प्रयागराज के महाकुंभ में 28 और 29 जनवरी की दरमियानी रात को मची भगदड़ के कारण मरने वालों की संख्या को लेकर लगातार अलग-अलग दावे किए जा रहे हैं। कभी यह संख्या 30 बताई जाती है, तो कभी 50 से अधिक। घायलों की संख्या 60 से अधिक बताई जा रही है। हालांकि, प्रशासन ने अब तक कोई स्पष्ट आंकड़ा नहीं दिया है, जिससे स्थिति और अधिक संदेहास्पद हो गई है।
भगदड़ में फंसे श्रद्धालुओं ने आरोप लगाया कि वहां सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह से नाकाम साबित हुई। भीड़ बेकाबू हो गई थी और पुलिस से मार्ग खोलने की अपील की जा रही थी, लेकिन समय पर कोई कदम नहीं उठाया गया। नतीजतन, लोग एक-दूसरे को कुचलते हुए गिरने लगे। इस बीच, एक महिला श्रद्धालु ने बीबीसी को बताया कि भगदड़ में उसे भी गंभीर चोटें आई थीं, लेकिन उसे देखने और बचाने वाला कोई नहीं था। उसने दावा किया कि भगदड़ के दौरान कुछ लोगों ने उसका बैग छीनने की कोशिश की, और जब उसने विरोध किया, तो उसे सीने पर लात मारकर गिरा दिया गया, जिससे वह बेहोश हो गई।
महिला ने आगे बताया कि जब उसे हल्का होश आया, तो उसने सुना कि एक सिपाही कह रहा था कि यह मर चुकी है, इसे गंगा में बहा दो। तभी एक अन्य महिला ने सिपाही को डांटा और उसके मुंह पर पानी डाला, जिससे वह दोबारा होश में आ गई। यह घटना प्रशासन की संवेदनहीनता को उजागर करती है और महाकुंभ में व्यवस्था की पोल खोलती है।
इस भगदड़ के बाद अभिनेत्री और समाजवादी पार्टी की सांसद जया बच्चन ने महाकुंभ में गंगा की स्वच्छता पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि गंगा नदी में शव बहाए गए हैं, जिससे पानी दूषित हो गया है। उनके बयान के बाद सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई।
लोक गायिका नेहा सिंह राठौर ने भी इस मुद्दे पर सरकार और प्रशासन को घेरा। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर करते हुए लिखा, “हम ज़िंदा थे, लेकिन सिपाही बोला इसे गंगा में बहा दो…”। इस बयान के बाद कुछ लोगों ने उन पर अफवाह फैलाने का आरोप लगाया, जबकि अन्य ने प्रशासन की लापरवाही पर सवाल खड़े किए। नेहा ने अपने वीडियो में सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि महाकुंभ में श्रद्धालुओं को बुलाया गया, लेकिन उनकी सुरक्षा के लिए कोई ठोस इंतजाम नहीं किए गए।
इस पूरे घटनाक्रम के बाद सरकार ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं और मृतकों के परिवारों को मुआवजा देने की घोषणा की है। लेकिन यह सवाल अब भी बना हुआ है कि क्या इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए भविष्य में कोई ठोस कदम उठाए जाएंगे या फिर हर बार श्रद्धालुओं की जान इसी तरह संकट में पड़ी रहेगी?