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हिमालय की मेरी पहली यात्रा भाग —1

Newsdesk Uttranews
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केशव भट्ट

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पूरे चौबीस साल हो गए मगर याद ही नहीं कि वह हिमालय की मेरी पहली यात्रा थी 1995 में. पांचवी क्लास की किताब में एक चैप्टर था ‘हिमालय हमारा रक्षक’.. शायद यही नाम था. उस चैप्टर में छपे हिमालय और घने जंगल के चित्र मुझे वर्षों तक बरबस अपनी ओर खींचते रहे. कल्पनाओं में डूबा मैं अकसर हिमालय को बाहों में भर कर उसमें डूब जाने के लिए जैसे आतुर रहता था. बचपन तेजी से आगे खिसका तो मैं भी बांस की तरह लंबा हो गया. लेकिन, वजन जैसे गायब हो रहा था. किसी ने सुझाया कि केले खाओ वजन बढ़ेगा…. मगर केलों के लिए पैसे कहां से आएं? तो… गांव वालों के आंगन-खेतों में लगे पहाड़ी केले के चिकने तनों में चढ़कर केले तोड़ने लाने का हुनर हासिल कर लिया. कुछ दिनों बाद मानसिक रूप से महसूस होने लगा कि शायद ‘वजन’ बढ़ने लगा है. इस अहसास पर सही होने की मुहर उस दिन लगी, जब घर के ढलान पर एक पके केलों वाले पेड़ चढ़ने से वह मेरे साथ ज़मीन पर आ लगा. हल्की चोट के बावजूद मैं खुश था कि चलो.. वजन तो बढ़ा. केले के पेड़ के धराशायी होने की खबर कुछेक पलों में घरवालों तक पहुंच गई और इस नुकसान कि भरपाई के बतौर उनके द्वारा की गई मरम्मत से मुझे भान हुआ कि, ‘केले वजन बढ़ाने में सहायक होने के साथ-साथ शरीर के लिए घातक भी हैं..’ केले बंद.. तब हाल यह था कि, पेट को थोड़ा भीतर सिकोड़ो तो समझो ध्यान करने वाली गुफा बन जाने वाली हुई.

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https://uttranews.com/2019/07/13/my-first-visit-to-the-himalayas-part-2/

तब के जमाने में मध्यम से नीचे और गरीबी की रेखा से थोड़ा सा ऊपर के परिवारों के बच्चों को रहने की सुविधा बाहर नौकरी कर रहे उनके नाते-रिश्तेदारों के वहां नसीब हो जाया करती थी. कमज़ोर आर्थिक स्थिति और रिश्तों की मजबूरी होने के बावजूद तब नाते-रिश्तेदार बखूबी रिश्तों को अपना नसीब मान निभाते थे. मेरी खुराफ़ातों से तंग आकर घरवालों ने रिश्तों का फायदा उठा आगे की पढ़ाई के लिए मुझे कौसानी में दीदी के ससुराल में भेज दिया गया.

दीदी के ससुर तब कौसानी इंटर कॉलेज में अध्यापक थे, और काफी सख्त मिजाज़ भी. कौसानी में सामने गढ़वाल से नेपाल तक फैला हिमालय सूर्योदय और सूर्यास्त के वक्त अपनी ओर मुझे बरबस सा खींचता रहता था. खासकर अंग्रेजों के जमाने के उस तीन मंजिले मकान की रसोई के बगल वाली खिड़की से जब मैं सोते हुए चांदनी में नहाए हिमालय को देखता था तो कल्पना करता कि एक दिन स्कूटर में पीछे दो टिन पेट्रोल बांधकर अकेले हिमालय की ओर जाउंगा. तब अक्ल का यह हाल था, हालांकि वह अब भी बचपन से कुछ ख़ास आगे नहीं बढ़ पाई है.


जारी .
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