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उत्तरा न्यूज
अल्मोड़ा—15 मई2020— इसे महज संयोग कहें या हकीकत 45 दिन से अधिक लंबे लॉक डाउन (lock down)में गर्मी के सीजन में केवल पांच घटनाए ही सामने आई हैं। इससे वन विभाग ने राहत की सांस तो ली ही है। यह भविष्य में अध्ययन के नए मार्ग भी तय कर सकता है।
कहा जाता है कि जंगल अपनी जगह खुद बना लेते हैं यदि उनमें हस्तक्षेप नहीं किया जाय तो जंगल खुद—व—खुद अपने अस्तित्व को बचाए रखते हैं वहीं तेजी से विकसित भी होते हैं। इसे एएनआर भी कहा जाता है।
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अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर और चंपावत के चार जनपदों में वन विभाग के पांच प्रभाग है। फरवरी माह से फायर सीजन शुरू हो जाता है जबकि मार्च से तेज गर्मी या उमस के बीच जंगल धधधने लगते हैं ऐसे में मई माह तक इन पांचों जनपदों में आग लगने की केवल पांच घटनाए सामने आयी हैं तो यह रिर्पोट वनों से प्रेम करने वालों के लिए राहत भरी खबर ही कहलाएगी।
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ऐसे यदि यह कहा जाय कि लॉक डाउन के चलते यदि इस पूरी अवधि में जंगलो में मानवीय हस्तक्षेप काफी कम हुआ या किसी प्रकार की प्रतिस्पर्द्धा या मानवीय शरारत नहीं दिखाई दी तो इसे एक हद तक सही माना जा सकता है।
क्योंकि 45 दिन के इस लॉक डाउन में आग की बड़ी घटनाएं सामने नहीं आयी। वन विभाग के तीन मई तक के आकड़ों पर नजर डालें तो यहां पिथौरागढ़ में तीन और बागेश्वर जनपद में केवल दो मामले सामने आए हैं। और कहीं भी जंगलों में आग के बड़े मामले सामने नहीं आए हैं। यहां नुकसान भी केवल 10हजार 650 रुपये का हुआ है और प्रभावित वन क्षेत्र भी 3.55 हेक्टेयर ही है।
यहां यह भी बताते चले कि वर्ष 2016 में अप्रैल माह में ही आग ने अपना विनाशकारी रूप ले लिया था। यहां कुमांऊ के कई हिस्सों में हैलीकैप्टर से आग बुझाने में मदद ली गई थी। अन्य वर्षों में भी आग की कई बड़ी घटनाएं सामने आती रहीं है। 2019 में कई वर्षों का रिकार्ड इस आग ने तोड़ा था।
हालांकि केवल लॉक डाउन को ही जंगलों में आग लगने का कारण नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि इस बार समय समय पर वर्षा होने के कारण भी जंगलों में नमी रहना भी एक कारण है।
लेकिन वन्य संपदा के लिए होने वाली प्रतिस्पर्द्धा और शरारती तत्वों द्वारा आग लगाने की घटनाएं लॉक डाउन की अवधि में यदि कम हुई है तो अध्ययन के स्वरूप कुछ और भी हो सकते हैं।
यह कहना गलत नहीं है कि वनों को बचाने के लिए किसी योजना की जरूरत नहीं पड़ती है जंगल खुद की पहचान और विकास स्वयं करने में सक्षम हैं।
शीतलाखेत क्षेत्र में स्थानीय नागरिकों ने स्याहीदेवी विकास समिति और वन विभाग के सहयोग से शीतलाखेत के नजदीकी वन को 2012 से केवल आग से बचाने का प्रयास किया है।
यहां केवल लोग इस क्षेत्र को आग से ही बचाते हैं और कोई अन्य प्रयास नहीं किया गया है लेकिन इन 12 वर्षों की अवधि में यह जंगल पूरी तरह विकसित हो गया है।
इसके आसपास जिस तरह बहुतायत में वन प्रजातियों की विविधता है उसे देख कर लगता है कि जंगलों को यदि बिना हस्तक्षेप के छोड़ दिया जाय तो वह खुद अपना विकास कर लेते हैं।