इस राष्ट्रीय स्तर की कार्यशाला में देश भर के 12 राज्यों में मिशन के तहत संचालित 103 परियोजनाओं का विभिन्न तकनीकी सत्रों में मूल्यांकन किया जा रहा है। नोडल अधिकारी राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन ई0 किरीट कुमार ने बताया कि प्रत्येक विषयगत क्षेत्र में विशेषज्ञ यहां जटिल मुददों और चुनौतियों पर भी चर्चा करेंगे तथा भारतीय हिमालयी राज्यों में विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से हितधारकों के बीच समन्वय की संभावनाएं भी तराशी जा रही है। जिसस परियोजनाओं के सफल माॅडलों को दूसरे स्थानों पर लागू किया जा सके। इस अवसर पर संस्थान के विभिन्न वैज्ञानिकों, व सहयोगियों ने कार्यशाला में सहयोग किया। कोलकता से बाॅटिनिकल सर्वे आॅफ इंण्डिया, चिया नैनीताल, भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून, गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय पंतनगर, गढ़वाल विश्वविद्यालय, सिक्किम विश्वविद्यालय, शेर-ए कश्मीर विश्वविद्यालय श्रीनगर, आईआईटी जम्मू, आईआईटी हिमांचल प्रदेश, केंद्रीय विश्वविद्यालय पंजाब, इंण्डियन इंस्ट्टीयूट आफ साइंस एज्यूकेशन एण्ड रिसर्च कोलकता पश्चिम बंगाल आदि ने यहां परियोजना की प्रगति प्रस्तुत की। यूकाॅस्ट से जुड़े हार्क, इनहेयर, आदि की ओर से यहां अपने उत्पादों और कार्यों के स्टाॅल भी लगाए गए। इस क्रम में 7 फरवरी तक विभिन्न राज्यों की अन्य परियोजनाओं का अनुश्रवण और मूल्यांकन होगा।

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