अहम फैसला— न्यायालय ने खारिज की सीबीसीआईडी की फाइनल रिर्पोट,एक माह में पुन: रिर्पोट प्रस्तुत करने के निर्देश,नानीसार प्रकरण में न्यायालय का बड़ा निर्णय

अल्मोड़ा। नानीसार प्रकरण में उपपा अध्यक्ष पीसी तिवारी और रेखा धस्माना के साथ 27 जनवरी 2016 को हुई घटना पर वहा निर्माण करा रही कंपनी…

अल्मोड़ा। नानीसार प्रकरण में उपपा अध्यक्ष पीसी तिवारी और रेखा धस्माना के साथ 27 जनवरी 2016 को हुई घटना पर वहा निर्माण करा रही कंपनी के पक्ष में (विवेचक)सीबीसीआईडी की अंतिम रिर्पोट को न्यायिक मजिस्ट्रेट अभिषेक कुमार श्रीवास्तव ने खारिज कर एक माह में पुन: रिर्पोट प्रस्तुत करने को कहा है। न्यायालय ने कहा है कि विवेचक की रिर्पोट तथ्यों और गवाही पर आधारित न होकर अन्य आधारों पर आधारित है जो स्वीकार करने योग्य नहीं है।
वादी पीसी तिवारी ने फाइनल रिर्पोट के मामले में वाद दायर किया था और कहा था कि 23 जनवरी 2016 को एक स्थगन आदेश को लेकर एक न्यायिक कर्मी के साथ नानीसार गए वहां अधिवक्ता पीसी तिवारी के साथ कंपनी के प्रेमपाल,प्रतीक जिंदल,व अन्य द्वारा हमला कर दिया गया था। इस दौरान उनके साथ मौजूद रेखा धस्माना का टेबलेट लूट लिया गया था और उनके साथ भी मारपीट हुई । मामले की शिकायत दोनो पक्षों ने राजस्व पुलिस को दी। वादी ने कहा था कि मामले में सीबीसीआईडी ने जहां पहले पक्ष की शिकायत पर पीसी तिवारी और रेखा धस्माना और ग्रामीणों के खिलाफ एससी एक्ट सहित अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया वहीं ​पीसी तिवारी की रिर्पोट को पर अंतिम रिर्पोट लगाकर उक्त पक्ष को राहत देने का काम किया।
मामले के वादी और अधिवक्ता पीसी तिवारी ने बताया कि सीबीसीआईडी द्वारा जांच रिर्पोट को उन्होंने न्यायालय में चुनौती देते हुए उनके खिलाफ लगाए गए मुकदमों और आरोप पत्र में दर्ज बयानों सहित अन्य दस्तावेज न्यायालय में प्रस्तुत किए। परीशीलन के बाद न्यायालय ने सीबीसीआईडी की फाइनल रिर्पोट को खारिज कर एक माह के भीतर पुन: रिर्पोट प्रस्तुत करने को कहा है।
इधर न्यायालय का फैसला आने के बाद मामले के वादी रहे अधिवक्ता पीसी तिवारी ने कहा कि न्यायालय के फैसले के बाद साफ हो गया है कि अब अभियुक्तों के खिलाफ कार्यवाही होगी साथ ही उन्होंने कहा कि सीबीसीआईडी ने सरकार के दबाव में कार्य किया यह भी साफ हो गया है। मालूम हो कि नानीसार के इस आंदोलन की गूंज पूरे उत्तराखंड में गूंजने लगी थी। अधिकवक्ता पीसी तिवारी व उनके साथी जेल में भी बंद रहे और इस प्रकरण ने एक जनांदोलन का रूप ले लिया था।