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काली कुमाऊं के कलौटा की कमला

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नकुल पंत
डूबते हुए सूरज की तिरछी किरण खंडहर होने की कगार पर पहुंचे मकानों पर पढ़ रही थी ।
जिला मुख्यालय चंपावत से 40 किलोमीटर दूर नेपाल सीमा से लगे इस गांव कलौटा की लोकेशन गूगल मैप से भी गुमशुदा थी। चमदेवल जिसे पूर्व में गुमदेश भी कहा जाता था ।मेरे साथी मित्र ने चमदेवल बाजार से 2 किलोमीटर दूर इस गांव में घूमने की बात कही उबड़-खाबड़ टेढ़े-मेढ़े तंग रास्ते से चल कर हम इस गांव में पहुंचने वाले थे कि रास्ते में दो छोटी बालिकाऐं जिसमें से एक 15 वर्षीय बालिका कमला 30 लीटर का बर्तन पकड़े पानी लेने के लिए जा रही थी। जो खड़ी चढ़ाई में थकान के कारण एक पत्थर पर बैठी हुई थी। पुरानी सी एक सूट पहने उलझे-चिपके हुए बाल मायूस चेहरा बैठी हुई मुझे और मेरे साथी को देखते हुए मुस्कुराई । मुझे पता नहीं था कि वो नीचे अपने गांव से ऊपर के गांव में पानी लेने के लिए आ रही थी। तो मैंने उस लड़की से पूछा कि तू स्कूल पढ़ने जाती है, तो वह लड़की हल्की सी आवाज में बोली गरीब हैं पढ़ नहीं सकते घर की स्थिति ठीक नहीं है। इतना सुनते ही उस क्षण से ही मैं नि:शब्द हो गया था और कदम बढ़ाते हुए उसके बारे में सोचता हुआ बढ़ता चला गया सोच रहा था कि आँखिर टीवी अखबारों के प्रचार ,नेताओं के भाषणों में कितना दम है और सरकार की कल्याणकारी योजनाएं बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, सब पढ़े -सब बढ़े का नारा कितना साकार और दमदार है ।
खैर योजनाएं और नारे तो कितने और आएंगे ।
आगे बढ़े तो दर्जन भर परिवारों के इस गांव में चार युवक अपने मकान के बगल वाले खेत में कुर्सियां लगाए बैठे बात कर रहे थे। उन्हें देखते ही मैं उनके पास पहुंचा। बिना परिचय किये ही उनमें से एक व्यक्ति ने मुझे कुर्सी बैठने के लिए दी, टूटी हुई तार से बंधी कुर्सियों को देख कर अंदाज लगाया जा सकता था कि आखिर इस गांव की गरीबी का हाल क्या है,बेसक उनके द्वारा मुझे दिए गए सम्मान में कोई कमी नही थी।
गरीबी में जीवन यापन करने वाले इस गांव में अगर आप जाएंगे तो आप इन दर्जनभर परिवारों के कच्चे पुराने भवनों को देखकर समझ नहीं पाएंगे कि आँखिर इन सब का रहन-सहन, दिनचर्या कैसी होती होगी। इन घरों में आप अगर पता करेंगे कि उज्ज्वला योजना से आपको कितना फायदा मिला है। तो साफ सी बात है कि न तो इस कल्याणकारी योजना का इन्हें पता है और ना ही यह लोग गैस में खाना बना सकते हैं। दर्जनभर निवास कर रहे इन गरीब परिवारों में आधे परिवार सरकारी कागजों में गरीबी रेखा से ऊपर निवास करने वाले लोगों में हैं। किसी भी परिवार के पास पक्का मकान तक उपलब्ध नहीं है। एक तरफ भारत सरकार डिजिटल इंडिया को बढ़ावा दे रही है लेकिन इस गांव को डिजिटल इंडिया नहीं बल्कि कई जटिलताओं का सामना करना पड़ रहा है ।
उत्तराखंड राज्य में पलायन एक गंभीर समस्या बनकर उभरा है, लेकिन इन ग्रामीणों के लिए इस गांव से पलायन करना अपने को अनेक समस्याओं से दूर करना तथा अपने जीवन में खुशियां लाने को प्रेरित करेगा ।
मेरे द्वारा जब उन लोगों से आवास एवं शौचालय की योजनाओं के बारे में जानकारी ली गई तो आधे दर्जन से अधिक परिवारों का कहना था कि उन्हें अभी तक इन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाया है। वाकई इस पूरे गांव में आधे से अधिक लोगों के पास ना ही कोई पक्का आवास है और न शौचालय है।
आँखिर क्या कारण है कि सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से इन गांव वासियों को वंचित रहना पड़ा है ।इस गांव के लोगों के लिए पेयजल बहुत बड़ी समस्या है।साफ-सफाई तो दूर पीने के पानी की उपलब्धता शून्य है। 500 मीटर की चढ़ाई को चढ़ने के बाद दूसरे गांव से ग्रामीण पानी ढोने को मजबूर हैं ।
ग्रामीणों की समस्याओं को रिकॉर्ड करने के लिए जैसे ही मेरा कैमरा घुमा दर्जनों पुरुष एवं महिलाएं अपनी अपनी समस्याएं कहने को दौड़ पड़ी जैसे उनके गांव में कोई विधायक या सांसद पहुंचा हो।
 वापस आते हुए हमें कमला (15वर्षीय) जो 30 लीटर पानी का बर्तन उठा के घर पहुंची ही थी हमसे हल्की आवाज में बोली मेरे पापा विकलांग हैं जो मजदूरी करते हैं, और मैंने 6वीं कक्षा से स्कूल छोड़ दिया है, गरीबी होने के कारण पढ़ाई नहीं कर पा रही हूं,ओर में पढ़ना चाहती हूँ।
ऐसे में किससे उम्मीद लगाएं कलौटा के ग्रामीण……?