हलचल : मोबाइल नेटवर्किंग के जरिए सोशल मतदाता टटोल रहा नेताजी की नब्ज

सोशल मतदाता टटोल रहा नेताजी की नब्ज ललित मोहन गहतोड़ी निकाय चुनाव का बिगुल बजते ही एडवांस सोशल मतदाता ने सूबे की राजनीति में मोबाइल…

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सोशल मतदाता टटोल रहा नेताजी की नब्ज

ललित मोहन गहतोड़ी

निकाय चुनाव का बिगुल बजते ही एडवांस सोशल मतदाता ने सूबे की राजनीति में मोबाइल नेटवर्किंग के जरिए अपनी दस्तक देनी शुरू कर दी है। इस दौरान सोशल मीडिया में कमेंट्स का दौर शताब्दी एक्सप्रेस की रफ्तार पकड़ रहा है। अंत तक भाजपा, कांग्रेस सहित अन्य दलीय निर्दलीय प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं। नामांकन के साथ ही नेताजी के पक्ष विपक्ष में सोशल चुनावी गपशप शुरू हो गई है। नेताजी की डिजिटल गपशप नेटवर्किंग के जरिए एक डिवाइस से दूसरे में लगातार वायरल हो रही है।

दूसरी तरफ इन चुनावी गपशपों में चली चाय की चुस्कियों का दौर सोशल पंडितों के पेट का हाजमा खराब कर रहा है। दरअसल चाय के बहाने जम रही महफिलों के चर्चे सोशल नेटवर्किंग के जरिए आम मतदाता तक पहुंचाना सोशल पंडितों का पेशा है। पेट की लात से डरकर और पेशे की खातिर सोशल खबरची चाय डकारने को मजबूर हैं। गौरतलब है कि उन्हें जम रही इन चाय चौपालों के आसपास लोकल सोशल खबर्ची अपने अपने स्क्रीन टच मोबाइल सेटों में सोशल साइट्स पर विचरण करते आसानी से मिल जाते हैं। इस सोशल मंडली में एक चुनावी कमेंट की बात हो जाए तो दसेक कमेंट्स उभरकर सामने आ जाते हैं। इन चाय चौपालों में से निकल बाहर आई निकाय चुनावों की सुगबुगाहट अपने आप में स्वयं ही कुछ ना कुछ अफसाने बयां कर ही देती है।

सोशल नेटवर्क की एक व्यंगात्मक सोशल कमेंट में इस बार के चुनावों को भी हर बार की तरह दो चरणों में संपन्न होने का कमेंट तानकर ठोका गया है। इस तरकश में पहले छोटे चरण में नामांकन से मतदान तक नेताजी आपके चरणों में तदोपरांत दूसरे लंबे चरण में अगले पांच साल तक आप नेताजी के चरण में होने का कमेंट पोस्ट है। इन कमेंट्स को अंगूठे के निशान से लाइक और शेयर भी मिल रहा है। यह सबकुछ सोशल मीडिया के जरिए एक से दूसरे सेट में वायरल हो रहा है। सोशल मीडिया नेटवर्क के जानकार पंडितों की मानें तो सूचना क्रांति के इस दौर में नेटवर्किंग माध्यमों तक प्रत्येक व्यक्ति की पहुंच बन पाना सोशल मीडिया से ही संभव हो सका है। इस दौर में यह एक ऐसा सुलभ माध्यम बनकर सामने आया है जिसे लोगों ने हाथों-हाथ लिया। प्रत्येक नेटवर्क तक पहुंचाने के माध्यम के रूप में उसे एक सुलभ साधन मिल गया है।

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पिछले दो दशक में सोशल नेटवर्क से जुड़ते ही प्रत्येक आम व्यक्ति की पहुंच खास व्यक्ति में बदल गई है। लेकिन नेट की स्पीड में गड़बड़ी का रोना उसे कुछ हद तक परेशान भी कर रहा है। बावजूद इसके चुनाव संबंधी हर नये अपडेट का इस सोशल उपभोक्ता को बेसब्री से इंतजार है। गाहे-बगाहे खराब नेटवर्किंग का रोना हर सोशल पंडित की गपशप का जरिया बन गया है। बावजूद इसके मतदाताओं की ओर से इसी चलायमान नेटवर्किंग के जरिए नेताजी की टोह ली जा रही है। और वह भी ऐसे समय जब डबल इंजन की भाजपा सरकार के लिए स्थानीय पकड़ की मजबूती की अग्नि परीक्षा है। सोशल चुनावी विशेषज्ञों की मानें तो निकाय चुनाव का स्थानीय स्तर पर किया गया प्रर्दशन आगामी लोकसभा की तैयारियों का आधार माना जाता रहा है।

इस दरमियान सोशल नेटवर्किंग के जरिए नेताजी पर चुटकुले, व्यंग्य, कार्टून आदि पोस्टों के माध्यम से लगभग सभी सोशल ग्रुप खचाखच भरे पड़े हैं। इन दिनों शुभ संदेश, त्योहारों की बधाई और हार्दिक शुभकामनाओं के साथ साथ निकायों के चुनावी दंगल में खड़े नेताजी पर सकारात्मक, नकारात्मक और व्यंगात्मक प्रहार भी सोशल मीडिया में पोस्ट हो रहा है। सूचना क्रांति के बदलते इस दौर में चुनावी तौर तरीकों में भी बदलाव दिखाई दे रहा है। सोशल मीडिया के जरिए सोशल पंडितों द्वारा ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी बात शेयर और हायर की जा रही है। संचार क्रांति की धमक के आगे प्रचार और प्रहार के अन्य तौर तरीकों की चमक फीकी पड़ती जा रही है। नेटवर्किंग के जरिए सोशल पंडितों की ओर से अपने अपने नगर निकाय की तमाम समस्याओं को लेकर किए जा रहे कमेंट्स नेताजी को चुभने लगे हैं। कुल मिलाकर सोशल मीडिया के जरिए आम नगरीय मतदाता ने सियासी दलों के साथ ही निर्दलीय प्रत्याशियों की नब्ज टटोलनी शुरू कर दी है।