बसंत पांडे की रिर्पोट—
अल्मोड़ा। जंगल में जानवरों को भेजने की जगह खेतों में चारा लगाओ,छोटे पेड़ बचाओ, पत्तियां न तोड़ो ,पेड़ों से प्रेम करो, प्रकृति की चाल के साथ चलो। पर्यावरण संरक्षण शब्द की रचियता और जिन्होंने अपना पूरा जीवन प्रकृति में आत्मसात करके जिया और प्रकृति पर आने वाले संकट के प्रति सचेत किया और दर्शन भी विश्व को प्रदान किया। शोर से दूर हिमालय के आगोश में शांत वातावरण में विश्व पर्यावरण के संरक्षण पर गहन चिंतन और मनन करने वाली सरला बहन के जन्मदिन 5 अप्रैल को उनकी कहीं और लिखी एक एक बात मार्ग दर्शक की तरह विकास की सही दिशा की ओर आज ही इशारा करती है।
गांधी जी ने कुछ सोच कर सरला बहन को को कौसानी भेजा होगा। उनको सरला बहन में एक बड़ी संभावना दिखी होगी। सरला बहन ने सच कौसानी से ही स्त्री शिक्षा, पर्यावरण संरक्षण और जय जगत को सिद्ध करने के लिए अपना जीवन आहूत किया।
प्रथम विश्व युद्ध की विभीषिका और पागलपन को देख उन्होंने शांति और अहिंसा का मार्ग खोजने की अपनी यात्रा में गांधी जी को एक अडिग पड़ाव ही नही मंजिल के रूप में पाया। युद्ध और विकास के उफनते उन्मांद और युद्ध रोमांस से दुनिया विनाश की उस नाव में बैठी हुई है, जिसका चप्पू उनके हाथ के नियंत्रण से बेकाबू होने के कगार पर होता जा रहा है। प्रकृति की अपनी एक चाल होती है। सतत और निरंतर ,कोई जल्दबाजी नही ,उतावलापन नही जीत और हार की रेस से परे केवल चलते जाना ही है। गांधी ने इस चाल को अनुभव किया और उसकी चाल और उससे निकल रहे संगीत को समझा और उसकी चाल में कदम मिलाकर ग्राम स्वराज्य का मॉडल निर्मित किया। शिक्षा की नई तालीम में इन सब को पिरो दिया। प्रकृति ने जो दिया है, उसकी चाल के साथ सतत चला जा सकता है। प्रकृति के इर्द गिर्द ही मानव अपना विकास कर सकता है। मानव अस्तित्व के लिए प्रकृति का विनाश नही अपितु संरक्षण ही मंत्र हो सकता है। शिक्षा प्रकृति के अनुसार होनी चाहिए, उसके विरुद्ध नहीं। प्रकृति के परे कोई मार्ग हो ही नही सकता।
गांधी के जीवन दर्शन और जीवन ने ये सब एक सूत्र में सरला बहन ने विश्व को प्रदान किया। विश्व युद्ध की विभीषिका को देख कैथरीन(उनका असली नाम) समझ गई कि युद्ध जीतने वाला और युद्ध हारने वाला दोनों ही हारते है। केवल मानव के भीतर दम्भ और दूसरे को हराने का उन्माद जो विनाश का पर्याय है ही जीतता है। ।आज ये सब हमारे सामने चरितार्थ हो रहा है।
सरला बहन के जन्मदिन पर उनकी हिमदर्शन की धार पर बैठना और प्रकृति के संरक्षण की गहन चिंतन करना मानव को एक दिशा प्रदान करता है। लक्ष्मी आश्रम का सतत परिवेश आज ही एक आशा प्रदान तो करता ही है। हालांकि विश्व में बेतरतीव भागता विकास सब कुछ लील लेने को अंधी दौड़ में चारो ओर भाग रहा है। उसकी अंधी दौड़ को रोक पाना संभव नही है।लेकिन गांधी के ग्राम स्वराज्य में अभी भी गांव को गांव बनाने की दिशा और मार्ग संरक्षित है। पुरखों की सतत और मेहनत के परिचायक खेत और गांव आज भी मानव सभ्यता को अमरता प्रदान करने की असीम क्षमता है।
सरला बहन ने लक्ष्मी आश्रम को एक मॉडल के रूप में विकसित किया। ये गांधी का ही जीवित मॉडल है। दूसरी और हिमदर्शन कुटीर को चिंतन स्थली के रूप में सरला बहन ने विश्व को प्रदान किया।
आज विकास के बेतरतीव मॉडल को मानव ही नही वन्य प्राणियों की सहज और नीरव जीवन शैली को भी प्रभावित किया है। विकास की तुरत गति ने सतत गति को बाधित ही किया है। वन्य प्राणियों का जंगल से बाहर आना इसका संकेत है। पर्यावरण संरक्षण ही इसका एक मात्र समाधान हो सकता है।
विश्व में जल संकट का गहराता भयावह रूप प्रकृति की चाल को बाधित करने वाले तुरत विकास का ही परिणाम है। मुट्ठी भर लोग दुनियां को तेजी से भागना चाहते है, इस भागमभाग में वो न जाने किस मंजिल को छूना चाहते है और पूरी मानव जाति को इस चाल में अपने अंधकूप में झोंकना चाह रहे है। ये आज प्रकृति के विनाश से संमझा जा सकता है। जब महानगर की चकाचौंध में सांस लेना कठिन हो जाती है, उस वक्त सब बेमानी लगता है। खाने के स्वाद में तेजी से आये बदलाव , विश्व में पिघलते ग्लेशियर, भारत में गंगा नदी समेत सारी नदियों को नालों में परिवर्तित होते देख प्रकृति की सतत चाल को समझना भी कहाँ रह गया है, संभव।
ये सब सहसा सरला बहन के जन्मदिन पर याद हो चला। कृत्रिम शोर से दूर प्रकृति के संगीत के साथ कैसे सुरताल मिल कर चला जा सकता है। ये सरला बहन के जीवन दर्शन और उनकी यादों में आज भी कौसानी के लक्ष्मी आश्रम और उनकी चिंतन स्थली हिमदर्शन में खोजा जा सकता है, बस प्रकृति की चाल के संग चलने मात्र से , जंगल के संगीत में सराबोर हुए, आज भी तमाम कोलाहल के बावजूद भी पक्षियों का कलरव ध्यान खींच ही लेता है। हिमालय की बर्फानी चोटियां अपनी ओर आकर्षित आज भी करती है। घाटियों से आती हवा एक संगीत ही तो है। घने जंगल में अनहद का संगीत तनिक एकाग्र होने से सुना जा सकता है। आज भी सूर्यास्त की लालिमा , रात का सन्नाटा , चन्द्रमा का प्रकाश अपने होने का अहसास छोड़ ही जाता है। ये सब सतत और निरंतर ही है। तुरत विकास की अवधारणा से ये कब तक रहेगा, इस पर चिंतन तो करना ही होगा ,ये तय है।
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कौसानी में मनाई गई सरला बहिन की 119वी जयंती
आज स्वतंत्रता सेनानी पर्यावरण विचार की जनक सरला बहन की 119 वीं जयंती है। उनके द्वारा स्थापित लक्ष्मी आश्रम कौसानी में आज उन्हें व्यख्यान माला का आरंभ कर याद किया गया। इस मौके पर दीप प्रज्वलन और वंदना के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई।
गुजरात विद्यापीठ से पहुँचे मुख्य वक्ता प्रख्यात गांधीवादी विचारक और तमाम पुस्तकों के लेखक राम चंद प्रधान ने अपने बख़्यान में सरला बहन और महात्मा गांधी की प्रासंगिकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि गांधी विचार तमाम विचारों का मध्यम मार्ग है। आज गांधी के बारे में तमाम झूठ परोसे जा रहे हैं जिसका जवाब सच से ही दिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि बुराई का सामना अच्छाई से ही किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि जब पूरी दुनिया में पर्यावरण पर कोई चर्चा या विचार मौजूद नहीँ था तब सरला बहन ने उत्तराखंड से आम लोगों में पर्यावण शब्द की चर्चा की। बाद में उन्होंने आधा दर्जन पुस्तकें पुस्तकेँ लिखकर पर्यावरण संरक्षण के विचार को गहराई से समझया। आज के तमाम पर्यावरणविद उन्ही के शिष्य और परम्परा से हैं। उनकी शिष्य और जानी मानी सामाजिक और पर्यावरण कार्यकर्ता राधा बहन ने कहा कि 1901 में इंग्लैंड में पैदा हुई कैथरीन मैरी हेलेमन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचार से प्रभावित होकर भारत आई और यंही की होकर रह गई। उनके सरल स्वभाव को देखते हुए गांधी जी ने उन्हें सरला नाम दिया। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सन 1939 में गांधी जी के सुझाव से वह कौसानी पहुँची और स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूत करने में लग गई। साथ ही आश्रम की शुरुवात कर स्थानीय लोगोँ की सेवा और पर्यावण की सोच को खड़ा करने में लग गई।
इस मौके पर प्रदेश भर पहुंचे सामाजिक कार्यकर्त डॉ उमा भट्ट, सिद्धार्थ नेगी, बसंती बहन, हरपाल नेगी, डॉ दीवान नगरकोटी, ईश्वर जोशी, रमेश मुमुक्षु, रेवाधर वैष्णव, लीलाधर पांडेय, अशोक पंत, अरुण कुमार पंत, माया खर्कवाल, हीरा रावत, डेविड होपकिंग्स, थ्रिस कपूर, प्रेम सिंह मेहरा, हंसी बहन, दीक्षा बिष्ट, दयाकृष्ण काण्डपाल, शोभा बहन, नितेश पाठक, पूरन पांडेय, राजू काण्डपाल, अर्चना बहगुणा, बसंत पाण्डेय, रजनीश बहुगुणा आदि दर्जनों कार्यकर्ता तथा केंद्रीय विद्यालय के शिक्षक भवानी शंकर काण्डपाल, नीम सुयाल व राजकीय कन्या जूनियर की प्रधानाचार्य विमला टम्टा, शिशु मंदिर कौसानी के प्रधानाचार्य चंदन सिंह भोज आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता सरला बहन की प्रथम शिष्याओं में से एक वयोवृद्ध शशि प्रभा रावत ने की। संचालन लक्ष्मी आश्रम की सचिव नीमा वैष्णव ने किया।