‘जामिया ना होता तो मेरे पत्रकार बनने का सपना ना पूरा होता’, पढ़े अल्मोड़ा निवासी युवा पत्रकार हेमराज सिंह चौहान का यह लेख…

जामिया मिलिया इस्लामिया

jamiya millia ishlamiya

अल्मोड़ा। केंद्रीय विश्वविद्यालयों की श्रेणी में आने वाला जामिया

hemraj singh chauhan
हेमराज सिंह चौहान

जामिया ना होता तो मेरे पत्रकार बनने का सपना ना पूरा होता—

आप सोच रहे हैं कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं, इसकी वजह आपको बताता हूं. मैने साल 2006 में दिल्ली के एक प्राइवेट कॉलेज में मास कम्यूनिकेशन में एडशिमन लिया.. इसके बाद अगले तीन सालों तक पत्रकारिता में अपनी ग्रेजुएशन की. साल 2008 की आई मंदी ज्यादा कॉन्टेक्ट ना होने की वजह से मेरे हाथ मायूसी लगी और मैं इस पेशे में नौकरी नहीं ले पाया. इसके बावजूद मेरे अंदर एक पत्रकार बनने का जुनुन और खुद पर भरोसा था. मैं आगे की पढ़ाई करना चाहता था पर सवाल ये था कि अब मेरे माता-पिता महंगी फीस देने में परेशानी महसूस कर रहे थे. दो सालों तक मैंने धक्के खाए और आखिर में मुझे एक ऐसी यूनिवर्सिटी दिखी जहां से मैं आगे पढ़ाई पूरी कर सकता था और फीस भी ज्यादा नहीं थी. मैंने साल 2011 में जामिया का एंट्रेंस टेस्ट दिया और जुलाई में डिप्लोमा इन टीवी जर्नलिज्म में एडमिशन ले लिया.. इसके बाद मुझे अपनी शुरुआती दिनों का किस्सा याद है जब एक जाने माने एकंर जो कि जामिया से ही पढ़े हुए हैं, उन्होंने कुछ सवाल पूछे और मैंने उसके सही जवाब दिए, तो उन्होंने मुझसे पूछा था कि आप जॉब क्यों नहीं कर रहे हो? मैंने तब ये ही कहा था कि सर मैं अच्छी यूनिवर्सिटी से डिग्री लेने आया हूं क्योंकि इसके बिना नौकरी नहीं मिलेगी. हालांकि उन्होंने इसके बाद एक छोटे मोटे चैनल में उन्होंने मुझे मेरी पढ़ाई के दिनों में ही भेज दिया था. लेकिन इससे बड़ा सवाल ये है कि अगर जामिया मिलिया इस्लामिया का मेरे पास विकल्प नहीं होता तो क्या में आगे पढ़ पाता और मेरा पत्रकार बनने का सपना पूरा हो जाता.. शायद कभी नहीं. इसकी वजह मेरे परिवार की आर्थिक क्षमता और महंगे कॉलेज का होना होती.. इसके अलावा क्योंकि मैं उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र अल्मोड़ा से हूं. वैसे तो ये शहर अपनी गंगा-जमुनी तहजीब के लिए जाना जाता है पर वहां भी मुस्लिमों के लिए अफवाहें जमकर फैलाई जाती है. जैसे कि वो जादू-टोना करते हैं, गाय खाते हैं, हिंसक होते है और गंदे होते हैं. मेरा परिवार लिबरल है इसलिए मैंने उन्हें वहां पढ़ने के लिए राजी कर लिया. यहां आकर मैंने करीब से मुस्लिम लोगों को समझा और आज भी मेरे कई अजीज दोस्त मुस्लिम हैं, जो जामिया के दिनों से मेरे साथ हैं. मेरे घर वाले आज भी उनसे मिलते हैं और जमकर तारीफ करते हैं. जामिया ना होता तो शायद ये कभी नहीं होता. इस यूनिवर्सिटी में कई हिंदू पढ़ते हैं. नागरिकता संशोधन विधेयक का इस यूनिवर्सिटी में जमकर विरोध हो रहा है और इसमें हिंदू भी शामिल है. विरोध करना एक लोकतांत्रिक अधिकार है और इसे मजहब के आधार पर नहीं छीना जा सकता.. बहुत कम लोग जानते होंगे कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पहल पर ये यूनिवर्सिटी बनी है. उन्होंने कहा था कि मैं इस यूनिवर्सिटी को चलाने के लिए कटोरा लेकर भीख मांगूगा. जामिया मिलिया इस्लामिया का अर्थ है राष्ट्रीय मुस्लिम विश्वविद्यालय.. ऐसे में आज कुछ लोग प्रोपेगेंडा के तहत इस यूनिवर्सिटी को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं. ये लोग नहीं जानते कि किस जगह पर ये यूनिवर्सिटी बसी है. कैसे वो भारी आबादी के बसावट के बीच बसी है और यूनिवर्सिटी के बीच से आम रास्ता जाता है.. लेकिन जामिया पर जिस तरह दिल्ली पुलिस घुसी और छात्रों के साथ यूनिवर्सिटी में बनी लाइब्रेरी और मस्जिद के अंदर बर्बरता कार्रवाई की वो कई सवाल उठाते हैं. छात्रों का आरोप है कि उनके साथ शोषण किया गया. हिंसा को किसी तरह से भी जायज नहीं ठहराया जा सकता है लेकिन इसकी आड़ में कुछ लोगों के प्रोपेगेंडा को भी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है.. छात्रों को भी सजग रहने की जरूरत है क्योंकि कुछ लोग चाहते हैं कि उनके विरोध प्रदर्शनों में हिंसा दिखाई दे ताकि उनके मंसूबे पूरा हो सकें।’

साभार प्रकाशित— जामिया मिलिया इस्लामिया में हो रहे नागरिकता संशोधन कानून के विरोध को लेकर युवा पत्रकार हेमराज सिंह चौहान ने यह लेख अपने फेस​बुक वॉल में प्रकाशित किया है। मूल रूप से अल्मोड़ा निवासी हेमराज जामिया ​मि​लिया इस्लामिया के भूतपूर्व छात्र है। वह सम​सामयिकी मुद्दों पर बेबाकी से अपने विचार रखने के लिए जाने जाते है….