कभी लडी थी देश की आजादी की लडाई : अब सरकार परिजनों को नहीं मानती आश्रित

मयंक मैनाली रामनगर । इससे बडा दुर्भाग्य क्या होगा कि कभी देश के गुलामी के दौर में अंग्रेजी हुकुमत से देश की आजादी के लिए…

narayan dutt belwal

मयंक मैनाली
रामनगर । इससे बडा दुर्भाग्य क्या होगा कि कभी देश के गुलामी के दौर में अंग्रेजी हुकुमत से देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले आजादी के सेनानी के परिवार को सरकार आश्रित नहीं मानती। मूल रूप से अल्मोडा जनपद के रानीखेत के ग्राम गुमटा निवासी स्वर्गीय नारायण दत्त बेलवाल ने अंग्रेजों से देश को आजाद कराने के अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था। लेकिन आज आजाद भारत की सरकार के हुक्मरान और अधिकारी उनके परिवार और उनके पुत्रों को उनका आश्रित नहीं मानते हैं। स्व
यं को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का उत्तराधिकारी घोषित करवाने के लिए उनके परिजन दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर हैं। मूल रूप से अल्मोडा जनपद के रानीखेत के ग्राम गुमटा निवासी वर्तमान में रामनगर के ग्राम सांवल्दे पश्चिम में निवास कर रहे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के पुत्र गणेश बेलवाल बताते हैं कि उनके पिता स्वर्गीय नारायण दत्त बेलवाल पुत्र स्वर्गीय कुलोमणि बेलवाल ने आजादी की लडाई में बढ-चढ कर प्रतिभाग किया था ।
वर्ष 1942 में अंग्रेजों भारत छोडों के आंदोलन में अंग्रेजी सरकार के विरूद्व डटकर लोहा लेने के कारण अंग्रेजी हुकुमत ने स्वतंत्रता सेनानी बेलवाल को उस समय अल्मोडा कारागार में बंद कर दिया ,जहां उन्हें कडी यातनाएं दी गई । लेकिन देश की आजादी की तमन्ना के चलते वह जेल से रिहा होने के बाद भी आंदोलनों में सक्रिय रहे। कई प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नेतृत्व में चले आंदोलन में भागीदार रहने के चलते वर्ष 1947 में वह देश की आजादी के गवाह बने। वर्ष 1982 में आजादी के इस सेनानी का निधन हो गया। लेकिन आज बेहद मुफलिसी के दौर में जी रहे उनके परिजन स्वयं को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का उत्तराधिकारी कहलाने के लिए दर दर की ठोकरें खा रहे हैं। आजाद भारत की सरकार और उसके हुक्मरान सेनानी को मिले ताम्रपत्रों और प्रमाणपत्रों को भी अस्वीकार कर उनके परिजनों को आश्रित मानने को तैयार नहीं है।