पलायन की भयावहता: पहाड़ में तेजी से कम हुई किशोरों की संख्या, आने वाले 3-4 साल में खाली हो जाएंगे अपने गांव

The number of teenagers decreased rapidly in the mountain उत्तरा न्यूज डेस्क, 20 मार्च 2022- उत्तराखंड में पहाड़ पलायन के चलते खाली हो रहे हैं…

The number of teenagers decreased rapidly in the mountain

उत्तरा न्यूज डेस्क, 20 मार्च 2022- उत्तराखंड में पहाड़ पलायन के चलते खाली हो रहे हैं इसका असर अब साफ दिखाई दे रहा है।


हालत यह है कि उत्तराखंड में 12 से 14 साल के बच्चों के टीकाकरण का लक्ष्य जब तय हुआ तब यह आंकड़े सामने आए हैं।


यह आंकड़े यह कह रहे हैं कि आने वाले 3-4 साल के बीच यह स्थिति आएगी जब पहाड़ में वक्त में युवा खोजने भी मुश्किल हो जाएंगे।


अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़ और चम्पावत में 12 से 14 साल की उम्र के केवल 53,522 बच्चे हैं।
अल्मोड़ा में 19882 तो बागेश्वर में 8834 बच्चे हैं।
रुद्रप्रयाग में यह संख्या 8325 ही है।


जबकि मैदानी क्षेत्र ऊधमसिंह नगर जिले में यह संख्या 70974, हरिद्वार में 79650, देहरादून में 72421 है।

teenagers मीडिया रिपोर्ट


बेहतर स्वास्थ्य, स्कूल और अन्य सुविधाओं के अभाव में गांव छोड़ने का सिलसिला जारी है। अब इस आंकड़े के बाद यह साफ हो गया है कि आने वाले समय में जब इन किशोरों का युवा बनने का समय आएगा तब सूनी बाखलियां व वीरान गांव फिर गुलजार करने मुश्किल हो जाएंगे।

यह आंकड़े हाल में ही उत्तराखंड में 12 से 14 आयु वर्ग के 3.92 लाख बच्चों को कोरोना संक्रमण से बचाव के टीकाकरण की तैयारियों के दौरान जारी आंकड़ों के बीच आए हैं । बुधवार यानि 16 मार्च से प्रदेश भर में इस आयु के बच्चों का टीकाकरण शुरू हो गया है। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग ने सभी जिलों को चार लाख से अधिक कार्बेवैक्स टीके भेज दिए हैं


इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार राजीव पांडे ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में मार्मिक चित्रण कर लिखा है।


उन्होंने लिखा है कि “चौंकाने वाले ये आंकड़े चिंताजनक और भविष्य में पहाड़ के लिए बड़ी चुनौती भी हैं। पहाड़ में इस उम्र के बच्चों की संख्या बहुत सीमित हो गई है। स्वास्थ्य विभाग ने जो लक्ष्य तय किया है उसमें कुमाऊं के चार पहाड़ी जिलों से ज्यादा बच्चे अकेले ऊधमसिंह नगर में हैं। इस आंकड़ें में कुछ ऊपर नीचे हो सकता है लेकिन बहुत बड़ा अंतर नहीं आने वाला। पहाड़ के जानकारों से बात करने पर पता चलता है कि इस असंतुलन की सबसे बड़ी वजह पहाड़ों में तबाह जो चुकी शिक्षा व्यवस्था है। हर किलोमीटर में बनाए स्कूल केवल ठेकेदारों के काम आए हैं बच्चे इन स्कूलों में नहीं गए। हालांकि अब ये भी बंद हो रहे हैं। सरकारें बड़ी चालाकी से अपनी इस नाकामी का ठिकरा शिक्षकों के सिर फोड़ती रही है। जबकि जो कुछ सरकारी स्कूल सही हालत में हैं वे शिक्षकों की वजह से ही हैं। हालात यही रहे तो बीस साल बाद मैदानों में बैठकर पहाड़ की चिंता करने वाले भी नहीं मिलेंगे। आज दूर से ही सही पहाड़ को प्यार करने वाले तो हैं। मुझे लगता है कुर्सी के पीछे भाग रहे सत्ताधारियों को अब गंभीर होना चाहिए। अन्यथा राज्य ही नहीं बचेगा तो कुर्सी कहां से मिलेगी।

यहां यह भी बताते चलें कि पहाड़ के 3946 ग्राम पंचायतों के 1,18,981 ऐसे लोग हैं जो पूरी तरह से रोजगार की तलाश में पलायन कर गए और फिर वापस लौट कर नहीं आए। यह भी एक सूचना रिपोर्ट का हिस्सा है। जो 2019 की पलायन आयोग की रिपोर्ट है