डेस्क:- जब संपूर्ण देश में दशहरा की धूम है, ऐसे में देवभूमि उत्तराखंड में इस पर्व का अपना ही अलग महत्व है । इस अवसर पर बोए जाने वाले हरेला को भी कुंवारी कन्याओं और परिवार के अन्य सदस्यों के शिरोधार्य किया जाता है ।
शरद ऋतु के इस नवरात्र के अवसर पर देवी को समर्पित करने के लिए जौं और सरसों को हरेला पात्र में प्रथम नवरात्रि के अवसर पर बोया जाता है तथा दशहरा के अवसर पर काटकर देवताओं को चढ़ाने के पश्चात घर के अन्य सदस्यों को भी हरेला लगाया जाता है।
उत्तराखंड की लोक परंपरा एवं बुजुर्गों के द्वारा चलाए गए रीति रिवाज को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से
हर्ष विहार कुसुमखेड़ा निवासी गौरीशंकर काण्डपाल के द्वारा सतत प्रयास किया जा रहा है । इसी कड़ी में आज स्थानीय बच्चों को आमंत्रित कर कन्या पूजन करते हुए उनको हरेला अर्पित किया गया तथा यह आशीर्वाद लिया गया कि हमारे घर में धन-धान्य हो सुख समृद्धि हो ।
इस अवसर पर गाए जाने वाले लोकगीत के माध्यम से बच्चों के स्वस्थ एवं सुखी जीवन की कामना की जाती है,जिसके बोल हैं,
लाग दशै ,लाग बगवाई ।
जी रए, जाग रए।
धरती बराबर चाकौ ,
आसमान बराबर लम्ब है जाए ।
सिल पिस बेर भात खाए,
जांठ टेक बेर घुमहूं जाए ।
स्यावै जै बुद्धि हैजो,
सुवै जै तराण ऐजो।
खूब पढ़िए लिखिए ठुल अफसर बन जाए।
संस्कृति कर्मी गौरीशंकर कांडपाल की रिपोर्ट